कुर्की(सीपीसी धारा 60-64 एवं आदेश 21 नियम 41-59)

 

कुर्की-

किसी आज्ञप्ति के निष्पादन का एक तरीका कुर्की भी है। संहिता की धारा 60-64 एवं आदेश 21 नियम 41-59 इस संबंध में आवश्यक उपबंध करता है-

(1) कुर्की की जा सकने वाली सम्पत्ति,

(2) कुर्की न की जा सकने वाली सम्पत्ति

(3) कुर्की के तरीके

(4) कुर्की के पश्चात् सम्पत्ति का प्राइवेट अन्यसंक्रामण (विक्रय)

(5) गारनिशी

(6) कुर्की की समाप्ति, एवं

(1) कुर्की की जा सकने वाली सम्पत्ति-

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 60 यह स्पष्ट करती है कि किन सम्पत्तियों का आज्ञप्ति के निष्पादन में कुर्की एवं विक्रय किया जा सकता है। निम्नलिखित चल या अचल, सम्पत्तियां, जो निर्णीत-ऋणी की हैं यो जिनके लाभों का व्ययन का अधिकार निर्णीत-ऋणी के पास है, आज्ञप्ति के निष्पादन में कुर्क एवं विक्रय की जा सकेंगी

(क) भूमि

(ख) गृह या अन्य निर्माण

(ग) माल

(घ) धन

(ङ) बैंक नोट,

(च) चेक

(छ) विनिमय-पत्र

(ज) हुण्डी

(झ) वचन-पत्र

(ञ) सरकारी प्रतिभूतियां

(ट) धन के लिए बन्ध-पत्र या अन्य 

(ठ) ऋण, एवं

(ड) निगम-अंश।

(2) कुर्की न की जा सकने वाली सम्पत्ति-

धारा 60 (1) के परन्तुक के अनुसार, किसी आज्ञप्ति के निष्पादन में निम्नलिखित सम्पत्तियों की कुकी या बिक्री नहीं की जा सकती है-

(क) निर्णीत-ऋणी, उसकी पत्नी और उसके बच्चों के पहनने के आवश्यक वस्त्र भोजन पकाने बर्तन, चारपाई और बिछौने और ऐसे निजी आभूषण जिन्हें कोई भी स्त्री धार्मिक प्रथा के अनुसार अपने से अलग नहीं कर सकती, जैसे- मंगलसूत्र, सगाई की अंगूठी इत्यादि।

(ख) शिल्पी के औजार और जहां निर्णीत-ऋणी कृषक है वहां उसके खेती के उपकरण और ऐसे पशु व बीज जो न्यायालय की राय में उसे वैसी हैसयित में अपने जीविका का उपार्जन करने के लिए समर्थ बनाने हेतु आवश्यक है। कृषि उपज के किसी वर्ग का ऐसा भाग जो धारा 61 के उपबन्धों के अधीन दायित्व से मुक्त कर दिया गया है।

(ग) वे गृह और अन्य निर्माण (उनके मलबों और आस्थानों के तथा उनसे अव्यवहित रूप से अनुलग्न और उनके उपभोग के लिए आवश्यक भूमि के सहित) जो कृषक या श्रमिक या घरेलू नौकर है और उसके अधिभोग में 

(घ) लेखा बहियाँ

(ङ) नुकसानी के लिए वाद लाने का अधिकार मात्र

(च) व्यक्तिगत सेवा कराने का अधिकार

(छ) वे वृत्तिकाएं और उपादान (Gratuity) जो सरकार के या किसी स्थानीय प्राधिकारी के या किसी अन्य नियोजक के पेंशन भोगियों को अनुज्ञात है या ऐसी किसी सेवा कुटुम्ब पेंशन निधि में से. जो केन्द्रीय सरकार (या राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निमित्त अधिसूचित की गई है संदेय है और राजनैतिक पेंशन।

(ज) श्रमिकों और घरेलू नौकरों की मजदूरी चाहे यह धन में या वस्तु के रूप में संदेय हो,

(झ) भरण-पोषण की आज्ञप्ति से भिन्न किसी आज्ञप्ति के निष्पादन में वेतन के प्रथम एक हजार रुपये और शेष का दो तिहाई।


(ञ) ऐसे व्यक्तियों के वेतन व भत्ते जिन पर वायुसेना अधिनियम, 1950 या सेना अधिनियम, 1950 या नौसेना अधिनियम, 1957 लागू होता है।

(ठ) किसी भी ऐसी निधि में के या उससे व्युत्पन्न जिसे भविष्य निधि अधिनियम, 1925 तत्समय लागू है, सभी अनिवार्य निक्षेप और अन्य राशियां, जहां तक कि उनके बारे में उक्त अधिनियम द्वारा यह घोषित किया गया है कि वे कुर्क नहीं की जा सकेंगी।

(ङ) किसी भी ऐसी निधि में के या उससे व्युत्पन्न जिसे भविष्य निधि अधिनियम, 1966 तत्समय लागू है, सभी निक्षेप और अन्य राशियां, जहां तक कि उनके बारे में उक्त अधिनियम द्वारा यह घोषित किया गया है कि वे कुर्क नहीं की जा सकेंगी।

(ण) किसी ऐसे निवास भवन के पट्टेदार का हित जिसको भाटक और वास सुविधा के नियंत्रण से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबन्ध लागू हैं।

(त) सरकार के किसी सेवक की या रेल कम्पनी या स्थानीय प्राधिकारी के सेवक की उपलब्धियों का भाग रूप ऐसा कोई भत्ता, जिसके बारे में समुचित सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित करे कि वह कुर्की से छूट प्राप्त है और ऐसे किसी सेवक को उसके निलम्बन काल में दिया गया कोई जीवन-निर्वाह अनुदानं या भत्ता।

(थ) उत्तरजीविता द्वारा उत्तराधिकार की प्रत्याशा अथवा अन्य केवल समाश्रित या सम्भव अधिकार या हित।

(द) भावी भरण-पोषण का अधिकार।

(ध) ऐसा भत्ता जिसके बारे में किसी भारतीय विधि ने यह घोषित किया है कि वह आज्ञप्ति के निष्पादन में कुर्की या विक्रय के दायित्व से छूट प्राप्त है तथा

(न) जहां निर्णीत ऋणी कोई ऐसा व्यक्ति है जो भू-राजस्व के संदाय के लिये दायी है, वहां कोई ऐसी जंगम सम्पत्ति जो ऐसे राजस्व की बकाया की वसूली के लिये विक्रय से ऐसी विधि के अधीन छूट प्राप्त है, जो उसे तत्समय लागू है।

(3) कुर्की के तरीके-सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 के नियम 43-54 में विभिन्न प्रकार की सम्पत्तियों को कुर्क करने के तरीकों का वर्णन है। ये तरीकें निम्नलिखित हैं-

(1) आदेश-21 नियम-43-निर्णीत ऋणी के कब्जे में ऐसी जंगम सम्पत्ति की कुर्की, जो कृषि उपज से भिन्न है।

(2) नियम-44-कृषि उपज की कुर्की

(3) नियम-46- ऐसे ऋण, अंश या अन्य सम्पत्ति की कुर्की जो निर्णीत-ऋणी के कब्जे में नहीं है।

 (4) नियम-47- जंगम सम्पत्ति के अंश की कुर्की

(5) नियम 48 एवं 48-'A'-किसी लोक सेवक या प्राइवेट कर्मचारी के वेतन और भत्तों की कुर्की

(6) नियम 49 - भागीदारी की सम्पत्ति की कुर्की

(7) नियम 51 - परक्राम्य लिखतों की कुर्की

(8) नियम 52 - न्यायालय या लोक अधिकारी की अभिरक्षा में की सम्पत्ति की कुर्की

(9) नियम 53- डिक्रियों की कुर्की

(10) नियम 54-स्थावर सम्पत्ति की कुर्की

(4) कुर्की के पश्चात् सम्पत्ति का प्राइवेट अन्य संक्रामण-कुर्की की जा चुकी सम्पत्ति ( उसमें के किसी हित का ऐसी कुर्की के प्रतिकूल प्राइवेट अंतरण या परिदान शून्य होगा अर्थात् ऐसी सम्पत्ति का प्राइवेट अन्य संक्रामण (विक्रय) नहीं किया जा सकता। [धारा 64 (1)]

(5) गारनिशी - 

गारनिशी एक ऐसा व्यक्ति होता है, जो निर्णीत ऋणी का ऋणी होता है अर्थात उस व्यक्ति पर यह दायित्व होता है कि वह निर्णीत-ऋणी को कोई चल सम्पत्ति अदा करे। यदि नियम 46 के अंतर्गत निर्णीत ऋणी के किसी ऋण या चल सम्पत्ति की कुर्की की गई है, वहां कुर्की कराने वाले लेनदार के आवेदन पर न्यायालय गारनिशी को यह अपेक्षा करने वाली सूचना देगा कि वह निर्णीत ऋणी को उसके द्वारा शोध्य ऋण द्वारा उसका इतना 'भाग, जितना डिक्री और निष्पादन के खर्चों को चुकाने के लिये पर्याप्त हो, न्यायालय में जमा करे या न्यायालय में उपस्थित होकर कारण बताये कि उसे वैसा क्यों नहीं करना चाहिए। यही सूचना गारनिशी आदेश कही जाती है। (नियम 46'क')

(6) कुर्की का पर्यवसान (समाप्ति) - कुर्की की समाप्ति दो प्रकार से हो सकती है-

(क) प्रत्याहरण द्वारा, एवं

(ख) पर्यवसान द्वारा

(क) प्रत्याहरण द्वारा (वापसी) (Withdrawal) - नियम 55 के अनुसार, निम्नलिखित परिस्थितियों में कुर्की का प्रत्याहरण हो जाता है-

(1) जब डिक्री की रकम खर्चों और किसी सम्पत्ति की कुर्की के परिणामिक प्रभारों और व्ययों के साथ न्यायालय में जमा कर दी जाती है, अथवा

(ii) जब डिक्री की तुष्टि अन्यथा न्यायालय के मार्फत कर दी जाती है या न्यायालय को प्रमाणित कर दी जाती है, अथवा

(ii) जब डिक्री अपास्त कर दी जाती है या उलट दी जाती है।

(ख) पर्यवसान (वापसी) नियम 57 के अनुसार, जहां कोई सम्पत्ति किसी डिक्री के निष्पादन में कुर्क कर ली गयी है और न्यायालय निष्पादन के आवेदन को किसी कारण से खारिज करने का आदेश पारित करता है वहां न्यायालय यह निदेश देगा कि कुर्की जारी रहेगी या समाप्त हो जायेगी और यदि कुर्की जारी रहेगी तो किस तारीख तक। यदि न्यायालय ऐसा निदेश देने में लोप करता है तो यह समझा जायेगा कि कुर्की समाप्त हो गयी है।



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