आनुषंगिक कार्यवाही(सीपीसी)
आनुषंगिक कार्यवाही-
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 75-78 (भाग 3) एवं आदेश 22 से 26 के अंतर्गत आनुषंगिक कार्यवाहियों का उपबंध किया गया है।
न्यायालय की कार्यवाही के दौरान कोई अकस्मात घटना घट जाये जैसे-दोनों पक्षकारों में से एक पक्षकार की मृत्यु, वादी द्वारा मुकदमे का वापिस लिया जाना, प्रतिवादी द्वारा समझौता करना, पक्षकार या पक्षकार का गवाह किसी कारण वश न्यायालय में आने में असमर्थ हो आदि, ऐसी स्थिति में न्यायालय वाद के दौरान जो कार्यवाही अपनाता है, वे आनुषंगिक कार्यवाही कहलाती हैं। ऐसी आनुषंगिक कार्यवाही में न्यायालय को यह शक्ति प्रदान किया गया है कि वह धारा 75 में वर्णित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कमीशन जारी कर सकेगा। कमीशन जारी करने की न्यायालय की शक्ति विवेकाधीन शक्ति है और उसके लिये न्यायालय को बाध्य नहीं किया जा सकता।
धारा-75 कमीशन निकालने की शक्ति-ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए जो विहित की जाएं, न्यायालय-
(क) किसी व्यक्ति की परीक्षा के लिए,
(ख) स्थानीय अन्वेषण के लिए
(ग) लेखाओं की परीक्षा या उनका समायोजन करने के लिए,
(घ) विभाजन करने के लिए
(ङ) कोई वैज्ञानिक, तकनीकी या विशेषज्ञ अन्वेषण करने के लिए,
(च) ऐसी सम्पत्ति का विक्रय करने के लिए जो शीघ्र और प्रकृत्या क्षयशील है और जो वाद का अवधारण लम्बित रहने तक न्यायालय की अभिरक्षा में है,
(छ) कोई अनुसचिवीय कार्य करने के लिए,
कमीशन निकाल सकगा।
(1) किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए-
किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन वहां जारी किया जायेगा जहां किसी व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित होने से उन्मुक्ति मिली हुई है, या जो बीमारी या अंग शैथिल्य के कारण न्यायालय में हाजिर होने में असमर्थ है। ऐसा कमीशन तभी जारी किया जायेगा जब ऐसा करना न्यायालय आवश्यक समझे, और ऐसे कारणों को अभिलिखित किया जायेगा। (आदेश 26 नियम 1)
(2) स्थानीय अन्वेषण के लिए-
न्यायालय जब उचित समझे, स्थानीय अन्वेषण के लिए निम्न उद्देश्य की पूर्ति हेतु कमीशन जारी कर सकेगा-
(क) किसी विवादग्रस्त विषय के स्पष्टीकरण के लिए,
(ख) किसी सम्पत्ति का बाजार मूल्य अभिनिश्चित करने के लिए, एवं
(ग) अन्तःकालीन लाभ, नुकसानी या वार्षिक शुद्ध लाभ के अभिनिश्चयन के लिये (आदेश 26 नियम 9)
गोविन्द बनाम बैजनाथ 2011 का वाद सम्पत्ति हित, अधिकार एवं स्वत्व के सम्बन्ध में था। वादी का दावा यह था कि विवादित सम्पत्ति पर उसके द्वारा कच्चा मकान बनाया गया है। जबकि प्रतिवादी का कहना यह था कि उसके द्वारा मकान बनाया ही नहीं गया तथा प्रतिवादी ने उस पर पक्का मकान बनवाया है। यह निश्चित करने के लिए कि विवादित सम्पत्ति पर कच्चा मकान बना हुआ था या पक्का मकान, कमिश्नर की नियुक्ति जरूरी है। न्यायालय ने एक वकील को कमीश्नर नियुक्त किया।
(3) लेखाओं की परीक्षा या उनका समायोजन के लिए-
न्यायालय ऐसे किसी भी वाद में जिसमें लेखाओं की परीक्षा या समायोजन आवश्यक है, ऐसी परीक्षा या समायोजन करने के लिए कमीशन जारी कर सकेगा। (आदेश 26 नियम 11) कमिश्नर की कार्यवाहियाँ और रिपोर्ट वाद में साक्ष्य होगी, किन्तु जहां न्यायालय के पास उनसे असंतुष्ट होने के लिए कारण हैं, वहां ऐसी अतिरिक्त जांच का आदेश दे सकेगा जो ठीक समझे। [आदेश 26, नियम 12 (2)]
(4) विभाजन करने के लिए-
जहां विभाजन करने के लिए प्रारंभिक डिक्री पारित की गयी है, वहां न्यायालय किसी मामले में जिसके लिये धारा 54 का उपबन्ध नहीं किया गया है, ऐसी डिक्री में घोषित अधिकारों के अनुसार, विभाजन या पृथक्करण करने के लिए ऐसे व्यक्ति के नाम जिसे वह ठीक समझे, कमीशन जारी कर सकेगा। (आदेश 26 नियम 13)
(5) किसी वैज्ञानिक तकनीकी या विशेषज्ञ अन्वेषण के लिये-
जहां वाद में उत्पन्न होने वाले किसी प्रश्न में वैज्ञानिक अन्वेषण अर्न्तग्रस्त है और जो न्यायालय द्वारा सुविधापूर्वक नहीं किया जा सकता, वहां, न्यायालय, यदि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे, कमीशन जारी कर सकेगा। कमिश्नर ऐसे प्रश्न की जांच करेगा और रिपोर्ट न्यायालय को देगा। [(आदेश 26 नियम 10 (क)]
(6) ऐसी सम्पत्ति का विक्रय करने के लिए जो शीघ्र और प्रकृत्या क्षयशील है-
ऐसी सम्पत्ति जो शीघ्र, प्रकृत्या क्षयशील है, जिसे सुविधापूर्वक परिरक्षित नहीं किया जा सकता और जिसका विक्रय करना आवश्यक है, वहां न्यायालय ऐसी सम्पति के विक्रम के लिए कमीशन जमी कर सकेगा। (आदेश 26 नियम 10 (ग)]
(7) कोई अनुसचिवीय कार्य करने के लिये-
जहां बाद में उत्पन्न होने वाले किसी प्रश्न में कोई ऐसा अनुसचिवीय कार्य करना अन्तर्गस्त है और जो न्यायालय की राय में न्यायालय के समक्ष सुविधापूर्वक नहीं किया जा सकता है, वहां न्यायालय ऐसा कार्य करने के लिये यदि वह उचित एवं समीचीन समझता है तो कमीशन जारी कर सकता है। यह कमिश्नर को ऐसा आदेश देगा कि वह कार्य करने के पश्चात् न्यायालय को रिपोर्ट दे। (आदेश 26 नियम 10 (ख))
धारा 76 अन्य न्यायालय को कमीशन-
(1) किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन उस राज्य से, जिसमें उसे निकालने वाला न्यायालय स्थित है, भिन्न राज्य में स्थित किसी ऐसे न्यायालय को निकाला जा सकेगा (जो उच्च न्यायालय नहीं है) और जो उस स्थान में अधिकारिता रखता है, जिसमें वह व्यक्ति निवास करता है, जिसकी परीक्षा की जाती है।
(2) उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन को प्राप्त करते वाला हर न्यायालय उसके अनुसरण में उस व्यक्ति की परीक्षा करेगा या कराएगा और जब कभीशन सम्यक रूप से निष्पादित किया गया है तब वह, उसके अधीन लिए गए साक्ष्य सहित, उस न्यायालय को लौटा दिया जाएगा जिससे उसे निकाला था, किन्तु यदि कमीशन निकालने के आदेश द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट किया गया है तो कमीशन ऐसे आदेश के निबन्धनों के अनुसार लौटाया जाएगा।
धारा 77 अनुरोध पत्र-
कमीशन निकालने के बदले न्यायालय ऐसे व्यक्ति की परीक्षा करते के लिए अनुरोध-पत्र निकाल सकेगा जो ऐसे स्थान में निवास करता है, जो भारत के भीतर नहीं है।
धारा 78 विदेशी न्यायालय द्वारा निकाले गये कमीशन-
ऐसी शतों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए जो विहित की जाएं, साक्षियो की परीक्षा करने के लिए कमीशनों के निष्पादन और लौटाने से सम्बन्ध रखने वाले उपबन्ध उन कमीशनों को लागू होगे, जो
(क) भारत के उन भागों में जिन पर इस संहिता का विस्तार नहीं है, स्थित न्यायालयों द्वारा या उनकी प्रेरणा से निकाले गए हो, अथवा
(ख) केन्द्रीय सरकार के प्राधिकार द्वारा भारत से बाहर स्थापित या चालू रखे गए न्यायालयों द्वारा या उनकी प्रेरणा से निकाले गए हों, अथवा
(ग) भारत से बाहर के किसी राज्य या देश में न्यायालयों द्वारा या उनकी प्रेरणा से निकाले गए हों।
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