पुनर्विलोकन (Review) cpc धारा -114, आदेश -47

 पुनर्विलोकन (Review)-


सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 114 एवं आदेश 47 में पुनर्विलोकन के बारे में प्रावधान किया गया है।

अर्थ -

पुनर्विलोकन ऐसे न्यायालय द्वारा, जिसने कोई निर्णय, आज्ञप्ति या आदेश पारित किया है ऐसे निर्णय, आज्ञाप्ति या आदेश में विधि, तथ्य या प्रक्रिया संबंधी कोई गलती या त्रुटि रह गई है, तो उस पर पुनः विचार करना और उस गलती या त्रुटि को दूर करना है।

उद्देश्य-

पुनर्विलोकन का उद्देश्य गलतियों को ठीक करना है, कोई नया दृष्टिकोण प्रतिस्थापित करना नहीं।

पुनर्विलोकन का क्षेत्र अत्यंत सीमित है। यह अपील के समतुल्य नहीं है। पुनर्विलोकन केवल तभी किया जा सकता है 

(1) जब कोई नया तथ्य अथवा साक्ष्य सामने आया हो, या 

(2)  अभिलेख पर कोई त्रुटि स्पष्टतया प्रकट होती हो, या

(3) अन्य कोई पर्याप्त हेतुक विद्यमान हो।

     प्रकृति-

पुनर्विलोकन का अधिकार सारवान एवं प्रक्रियात्मक दोनों तरह का है। यह अन्तर्निहित अधिकार नहीं है। सारवान अधिकार विधि द्वारा प्रदत होता है। प्रक्रियात्मक अधिकार के रूप में न्यायालय द्वारा अपनी लिपिकीय अथवा गणितीय त्रुटि को सुधारा जा सकता है।

      धारा 114 पुनर्विलोंकन- पूर्वोक्त के अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति, जो-

(क) किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी इस संहिता द्वारा अपील अनुज्ञात ज्ञात है, किंतु जिसकी कोई अपील नहीं की गई है,

(ख) किसी ऐसी डिक्री या आदेश से जिसकी इस संहिता द्वारा अपील अनुज्ञात नहीं है, अथवा

(ग) ऐसे  विनिश्चय से जो लघुवाद न्यायालय के निर्देश पर किया गया है, अपने को व्यथित मानता है वह डिक्री पारित करने वाले या आदेश करने वाले न्यायालय से निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन कर सकेगा और न्यायालय उस पर ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

    पुनर्विलोकन के आधार-


 किसी आज्ञाप्ति अथवा आदेश के विरुद्ध पुनर्विलोकन के लिए आवेदन निम्नलिखित तीन आधारों पर किया जा सकता है-

(1) जहां कि उस आज्ञप्ति, आदेश अथवा विनिश्चय से क्षुब्ध किसी व्यक्ति ने ऐसे नए और आवश्यक विषय को मालूम किया हो जिसका कि ज्ञान उसको सम्यक उद्यम के प्रयोग के बाद भी नहीं था और जिसे कि वह आज्ञप्ति अथवा आदेश पारित किए जाने के समय प्रस्तुत नहीं कर सका और वह इस प्रकार का है कि उससे निर्णय परिवर्तित हो सकता था,

(2) जहां की उसमें विधि, तथ्य अथवा प्रक्रिया संबंधी ऐसी कोई गलती या त्रुटी रह गई हो, चाहे वाद की प्रारंभिक सुनवाई पर उस पर बहस हुई हो या नहीं, जो प्रत्यक्षतः अभिलेख से ही स्पष्ट प्रतीत होती हो यदि अभिलेख पर प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होने वाली कोई त्रुटि नहीं है तो आदेश का पुनर्विलोकन नहीं किया जा सकता है। त्रुटिपूर्ण निर्णय को अपील में ठीक किए जाने की व्यवस्था है।

(3) जहां की उसके लिए अन्य कोई 'पर्याप्त हेतु' वर्तमान हो। (आदेश 47 नियम 1)

   शिल्पा सूर्यवंशी बनाम रामबाबू अग्रवाल 2014 के वाद में वादी द्वारा प्रतिवादी के विरुद्ध विक्रय विलेख के आधार पर स्वत्व की घोषणा एवं व्यादेश का वाद संस्थित किया गया था। लेकिन भूलवश विक्रय विलेख के निष्पादन की तारीख गलत अंकित कर दी गई थी। यह एक ऐसी त्रुटि थी जो अभिलेख को देखते ही प्रकट रूप से प्रतीत होती थी। इसे सुधारने हेतु पुनर्विलोकन के प्रार्थनापत्र को स्वीकार किया गया।

   संजय चौधरी बनाम इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड जयपुर 2018 के वाद में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया कि जहां अभिलेख पर स्पष्टतः प्रकट होने वाली कोई त्रुटि नहीं हो, पुनर्विलोकन नहीं किया जा सकता।

      प्रक्रिया-

 पुनर्विलोकन के लिए आवेदन किए जाने पर यदि न्यायालय का समाधान हो जाता है कि पुनर्विलोकन के लिए कोई पर्याप्त आधार वर्तमान है तो वह उसे स्वीकार कर लेगा अन्यथा उसे अस्वीकार कर दिया जाएगा ।(आदेश 47 नियम 4)

    अपील-

 पुनर्विलोकन के आवेदन को अस्वीकार करने के आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं हो सकती। किंतु आवेदन को स्वीकार करने वाला आदेश अपीलीय है। (आदेश 47 नियम 7)

     परिसीमा-

 पुनर्विलोकन का आवेदन देने की परिसीमा अवधि डिक्री या की आदेश की तिथि से 30 दिन है।

प्रश्न- पुनर्विलोकन किसे कहते हैं पुनर्विलोंकन किस आधार पर दिया जा सकता है ?

पुनर्विलोकन के आधार क्या है ? स्पष्ट कीजिए।

















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