भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत परिभाषा खंड
परिभाषा
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(1) श्रव्य दृश्य इलेक्ट्रॉनिक साधन -
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2(1)(क) -
श्रव्य दृश्य इलेक्ट्रॉनिक साधन को परिभाषित किया गया है इसके अन्तर्गत वीडियो कांफ्रेसिंग के प्रयोजनों के लिए पहचान, तलाशी और अभिग्रहण या साक्ष्य की प्रक्रियाओं को अभिलिखित करना, इलेक्ट्रॉनिक संसूचना का पारेषण और ऐसे अन्य प्रयोजनों के लिए किसी संसूचना डिवाइस का प्रयोग और ऐसे अन्य साधन भी हैं, जिसे राज्य सरकार नियमों द्वारा उपबंधित करे ।
(2) आरोप-
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2(1)(क)(च) में आरोप को परिभाषित किया गया है-
"आरोप" के अंतर्गत, जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष हो, आरोप का कोई भी शीर्ष है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा सहिंता, 2023 में आरोप की केवल इतनी ही परिभाषा दी गई है लेकिन यह आरोप की शाब्दिक परिभाषा नहीं है। आरोप को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है "आरोप अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का ऐसा लिखित कथन होता है जिसमें आरोप के आधारों के साथ-साथ समय, स्थान, व्यक्ति एवं वस्तु का भी उल्लेख रहता है, जिसके बारे में अपराध किया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 234 से 247 तक में आरोप के बारे में प्रावधान किया गया है।
(3)परिवाद-
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (ज) में परिवाद को परिभाषित किया गया है-
"परिवाद" से इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा कार्रवाई किये जाने की दृष्टि से मौखिक या लिखित रूप में उससे किया गया अभिकथन अभिप्रेत है कि किसी व्यक्ति ने, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, अपराध किया है, किंतु इसमें पुलिस रिपोर्ट सम्मिलित नहीं है।
स्पटीकरण-
ऐसे किसी मामले में, जो अन्वेषण के पश्चात किसी असंज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट करता है, पुलिस अधिकारी दवारा की गई रिपोर्ट परिवाद समझी जायेगी और वह पुलिस अधिकारी जिसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट की गई है, परिवादी समझा जायेगा ।
सामान्यत परिवाद को हम सरल शब्दों में निम्न कह सकते है प्रकार से कह सकते हैं।
जब किसी के साथ कोई आपराधिक घटना घटती है, तो वह उस अपराध की सूचना पुलिस को देता है ताकि उस अपराध की सूचना के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखी जाये, यदि उक्त सूचना के आधार पर पुलिस, थाने का इंचार्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखने से मना कर देता है, तो पीड़ित व्यक्ति या उसके रिश्तेदार द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है, ताकि उक्त अपराध किये जाने वाले अपराधी के खिलाफ विधिक कार्यवाही की जा सके ।
परिवाद के अन्तर्गत पुलिस रिपोर्ट को सम्मलित नहीं किया गया है, परन्तु स्पष्टीकरण के अनुसार, ऐसे किसी मामले में पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट परिवाद समझी जायेगी जहां अन्वेषण के पश्चात किसी असंज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट होता है। इस तरह के मामले में वह पुलिस अधिकारी परिवादी समझा जाता है, जिसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट की गई है।
(4)अन्वेषण -
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2(1)(ठ)
में अन्वेषण को परिभाषित किया गया है-
"अन्वेषण" के अतंर्गत वे सब कार्यवाहियो है जो इस संहिता के अधीन किसी पुलिस अधिकारी द्वारा या किसी भी ऐसे व्यक्ति (मजिस्ट्रेट से भिन्न) द्वारा जो माजिस्ट्रेट दवारा इस निमित्त प्राधिकृत किया गया है, माझ्य एकत्र करने के लिए की जाए ।
स्पष्टीकरण-
जहां किसी विशेष आधनियम के उपबंधों में से कोई भी इस संहिता के उपबंधो से असंगत है, वहां विशेष अधिनियम के उपबंध अभिभावी होंगे।
अन्वेषण शब्द की परिभाषा निःशेषकारक नहीं है । 'अन्वेषण' से अभिप्रेत है सामग्री तथा तथ्य के लिए खोज जिससे कि यह पता चल सके कि कोई अपराध किया गया है या नहीं। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि अन्वेषण किसी पुलिस ऑफिसर या कस्टम ऑफिसर या किसी अन्य ऑफिसर द्वारा जिसे भा. द. स. के अतिरिक्त किसी विधि के अधीन किसी अपराध के मामले में अन्वेषण करने के लिए प्राधिकृत किया गया है, किया जाता है। अपराध के अन्वेषण के प्रयोजन के लिए किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी और निरोध अन्वेषण की प्रक्रिया का अभिन्न भाग होता है।
(5) जमानत-
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2(1)(ख) में जमानत को परिभाषित किया गया है -
"जमानत" से किसी अधिकारी या न्यायालय द्वारा अधिरोपित कतिपय शर्तों पर किसी अपराध के कारित किये जाने के अभियुक्त या संदिग्ध व्यक्ति दवारा किसी बंधपत्र या जमानतपत्र के निष्पादन पर विधि की अभिरक्षा से ऐसे व्यक्ति का छोड़ा जाना अभिप्रेत है।
सामान्यतः जमानत शब्द का तात्पर्य विचारण के लिये हाजिर होने की प्रतिभूति या प्रतिभू जमा कर देने पर कारागार से अस्थायी तौर पर छोड़ दिया जाना है।
न्यायालय का जमानत मंजूर करने का विवेकाधिकार मनमानेपन का नहीं होता बल्कि न्यायिक होता है, और सुस्थापित सिद्धांतो नियंत्रित होता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्देशित किया कि जब कोई विशिष्ट व्यक्ति आत्मसमर्पण करता है और जमानत के लिए आवेदन करता है, तो उस पर उसी दिन विचार किया जाना चाहिए।
(6) जमानतीय अपराध
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (ग) में जमानतीय अपराध को परिभाषित किया गया है।
"जमानतीय अपराध' से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो प्रथम अनुसूची में जमानतीय के रूप में दिखाया गया है या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि दवारा जमानतीय बनाया गया है और अजमानतीय अपराध' से कोई अन्य अपराध अभिप्रेत है।"
जमानतीय अपराध में जमानत के दावे का अधिकार एक विशुद्ध और आलोप्य तथा अजेय अधिकार है। अत: यदि अभियुक्त जमानत के लिये तैयार है, तो सम्बन्धित न्यायालय या पुलिस अधिकारी उसे जमानत पर छोड़ने के लिये आबद्ध है जमानतीय अपराधों में जमानत को मंजूर करने से विवेक प्रयोग का कोई प्रश्न ही नहीं है, क्योंकि धारा 478 के शब्द आज्ञापक है।
इमारी न्याय प्रणाली का यह मूलभूत सिद्धांत है कि किसी व्यक्ति को उसकी स्वतन्त्रता से तब तक वंचित न किया जाये जब तक उसने विधि का स्पष्ट उल्लंघन न किया हो ।
मौलिक नियम यह है कि उसे जमानत पर छोड़ दिया जाये जब तक परिस्थितियों से यह न दर्शित होता हो कि अभियुक्त न्याय से भागेगा या न्याय के मार्ग में बाधा डालेगा । जब जमानत नामंजूर की जाती है तो वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त व्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बन्धन होता है और इसलिए ऐसा इनकार बिरले ही किया जाना चाहिए।
(7) जमानतपत्र
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (घ) में संज्ञेय अपराध को परिभाषित किया गया है।
जमानतपत्र" से प्रतिभूति के साथ छोड़े जाने के लिए कोई वचनबंध अभिप्रेत है;
(8) संज्ञेय अपराध-
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (छ) में संज्ञेय अपराध को परिभाषित किया गया है।
"संज्ञेय अपराध" से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसके लिए और "संज्ञेय मामला" से ऐसा मामला अभिप्रेत है जिसमें, कोई पुलिस अधिकारी प्रथम अनुसूची के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अनुसार वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकता है।
संज्ञेय अपराध के मामलो में पुलिस अधिकारी किसी भी अभियुक्त व्यक्ति को मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किये गये वारण्ट अथवा प्राधिकार के बिना भी गिरफ्तार कर सकता है, और मजिस्ट्रेट के किसी आदेश तथा निर्देश के बिना भी इस तरह के मामले का अन्वेषण कर सकता है। संज्ञेय अपराध के मामलों में अपराधों को न्याय के समक्ष लाना राज्य और पुलिस अधिकारी का उत्तरदायित्व होना है।
(9) इलैक्ट्रानिक संसूचना-
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (झ) में इलैक्ट्रानिक संसूचना को परिभाषित किया गया है।
"इलैक्ट्रानिक संसूचना" से किसी इलैक्ट्रानिक डिवाइस, जिसके अंतर्गत टेलीफोन, मोबाइल फोन या अन्य बेतार दूरसंचार डिवाइस या कंप्यूटर या श्रव्य-दृश्य प्लेयर या कैमरा या कोई अन्य इलैक्ट्रानिक डिवाइस या इलैक्ट्रानिक प्ररूप, जो केंद्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, सम्मिलित है, के साधन द्वारा किसी लिखित, मौखिक, सचित्र सूचना या वीडियो अंतर्वस्तु की संसूचना अभिप्रेत है, जिसे (चाहे किसी एक व्यक्ति से अन्य व्यक्ति को या एक डिवाइस से किसी अन्य डिवाइस को या किसी व्यक्ति से किसी डिवाइस को या किसी डिवाइस से किसी व्यक्ति को) पारेषित या अंतरित किया जाता है ।
(10) जांच
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (ट) में जांच को परिभाषित किया गया है।
"जांच" से, विचारण से भिन्न, ऐसी प्रत्येक जांच अभिप्रेत है जो इस संहिता के अधीन किसी मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाए ।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अनुसार, जांच में उस अपराध से संबंधित घटनाएं शामिल होती है, इसमें घटना से संबंधित लोग और उस घटना बारे में उनकी जानकारी या जो कुछ भी वो देखते है उसे भी शामिल किया जाता है। जांच भारतीय नागरिक सुरक्षा सहिता के अंतर्गत एक अनिवार्य स्तभं के रूप में काम करती है, जांच का मुख्य उद्देश्य मूल्यवान जानकारी और ऐसी जानकारी निकालना है जो यह साबित करने में सहायता करती है कि क्या किया गया अपराध प्रकृति में आपराधिक था ।
(11) असंज्ञेय अपराध
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (ण) में असंज्ञेय अपराध को परिभाषित किया गया है।
"असंज्ञेय अपराध" से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसके लिए और "असंज्ञेय मामला" से ऐसा मामला अभिप्रेत है जिसमें किसी पुलिस अधिकारी को वारंट के बिना गिरफ्तारी करने का प्राधिकार नहीं है ।
असंज्ञेय अपराध वो अपराध होते है जिसकी प्रकृति गंभीर नहीं होती । भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (ण) के द्वारा असंज्ञेय अपराधों के बारे में बताया गया है। जिसमें बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति असंज्ञेय अपराध करता है तो पुलिस बिना किसी वारंट के उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती ।
भारतीय नागरिक सुरक्षा सहिता, 2023 की धारा 174 में बताया गया है कि यदि असंज्ञेय अपराध के बारे यदि पुलिस को शिकायत मिलती है तो ऐसे मामले में एफ आई आर के बजाय एन सी आर (Non-congnizable Report) दर्ज की जाती है। तो उसकी जांच करने के लिए मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी पड़ती है।
उसके बाद आरोपपत्र दाखिल करने के बाद विचारण किया जाता है। जिसके बाद यदि आरोपी पर किसी तरह का मामला बनता है तो मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तार करने का आदेश जारी किया जाता है।
(12) अपराध
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (थ) में अपराध को परिभाषित किया गया है।
"अपराध" से कोई ऐसा कार्य या लोप अभिप्रेत है जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा दण्डनीय बनाया गया है और इसके अन्तर्गत कोई ऐसा कार्य भी है जिसके सम्बन्ध में पशु अतिचार अधिनियम, 1871 (1871 का 1) की धारा 20 के अधीन कोई परिवाद किया जा सकेगा।
(13) पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (द) में पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी को परिभाषित किया गया है।
"पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी" के अन्तर्गत, जब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी थाने से अनुपस्थित है या बीमारी या अन्य कारण से अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है. तब थाने में उपस्थित ऐसा पुलिस अधिकारी है. जो ऐसे अधिकारी से पंक्ति में ठीक नीचे है और कान्स्टेबल की पंक्ति से ऊपर है, या जब राज्य सरकार ऐसा निदेश दे तब, इस प्रकार उपस्थित कोई अन्य पुलिस अधिकारी भी है,
(14) स्थान
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (ध) में स्थान को परिभाषित किया गया है।
"स्थान" के अन्तर्गत गृह, भवन, तम्बू, यान और जलयान भी हैं।
(15) पुलिस रिपोर्ट
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (न) में पुलिस रिपोर्ट को परिभाषित किया गया है।
"पुलिस रिपोर्ट" से किसी पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 193 को उपधारा (3) के अधीन मजिस्ट्रेट को भेजी गई रिपोर्ट अभिप्रेत है;
(16) पुलिस थाना
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (प) में पुलिस थाना को परिभाषित किया गया है।
"पुलिस थाना" से कोई भी चौकी या स्थान अभिप्रेत है जिसे राज्य सरकार द्वारा साधारणतया या विशेषतया पुलिस थाना घोषित किया गया है और इसके अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट कोई स्थानीय क्षेत्र भी हैं।
(17) लोक अभियोजक
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (प) में लोक अभियोजक को परिभाषित किया गया है।
"लोक अभियोजक" से धारा 18 के अधीन नियुक्त कोई व्यक्ति अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत लोक अभियोजक के निदेशों के अधीन कार्य करने वाला कोई व्यक्ति भी है।
(18) उपखण्ड
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (ब) में उपखंड को परिभाषित किया गया है।
(ब) "उपखण्ड" से किसी जिले का कोई उपखण्ड अभिप्रेत है।
(19) समन-मामला
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (भ) में समन मामला को परिभाषित किया गया है।
"समन-मामला" से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो किसी अपराध से सम्बन्धित है और जो वारण्ट-मामला नहीं है;
(20) पीड़ित
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (म) में पीड़ित को परिभाषित किया गया है।
"पीड़ित" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे अभियुक्त के कार्य या लोप के कारण कोई हानि या क्षति कारित हुई है और इसके अन्तर्गत ऐसे पीड़ित का संरक्षक या विधिक वारिस भी है;
(21) वारण्ट-मामला
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 2 (1) (य) में वारण्ट-मामला को परिभाषित किया गया है।
"वारण्ट-मामला" से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध से संबंधित है।
कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें