आदेश 23 नियम 3 सीपीसी
आदेश 23 नियम 3 सीपीसी-
वाद संस्थित किए जाने के पश्चात यदि पक्षकार अपने वाद में समझौते की इच्छुक हैं, समायोजित करना चाहते हैं, या निपटारा चाहते हैं, तो वे वैसा कर सकते हैं। परंतु उन्हें ऐसा करार या समझौते के माध्यम से करना होगा।
आदेश 23 नियम 3 के अनुसार,
जहां न्यायालय को समाधानप्रद रूप से यह साबित कर दिया जाता है कि वाद पक्षकारों द्वारा लिखित और हस्ताक्षरित किसी विधिपूर्ण करार या समझौते के द्वारा पूर्णतः या भागताः समायोजित किया जा चुका है या प्रतिवादी वाद की पूरी विषय वस्तु के या उसके भाग के संबंध में वादी की तुष्टि कर देता है। वहां न्यायालय ऐसे कराय, समझौता या तुष्टि के अभिलेखित किए जाने का आदेश करेगा और जहां तक कि वह वाद के पक्षकारों से संबंधित है, चाहे कराय, समझौते या तुष्टि की विषय वस्तु वही हो या न हो जो वाद की विषयवस्तु है, वहां तक उसके अनुरूप डिक्री पारित करेगा।
स्पष्टीकरण- कोई करार या समझौता जो संविदा अधिनियम 1972 के अधीन शून्य या शून्यकरणीय है, इस नियम के अर्थ में विधिपूर्ण नहीं समझा जाएगा।
सोमदेव बनाम रतिराम 2006 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभीनिर्धारित किया कि जहां वाद के पक्षकारों के मध्य जो समझौते के आधार पर डिक्री दी गई थी और उसमें ऐसी संपत्ति का उल्लेख था जो वाद की विषय वस्तु नहीं थी वहां ऐसी डिक्री का रजिस्ट्रेशन करवाना आवश्यक था । तो समझौते में मानी गई सभी शर्तें आदेश 23 नियम 3 के अनुसार सभी पक्षकारों द्वारा लिखित वह हस्ताक्षरित होना अपेक्षित है।
विबंध-
समझौता चूंकि न्यायालय द्वारा न तो न्यायनिर्णयन के रूप में पारित किया जाता है और न ही विवाद्यक वस्तु का विनिश्चय गुणागुण पर दिया जाता है। समझौता डिक्री पक्षकारों के करार पर न्यायालय की मुहर मात्र है इसलिए ऐसी आज्ञप्ति की प्राङन्याय के रूप में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है यह पक्षकारों के मध्य विबन्ध का सृजन करती है और उसके ऊपर उसी प्रकार बंधनकारी है जैसे कोई अन्य डिक्री प्रवर्तनीय होती है।
वैराम पिस्तोन्कजी की बनाम भारत 1992 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि समझौता डिक्री केवल पक्षकारों के मध्य विबन्ध के रूप में कार्य करती है।
त्रिलोकी नाथ सिंह बनाम अनिरुद्ध सिंह मई 2020 के बाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि समझौता डिक्री को केवल उसे मामले के पक्षकार्य ही चुनौती दे सकते हैं और वह भी केवल उसी न्यायालय में जिसने आज्ञप्ति पारित किया था आदेश 23 नियम 3, 3 'क' आदेश 43 नियम 1 'क' के विचार में समझौता डिक्री के विरुद्ध न तो पृथक वाद प्रस्तुत किया जा सकता है और न ही कोई अपील।
प्रश्न -
सिविल वादों में संधि पत्र का विस्तार क्या है ? क्या संधि पत्र में ऐसी संपत्ति सम्मिलित की जा सकती है जो वाद की विषयवस्तु नहीं है ? संधिपत्र के मामले में विबंध का सिद्धांत कहां तक लागू होता है ? वर्णन कीजिए।
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