अपील न्यायालय की शक्तियां(धारा-107)

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 107 एवं आदेश 41 के नियम 16 से 29 में अपीलीय न्यायालय की शक्तियों का उल्लेख किया गया है-


धारा 107 अपील न्यायालय की शक्तियां- (1) ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए जो विहित की जायें, अपील न्यायालय को यह शक्ति होगी कि वह-

(क) मामले का अन्तिम रूप से अवधारण करे

(ख) मामले का प्रतिप्रेषण करे

(ग) विवाद्यक विरचित करे और उन्हें विचारण के लिये निर्देशित करे,

(घ) अतिरिक्त साक्ष्य ले या ऐसे साक्ष्य का लिया जाना अपेक्षित करे।

(2) पूर्वोक्त के अधीन रहते हुए, अपील न्यायालय की वे ही शक्तियाँ होंगी और वह जहाँ तक हो सके उन्हीं कर्तव्यों का पालन करेगा, जो आरम्भिक अधिकारिता वाले न्यायालय में संस्थित वादों के बारे में इस संहिता द्वारा उन्हें प्रदत्त और उन पर अधिरोपित किये गये हैं।

जहां अपील पर सुनवाई समाप्त हो गई है, वहां अपील न्यायालय की धारा 107 के अन्तर्गत निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं-

(1) मामले को अन्तिम रूप से अवधारण की शक्ति-न्यायालय मामले का अन्तिम रूप से अवधारण कर सकेगा और ऐसा कोई आदेश या डिक्री पारित कर सकेगा जैसा कि मामले में अपेक्षित हो। लेकिन ऐसा न्यायालय तभी कर सकेगा जबकि अभिलेख पर पर्याप्त साक्ष्य विद्यमान है, जिसके आधार पर निर्णय दिया जा सकता है मामले के अन्तिम रूप से अवधारण के लिये पर्याप्त साक्ष्य का होना आवश्यक है।

(2) मामले का प्रतिप्रेषण करने की शक्ति-

अपील न्यायालय को शक्ति प्राप्त है कि वह मामले का प्रतिप्रेषण उसी न्यायालय को कर सकेगा, जिसकी डिक्री से अपील की गयी है।

जहां उस न्यायालय ने जिसकी डिक्री की अपील की गयी है वाद का निपटारा किसी प्रारम्भिक बिन्दु पर कर दिया है और डिक्री अपील में उलट दी गयी है, वहां यदि अपील न्यायालय ऐसा करना उचित समझे तो वह मामले का प्रतिप्रेषण कर सकेगा और यह अतिरिक्त निर्देश दे सकेगा कि ऐसे प्रतिप्रेषण मामले में कौन से विवाद्यक या विवाद्यकों का विचारण किया जाय। जब मामला प्रतिप्रेषित कर दिया जाये तो अधीनस्थ न्यायालय उन विवाद्यकों या उस विवाद्यक पर विचारण करेगा और उसका अवधारण करने के पश्चात् अपने निर्णय और आदेश की प्रति अपील न्यायालय को भेजेगा।

(3) विवाद्यक विरचित करने और विचारण की शक्ति-

जहां अधीनस्थ न्यायालय ने

(अ) ऐसे किसी विवाद्यक की विरचना करने में,

(ब) उसका विचारण करने में, या

(स) ऐसे तथ्य के प्रश्न के अवधारण में लोप किया है,

जिस पर, अपील न्यायालय की राय में विनिश्चय वाद में अवधारण के लिये परमावश्यक है, वहाँ यदि आवश्यक हो तो अपील-न्यायालय विवाद्यकों की विरचना कर सकेगा और उन्हें अधीनस्थ न्यायालय के विचारण के लिये विनिर्दिष्ट कर सकेगा।

( 4 ) अतिरिक्त साक्ष्य लेने की शक्ति-

न्यायालय को अतिरिक्त साक्ष्य लेने या ऐसे साक्ष्य का लिया जाना अपेक्षित करने की भी शक्ति प्राप्त है, परन्तु वह ऐसा निम्नलिखित अवस्थाओं में ही कर सकता है :

(क) जहाँ उस न्यायालय ने जिसकी डिक्री की अपील की गयी है, ऐसा साक्ष्य ग्रहण करने से अस्वीकार कर दिया है जो ग्रहण किया जाना चाहिए था, अथवा

(ख) वह पक्षकार जो अतिरिक्त साक्ष्य पेश करना चाहता है यह सिद्ध कर देता है कि सम्यक् तत्परता के बावजूद वह ऐसे साक्ष्य की जानकारी नहीं रखता था या उसे उस समय पेश नहीं कर सकता या जब वह डिक्री पारित की गयी थी, जिसके विरुद्ध अपील की गयी है, अथवा

(ग) अपील न्यायालय किसी दस्तावेज के पेश किये जाने की या किसी साक्षी की परीक्षा किये जाने की अपेक्षा, या तो स्वयं निर्णय सुनाने में समर्थ होने के लिये या किसी सारवान् हेतुक के लिये करें।

जहाँ कहीं अतिरिक्त साक्ष्य पेश करने के लिये अपील न्यायालय अनुज्ञा दे देता है, वहां न्यायालय ऐसे साक्ष्य ग्रहण किये जाने के कारणों को लेखबद्ध करेगा।

(5) मूल क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय की भांति कार्य करने की शक्ति-

धारा 107 की उपधारा (2) के अनुसार, अपील न्यायालय को वे ही शक्तियां होंगी और वह जहाँ तक हो सके उन्हीं कर्तव्यों का पालन करेगा, जो मूल अधिकारिता वाले न्यायालयों में संस्थित वादों के बारे में इस संहिता द्वारा उन्हें प्रदत्त और उन पर अधिरोपित किये गये हैं।

कैलाशनाथ सिंह बनाम डिस्ट्रिक्ट जज, मिर्जापुर,1993 इलाहाबाद के वाद में जहाँ अन्तरिम व्यादेश सम्बन्धी आदेश पारित किया है और ऐसे आदेश के विरुद्ध प्रकीर्ण अपील दाखिल की गयी है, वहां अपीलीय न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह वाद-पत्र में संशोधन अनुज्ञात करें।

ईश्वरदत्त बनाम लैण्ड एक्वीजीशन कलेक्टर,  2005 सु. को.  के वाद में कहा गया कि अपीलीय न्यायालय के रूप में एक उच्च न्यायालय को धारा 107 के अन्तर्गत विस्तृत अधिकार प्राप्त है परन्तु उसे अभिवचन से बाहर जाकर एक नया मामला नहीं बनाना चाहिए।

आदेश-41-नियम 16 से 29 के अन्तर्गत निम्नलिखित शक्तियों का उल्लेख किया गया है- 

नियम-16 शुरु करने का अधिकार

नियम 17 अपीलार्थी के व्यक्तिक्रम के लिये अपील का खारिज किया जाना

नियम 19 व्यक्तिक्रम के लिये खारिज की गयी अपील को पुनः ग्रहण करना

नियम 20 सुनवाई को स्थगित करने और ऐसे व्यक्तियों को जो हितबद्ध, प्रतीत हों, प्रत्यर्थी बनाये जाने के लिये निर्दिष्ट करने की शक्ति

नियम 21 उस प्रत्यर्थी के आवेदन पर पुनः सुनवाई जिसके विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री की गयी है 

नियम 22 सुनवाई में प्रत्यर्थी डिक्री के विरुद्ध ऐसे आक्षेप कर सकेगा मानों उसने पृथक् अपील की हो

नियम 23 मामले की अपील न्यायालय द्वारा प्रतिप्रेषण

नियम 23 'क' अन्य मामलों में प्रतिप्रेषण

नियम 24 जहां अभिलेख का साक्ष्य पर्याप्त है, वहां अपील न्यायालय मामले का अन्तिम रूप् से अवधारण कर सकेगा।

नियम 25 अपील न्यायालय कहाँ विवाद्यकों की विरचना कर सकेगा और उन्हें उस न्यायालय को विचारण के लिये निर्दिष्ट कर सकेगा, जिसकी डिक्री की अपील की गयी है।

नियम 26 निष्कर्ष और साक्ष्य का अभिलेख में सम्मिलित किया जाना निष्कर्ष पर आक्षेप

 नियम 26 'क' प्रतिप्रेषण के आदेश में अगली सुनवाई का उल्लेख किया जाना

 नियम 27 अपील 

नियम 28 अतिरिक्त साक्ष्य लेने की शक्ति

 नियम 29 विषय बिन्दुओं का परिभाषित और लेखवृद्ध किया जाना

प्रश्न-

 अपील न्यायलय की क्या शक्तियां हैं?




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