स्वीकृति और संस्वीकृति में अन्तर-(Distinction between admission and confession) भारतीय साक्ष्य अधिनियम,2023

       स्वीकृति और संस्वीकृति में अन्तर (Distinction Between Admission and Confession)-


 

धारा 15 से 25 तक में 'स्वीकृति' का वर्णन किया गया है, जिसके अन्तर्गत स्वीकृति से भिन्न 'संस्वीकृति' भी सम्मिलित है जो कि धारा-22 से 24 तक में वर्णित है। इससे यह ज्ञात होता है कि संस्वीकृति एक उपजाति (species) है, जिसकी स्वीकृति एक जाति (genus) है। समस्त स्वीकृतियाँ संस्वीकृतियाँ नहीं हैं किन्तु समस्त संस्वीकृतियाँ स्वीकृतियाँ हैं। इस प्रकार धारा-22 से 24 तक के अन्तर्गत किसी आपराधिक कार्यवाही में, कोई कथन जो संस्वीकृति के तुल्य हो, वह धारा-19 के अन्तर्गत दीवानी की कार्यवाही में, स्वीकृति हो सकता है। धारा- 16 से 19 तक का प्रयोग केवल दीवानी के ही मामलों तक नहीं सीमित है। अपराध लगाने वाले कथन, जो BNSS- 2023 की धारा 181 से नहीं टकराते हैं, वे आपराधिक मामलों में भी स्वीकृति के रूप में ग्राह्य हो सकते हैं ।

संस्वीकृति जैसा साक्ष्य अधिनियम में उपबन्धित है किन्हीं परिस्थितियों में सह अपराधी के विरुद्ध प्रयोग की जा सकती है जबकि स्वीकृतियाँ प्रतिवादी के विरुद्ध प्रयोग नहीं की जा सकतीं।

संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति को सावधानी की चेतावनी -  

BNSS -2023 की धारा- 183 के अधीन मजिस्ट्रेट संस्वीकृति अभिलिखित करने के पूर्व कथन करने वाले अभियुक्त को चेतावनी देगा कि उसका कथन उसके विरुद्ध साक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जाएगा। आपराधिक विधिशास्त्र का यह सारभूत सिद्धान्त है।

उत्प्रेरणा आदि ऐसी होनी चाहिए कि न्यायालय के विचार में अभियुक्त को युक्तियुक्त रूप में यह समझने का पर्याप्त अवसर मिला हो कि संस्वीकृति से उसे कार्यवाही में ऐहिक रूप का फायदा होगा या वह किसी हानि से बच सकेगा। जिस हानि की धमकी दी जा रही है या जिस फायदे का वचन दिया जा रहा है वह भौतिक, दुनियावी या ऐहिक प्रकार का होना चाहिए।

संस्वीकृति स्वैच्छिक और सत्य होनी चाहिये (Confession Must be Voluntary and True) - 

वास्तव में संस्वीकृति एक बहुत मूल्यवान साक्ष्य है। यदि किसी अपराध से आरोपित व्यक्ति अपराध को स्वीकार कर लेता है तो निश्चय ही उसे उस आधार पर दण्डित किया जा सकता है। इसके पूर्व कि संस्वीकृति किसी दण्डादेश (conviction) का आधार हो, न्यायालय को इस निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है

कि-

(1) संस्वीकृति स्वेच्छापूर्वक की गई है,

(2) जो कथन किये गये हैं वे एक-दूसरे से सुसंगत हैं और परस्पर विरोधी नहीं हैं और सत्य हैं 

ऐसी संस्वीकृति जो असंगत और असत्य हो वह संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति के दण्डादेश के लिए पर्याप्त न होगी।

संस्वीकृति की सुसंगति -
 
 (A) कब सुसंगत है ?- 

संस्वीकृति को वैध या सुसंगत होने के लिए स्वतंत्र और स्वेच्छया होना आवश्यक है। संस्वीकृति स्वतंत्र और स्वेच्छया तीन मामलों में मानी जाएगी और तब वह सुसंगत होती है, अर्थात् -

(1) जबकि वह न्यायालय की राय से उत्प्रेरणा, धमकी या वचन से पैदा हुए मन पर प्रभाव के पूर्ण रूप से समाप्त हो जाने के पश्चात् की गई हो (धारा 22 का परन्तुक-  परन्तु यदि संस्वीकृति ऐसी किसी उत्प्रेरणा, धमकी, प्रपीड़न या वचन से कारित प्रभाव के पूर्णतः दूर हो जाने के पश्चात् की गई है, तो वह सुसंगत है :
 
परन्तु यह और कि यदि ऐसी संस्वीकृति अन्यथा सुसंगत है, तो वह केवल इसलिए विसंगत नहीं हो जाती कि वह गुप्त रखने के वचन के अधीन या उसे अभिप्राप्त करने के प्रयोजन के लिए अभियुक्त व्यक्ति से की गई प्रवंचना के परिणामस्वरूप, या उस समय जब कि वह मदोन्मत था, की गई थी या इसलिए कि वह ऐसे प्रश्नों के, चाहे उनका रूप कैसा ही क्यों न रहा हो, उत्तर में की गई थी जिनका उत्तर देना उसके लिए आवश्यक नहीं था, या केवल इसलिए कि उसे यह चेतावनी नहीं दी गई थी कि वह ऐसी संस्वीकृति करने के लिए आबद्ध नहीं था और उसके विरुद्ध उसका साक्ष्य दिया जा सकेगा।)

(2) यदि वह किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष न की गई हो (धारा-23(1)  पुलिस अधिकारी से की गई संस्वीकृति - (1) किसी पुलिस अधिकारी से की गई कोई भी संस्वीकृति, किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध साबित नहीं की जाएगी। ); या

(3) यदि वह मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में उस समय की गई हो जब अभियुक्त किसी पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में हो
(धारा -23(2)-
कोई भी संस्वीकृति, जो किसी व्यक्ति ने उस समय की हो जब वह पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में है, उसके विरुद्ध तब तक साबित नहीं की जाएगी, जब तक कि वह मजिस्ट्रेट की साक्षात् उपस्थिति में न की गई हो)

    परन्तु जब किसी तथ्य के बारे में यह अभिसाक्ष्य दिया जाता है कि किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से, जो पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में है, प्राप्त जानकारी के परिणामस्वरूप उसका पता चला है, तब ऐसी जानकारी में से, उतनी चाहे वह संस्वीकृति की कोटि में आती हो या नहीं, जितनी पता चले हुए तथ्य से स्पष्टतया संबंधित है, साबित की जा सकेगी।

(B) कब सुसंगत नहीं है ?

संस्वीकृति निम्न तीन मामलों में सुसंगत नहीं होगी अर्थात् अवैध होगी और जब कि वह स्वेच्छया या स्वतंत्रता से दी गई नहीं मानी जाती है :-

(1) यदि वह उत्प्रेरणा धमकी या वचन प्राधिकारवान व्यक्ति की ओर से दिया गया है और न्यायालय की राय में इसके लिए पर्याप्त है कि वह अभियुक्त व्यक्ति को यह अनुमान करने के लिए उसे युक्तियुक्त प्रतीत होने वाले आधार देती है कि संस्वीकृति करने से उसे ऐहिक रूप का फायदा होगा या किसी बुराई का परिवर्जन करेगा (धारा- 22);

(2) यदि वह पुलिस अफसर से की गई  हो (धारा-23(1).

(3) यदि संस्वीकृति उस समय किसी प्राइवेट व्यक्ति के समक्ष की गई हो जबकि अभियुक्त पुलिस की हिरासत में हो (धारा -23(2).

उपर्युक्त तीनों मामलों में अर्थात्  धारा- 22, 23(1)(2) के अन्तर्गत की गई संस्वीकृति स्वेच्छया और स्वतंत्रतया नहीं की गई है अतः वह असंगत अथवा अवैध संस्वीकृति घोषित की गई है।

वैध संस्वीकृति के लिये यह जरूरी है कि वह स्वेच्छ्या और स्वतन्त्रतया की गयी हो। संस्वीकृति को सम्बोधित करने के लिए व्यक्तियों के तीन वर्ग हैं- 

 (1) प्राइवेट व्यक्ति को या प्राधिकारवान व्यक्ति को को गई संस्वीकृति (धारा- 22, 22 का परन्तुक);
 (2) पुलिस अफसर को अथवा मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में पुलिस अफसर की अभिरक्षा में की गई संस्वीकृति (धारा- 23(1)   (2), 23 का परन्तुक);
 (3) सह-अपराधी को की गई संस्वीकृति (धारा-24)

केवल BNSS की धारा-183 के अन्तर्गत अभिलिखित की गई संस्वीकृति ग्राह्य होती है (Confessions recorded under S. 183, BNSS-2023 is only admissible) संस्वीकृति अभिलिखित करने वाले मजिस्ट्रेट को धारा-183 के अनुसार कार्य करना चाहिये अर्थात् मजिस्ट्रेट किसी संस्वीकृति को अभिलिखित करने के पूर्व उस व्यक्ति को जो कि उसे कर रहा है, बतायेगा कि-

(1) वह ऐसी संस्वीकृति करने के लिए बाध्य नहीं है और

(2) यदि वह उसे करेगा तो वह खिलाफ साक्ष्य में उपयोग की जा सकेगी, और

(3) कोई मजिस्ट्रेट ऐसी संस्वीकृति तब तक नहीं अभिलिखित करेगा जब तक कि उसे यह विश्वास करने का कारण न हो कि वह स्वेच्छापूर्वक की गई है।

प्रश्न यह है कि क्या अभियुक्त द्वारा मजिस्ट्रेट को दिया गया कोई बयान, जब कि वह पुलिस की अभिरक्षा में है, ग्राह्य है, या केवल वही संस्वीकृति ग्राह्य होती है जो किसी मजिस्ट्रेट द्वारा BNSS 2023 की धारा 183 के नियमों के अनुसार अभिलिखित की गई है? क एक पुलिस अफसर द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उसे मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया गया। मजिस्ट्रेट ने BNSS 2023 में निर्धारित औपचारिकता (formalities) का पालन नहीं किया अर्थात् उसने अभियुक्त को यह नहीं सूचित किया कि वह संस्वीकृति करने के लिये बाध्य नहीं है और यदि उसने संस्वीकृति कर लिया तो वह साक्ष्य के रूप में उसके विरुद्ध प्रयोग की जायेगी और न तो उसने अपने को सन्तुष्ट ही किया कि बयान स्वेच्छापूर्वक किया गया था। वह अभियुक्त से एक प्रश्न पूछता है कि क्या उसने अपराध किया है? अभियुक्त ने सकारात्मक उत्तर दिया। प्रश्न यह है कि क्या यह मजिस्ट्रेट के समक्ष की गई संस्वीकृति ग्राह्य है? यह माना गया है कि वह ग्राह्य नहीं है।

अंतर

स्वीकृति- (Admission )

(1) स्वीकृतियाँ साधारणतः सिविल मामलों में लागू होती हैं जिसमें  भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा-15 द्वारा परिभाषित और  भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा-16, 17 और 18 के अधीन वर्णित व्यक्तियों के कथन जो स्वीकृति की कोटि में आते हैं, शामिल हैं.

(2) स्वीकृति वाद के पक्षकारों, उनके हित प्रतिनिधियों या उनके अभिकर्ता द्वारा की जा सकती है।

(3) स्वीकृति स्वीकृत बातों का निश्चायक सबूत नहीं होती (Not Couclusive Proof of The Matters Admitted) किन्तु विबन्ध के रूप में प्रवर्तित हो सकती है (May Operate as as an Estoppel)

(4) स्वीकृति का उपयोग करने वाले की ओर से  भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा-19 में उपबन्धित अपवादों के अधीन किया जा सकता है।

(5) किसी वाद के कई प्रतिवादियों में से एक के द्वारा की गई स्वीकृति दूसरे प्रतिवादी के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं होती।

(6) स्वीकृति वह मौखिक या दस्तावेजी या इलेक्ट्रानिक रूप में अन्तर्विष्ट कथन है जो स्वीकृतिकर्ता के दायित्त्व के बारे में अनुमान इंगित करता है।

(7) स्वीकृति जाति है, संस्वीकृति उसकी उपजाति ।

संस्वीकृति (confession)

(1) संस्वीकृति का प्रयोग आपराधिक कार्यवाहियों में किया जाता है। संस्वीकृति, ऐसे व्यक्ति द्वारा जिस पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया हो, किया गया वह कथन होता है, जो या तो अपराध को वस्तुतः स्वीकार करता है (Admit in Terms The Offence) या किसी भी तरह से तात्विक रूप से उन सभी तथ्यों को स्वीकार करता है जो अपराध गठित करते हैं (At Any Rate Substantially All the Facts Which Constitute the Crime)

(2) संस्वीकृति स्वयं अभियुक्त द्वारा की जाती है।

(3) किसी संस्वीकृति को यदि उसे जानबूझकर या स्वेच्छया किया गया है (Deliberately and voluntarily Made) तो उसे निश्चायक सबूत के रूप में ग्रहण किया जा सकता है।

(4) संस्वीकृति सदैव ही उस व्यक्ति के विरुद्ध जाती है, जो उसे करता है।

(5) एक ही अपराध को करने के लिये दो या अधिक अभियुक्तों के संयुक्ततः विचारण में (Jointly tried for the same Offence) उनमें से एक के द्वारा की गई संस्वीकृतियों को सह-अभियुक्तों (Co- Accused) के विरुद्ध विचारण में लिया जा सकता है या ग्राह्य है ( भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023  की धारा-24).

(6) संस्वीकृति मौखिक या दस्तावेजी कथन है जो सीधे दोष की स्वीकृति है (Direct Admission of the guilt)

(7) संस्वीकृति उपजाति है तो स्वीकृति जाति ।















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