परिवाद तथा प्रथम इत्तिला रिपोर्ट में अंतर बताइये।

 प्रश्न-

 परिवाद तथा प्रथम इत्तिला रिपोर्ट में अंतर बताइये।


उत्तर-

परिवाद (धारा 2 (घ)] - 

परिवाद से इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही किए जाने की दृष्टि से मौखिक या लिखित रूप में उससे किया गया यह अभिकथन अभिप्रेत है कि किसी व्यक्ति ने, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात अपराध किया है, किन्तु इसके अन्तर्गत पुलिस रिपोर्ट नहीं है।

प्रथम इत्तिला रिपोर्ट (धारा 154) -

 सामान्यतः प्रथम सूचना रिपोर्ट से अभिप्राय ऐसी सूचना से है, जो किसी व्यक्ति द्वारा लिखित या मौखिक रूप से थाने के भारसाधक अधिकारी को संज्ञेय अपराध के संबंध में दी गई है।

अंतर-

परिवाद तथा प्रथम इत्तिला रिपोर्ट में निम्नलिखित अंतर है-

परिवाद 

1. परिवाद मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जाता है।

2. परिवाद सदैव असंज्ञेय अपराध को किये जाने की बाबत किया जाता है।

3. परिवाद की दशा में पुलिस अधिकारी मामले में अन्वेषण का कार्य तब तक नहीं कर सकता है जब तक कि मजिस्ट्रेट मामले में अन्वेषण की अनुज्ञा न दे।

4. परिवाद दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (घ) में परिभाषित किया गया है।

5. परिवाद प्रस्तुत होने पर मजिस्ट्रेट द्वारा जांच प्रारंभ की जाती है।

6. परिवाद कुछ विशेष परिस्थितियों में वही व्यक्ति कर सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत हो।

7. परिवाद पर मजिस्ट्रेट या तो स्वयं जांच प्रारंभ कर सकता है या उसे अन्वेषण हेतु संहिता की धारा 156 (3) के अन्तर्गत पुलिस को भेज सकता है।

प्रथम इत्तिला रिपोर्ट-

1. प्रथम सूचना रिपोर्ट सदैव पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष की जाती है।

2. प्रथम सूचना रिपोर्ट संज्ञेय अपराध कारित किए जाने के बाबत की जाती है।

3. संज्ञेय अपराध की दशा में पुलिस अधिकारी दायर की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट के आधार पर स्वयं मामले में अन्वेषण का कार्य प्रारंभ कर सकता है।

4. प्रथम सूचना रिपोर्ट के बारे में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 में बताया गया है।

5. प्रथम सूचना रिपोर्ट पर पुलिस द्वारा अन्वेषण प्रारंभ किया जाता है।

6. प्रथम इत्तिला कोई भी व्यक्ति दे सकता है।

7. इत्तिला पर पुलिस अधिकारी को ही अन्वेषण करना होता है। वह उसे जांच हेतु मजिस्ट्रेट को नहीं भेज सकता। अन्वेषण पूर्ण होने पर उसे रिपोर्ट ही प्रस्तुत करनी होती है। यदि इत्तिला से किसी असंज्ञेय अपराध का कारित होना प्रकट होता है तो वह इत्तिला देने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष जाने का निदेश दे सकता है।

केस-

प्रकाश सिंह बादल बनाम पंजाब राज्य 2007 एस.सी. के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिकथन किया कि केवल इस आधार पर कि परिवाद राजनीतिक विरोधी द्वारा दायर किया गया है, मजिस्ट्रेट को उसकी अनदेखी नहीं करना चाहिये और न धारणा बना लेनी चाहिए कि परिवाद में लगाये गये आरोप में कोई सार नहीं है।

मोतीलाल बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. 2010 के वाद में कहा गया कि यह आवश्यक नहीं होता कि प्रथम इत्तिला रिपोर्ट में घटना की हर बात का विवरण मिले।



कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.