जांच तथा अन्वेषण में अंतर बताइये। ( दडं प्रक्रिया संहिता 1973)



जांच तथा अन्वेषण में अंतर बताइये।

जांच (धारा 2 (छ)- 

जांच से अभिप्रेत है विचारण से भिन्न, प्रत्येक जांच जो इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाय।

अन्वेषण (धारा 2 (ज)] - 

अन्वेषण के अन्तर्गत वे सब कार्यवाहियां सम्मिलित हैं जो इस संहिता के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा या (मजिस्ट्रेट से भिन्न) किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया गया है, साक्ष्य एकत्र करने के लिए की जाय।

अंतर-

जांच तथा अन्वेषण में निम्नलिखित अंतर है-

जांच

1. जांच को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (छ) में परिभाषित किया गया है।

2. जांच का कार्य मजिस्ट्रेट अथवा न्यायालय द्वारा किया जाता है।

3. जांच का उद्देश्य ऐसे किसी प्रश्न का निर्धारण करना है जो कि मामले के अभिकथित अपराध के सम्बन्ध में दोषिता अथवा निर्दोषिता के निर्धारण से सम्बन्धित है।

4. जांच में परीक्षणाधीन व्यक्तियों की जांच की अवस्था में शपथ दिलायी जा सकती है।

अन्वेषण

1. अन्वेषण को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (ज) में परिभाषित किया गया है।

2. अन्वेषण का कार्य पुलिस अथवा मजिस्ट्रेट द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है।

3. अन्वेषण का उद्देश्य जांच एवं अन्वेषण के प्रयोजनार्थ साक्ष्य संग्रहण करना होता है।

4. अन्वेषण की अवस्था में परीक्षणाधीन व्यक्ति की शपथ पर प्रतिज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है।

शम्भू नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य 1985 पटना के वाद में यह विनिश्चित किया गया कि जहां मजिस्ट्रेट किसी अभियुक्त के विरुद्ध पेश की गयी रिपोर्ट पर विचार कर लेता है, तो मामले के संज्ञान की पूर्णता को परिकल्पित किया जायेगा तथा उसे धारा 2 (छ) के अर्थान्तर्गत जांच माना जाएगा।

बलदेव सिंह 1975 के वाद में कहा गया कि अपराध के अन्वेषण के प्रयोजन के लिए किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी और निरोध अन्वेषण की प्रक्रिया का अभिन्न भाग होता है।



कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.