निष्पादन कराने की न्यायालय की शक्ति (धारा 51 सीपीसी)

निष्पादन करने की न्यायालय की शक्ति(धारा 51सीपीसी)


 ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो विहित  की जाए, न्यायालय डिक्रीदार के आवेदन पर आदेश दे सकेगा की डिक्री का निष्पादन-

(क)  विनिर्दिष्ट रूप से  डिक्रीत किसी संपत्ति के परिदान द्वारा किया जाए,

(ख) किसी संपत्ति की कुर्की और विक्रय द्वारा या उसकी कुर्की के बिना विक्रय द्वारा किया जाए, 

(ग) जहां धारा 58 के अधीन गिरफ्तारी और निरोध अनुज्ञेय है  वहां गिरफ्तारी और कारागार में निरोध द्वारा किया जाएगा,

(घ) रिसीवर की मृत्यु द्वारा किया जाए,

 (ड)ऐसी अन्य रीति से किया जाए, जिसकी दिए गए अनुतोष की प्रकृति अपेक्षा करें।

प्रारंभिक डिक्री का निष्पादन-

कुछ वाद इस प्रकृति के होते हैं कि न्यायालय अंतिम डिक्री पारित करने के पूर्व प्रारंभिक डिक्री पारित करता है यथा-

(1) विभाजन एवं कब्जे का वाद

(2) बकाया किराया एवं अंतःकालीन लाभ का वाद (3)प्रशासन वाद

(4) अग्रक्रयाधिकार का वाद 

(5)साझेदारी के विघटन का वाद 

(6)पूरोबंध वाद

(7) बंधक के विक्रय का वाद

(8)बंधक के मोचन का वाद

   उपरोक्त वाद में प्रारंभिक डिक्री पारित की जाती है तथा उसका निष्पादन कर दिया जाता है तथा जब डिक्री अंतिम रूप से बन जाती है तो पुनः उसका निष्पादन होता है।

धारा 54 संपदा का विभाजन या अंश का पृथ्थकरण प्रतिडिक्री का निष्पादन आदेश  21 नियम  18 धनराशि का भुगतान आदेश 21 नियम  2-30

डिक्री की अवज्ञा में न्यायालय की शक्ति(धारा 42(1) एवं धारा 74)

धारा 42 (1) के अनुसार, अपने को भेजी गई डिक्री का निष्पादन करने वाले न्यायालय को ऐसी डिक्री के निष्पादन में वे ही शक्तियां होगी जो उसकी होती यदि यह उसके द्वारा पारित की गई होती। वे सभी व्यक्ति जो डिक्री  की अवज्ञा करते हैं या उसके निष्पादन में बाधा डालते हैं,  ऐसे न्यायालय द्वारा उसी रीति से दंडनीय होंगे मानों डिक्री  उसने ही पारित की हो और ऐसी डिक्री के निष्पादन में उसका आदेश अपील के बारे में उन्हीं नियमों के अधीन रहेगा मानों डिक्री  उसके द्वारा ही पारित की गई हो। 

धारा 54 निष्पादन का प्रतिरोध-

 जहां न्यायालय का समाधान हो जाता है कि स्थावर संपत्ति के कब्जे के लिए डिक्री के निष्पादन में विक्रीत स्थावर संपत्ति का क्रेता संपत्ति का कब्जा अभिप्राप्त करने में निर्णीत ॠणी या उसकी उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिरूध या बाधित किया गया है और यह किसी न्यायसंगत हेतुक के बिना है, वहां डिक्रीदार या क्रेता की प्रेरणा से न्यायालय निर्णीत ॠणी या अन्य व्यक्ति को सिविल कारागार में 30 दिन तक निरूद्ध करने का आदेश देगा और वह अतिरिक्त निर्देश दे सकेगा कि डिग्रीदार या  क्रेता को संपत्ति का कब्जा दिलाया जाए।

सुब्रत राय बनाम भारत संघ 2014 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि किसी पक्षकार पर वित्तीय दायित्व आरोपित किया जाता है तो इसका निष्पादन धारा 51 में व्यक्ति को जेल में बंद कराकर कर सकता है सेवी अथवा सैट के आदेश को इस धारा के अंतर्गत निष्पादित नहीं करा सकते।

प्रश्न- सीपीसी के प्रावधानों की सहायता से विवेचना कीजिए कि डिक्री का निष्पादन कैसे किया जाता है, और क्या प्रारंभिक डिक्री निष्पादित किया जा सकता है या नहीं व्याख्या कीजिए। यदि निष्पादन की अवज्ञा की जाती है तब क्या निष्पादन के प्रवर्तन के संबंध में न्यायालय की क्या शक्तियां हैं ?













कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.