समन मामले तथा वारण्ट मामले में अंतर बताइये।
समन मामले तथा वारण्ट मामले में अंतर बताइये।
समन मामले (धारा 2 (ब)] -
'समन मामला' से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो
किसी अपराध से सम्बन्धित है और जो वारण्ट मामला नहीं है।
वारण्ट मामला (धारा 2 (भ)] -
वारण्ट मामला से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो मृत्यु आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध से सम्बन्धित है।
अंतर-
समन मामला एवं वारंट मामला में निम्नलिखित अंतर है-
वारण्ट मामला
1. वारण्ट मामला धारा 2 (भ) में परिभाषित किया गया है।
2. वारण्ट मामला मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध से संबंधित है।
3. वारंट मामलों में विचारण की प्रक्रिया अध्याय XIX में दी गई है।
4. वारंट मामले अपेक्षाकृत गंभीर प्रकृति के होते हैं।
5. समन मामलों में अभियुक्त के उन्मोचन जैसी कोई बात नहीं होती।
5. वारंट मामलों में यदि आरोप बहस के समय यह पाया जाता है कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप निराधार है तो उसे उन्मोचित किया जा सकता है।
समन मामला
1. समन मामला दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (ब) में परिभाषित किया गया है।
2. समन मामला ऐसे अपराधों से संबंधित होता है जो जुर्माना या दो वर्ष तक के कारावास से दंडनीय अपराध है।
3. समन मामलों के विचारण के लिए प्रक्रिया अध्याय XX में दी गई है।
4. समन मामले सामान्य प्रकृति के होते हैं।
5. समन मामलों में अभियुक्त के उन्मोचन जैसी कोई बात नहीं होती।
पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बनाम हिन्दुस्तान मोटर्स, ए.आई.आर. 1970 आंध्र प्रदेश के वाद में कहा गया कि केवल अर्थदण्ड से दण्डनीय मामले समन मामले होते हैं और उनका विचारण भी समन मामलों के विचारण की तरह ही किया जाता है।
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