अपील न्यायलय में अतिरिक्त साक्ष्य पेश किया जाना (धारा 107 आदेश 47 नियम 27 सीपीसी)
अपील न्यायालय में अतिरिक्त साक्ष्य पेश किया जाना
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 107 (1) (d) आदेश 41 नियम 27 में अतिरिक्त साक्ष्य पेश किए जाने के बारे में प्रावधान किया गया है
सामान्य नियम है कि अपीलीय न्यायालय, विचारण न्यायालय के समक्ष पेश किये गये साक्ष्य पर अपील की सुनवाई करेगा तथा अपील के निस्तारण के प्रयोजन के लिए अतिरिक्त साक्ष्य नहीं लिया जाना चाहिए। लेकिन धारा 107 (1) (d) सामान्य नियम का अपवाद है तथा अपील न्या० को अतिरिक्त साक्ष्य लेने के लिये सशक्त करती है
आदेश 42 नियम 27 में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जिसके अन्तर्गत अपील न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य चाहे मौखिक हो या दस्तावेजी पेश करने की इजाजत दे सकता है यदि - (क) उस न्यायालय ने जिसकी डिक्री की अपील की गयी है ऐसा साक्ष्य ग्रहण किया जाना चाहिए था,अथवा
(ख) वह पक्षकार जो अतिरिक्त साक्ष्य पेश करना चाहता है वह सिद्ध कर देता है कि सम्यक तत्परता का प्रयोग करने के बावजूद ऐसे साक्ष्य की जानकारी नहीं रखता था या उसे उस समय पेश नहीं कर सकता था जब वह डिक्री पारित की गयी थी जिसके विरुद्ध अपील की गयी है,अथवा
(ग) अपील न्यायालय किसी दस्तावेज के पेश किये जाने की या किसी साक्षी की परीक्षा की जाने की अपेक्षा या तो स्वयं निर्णय सुनाने में समर्थ होने के लिये या किसी अन्य सारवान हेतुक के लिए करें, तो अपील न्यायालय ऐसे साक्ष्य का लिया जाना या दस्तावेज का पेश किए जाना या साक्षी की परीक्षा का किया जाना अनुज्ञात कर सकेगा।
(2) जहां अतिरिक्त साक्ष्य पेश करने के लिये अपील न्यायालय अनुज्ञा देता है वहां न्यायालय ऐसे साक्ष्य के ग्रहण किये जाने के कारणों को लेखबद्ध करेगा।
सुरजीत सिंह बनाम गुरमीत सिंह 2014 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि अतिरिक्त साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जाने वाला साक्ष्य बैंक खाते है, यह इतना निश्चित कर देने वाला नहीं है कि इसे स्वीकार कर लिया जाये। न्याय के हित में यह आवश्यक नहीं है कि उन दस्तावेजों को अभिलेख पर लिया जाये और तब जब उनका किया जाना विचारण न्यायालय खारिज कर चुका है और उसकी पुष्टि उच्च न्यायालय ने भी की है।
एच.एस. गौतम बनाम राम मूर्ति 2021 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि जब तक आदेश 41 नियम 27, 28, 29 के तहत प्रकिया का पालन नहीं किया जाता, तब तक अपीलीय न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दे सकते।
प्रश्न- सीपीसी के आदेश 41 नियम 27 के अंतर्गत अपील न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य लेने से कब इंकार कर सकता है। इस विषय पर निर्णयज विधि के संदर्भ में व्याख्या कीजिए।
(b) क्या ऐसी शक्ति पुनरीक्षण करने वाले न्यायालय को भी प्राप्त है ? सुसंगत निर्णयज विधियों के साथ अपने उत्तर को पूर्ण कीजिए।
👉 दण्ड प्रक्रिया संहिता
धारा 391 के अनुसार, अध्याय 23 के अधीन किसी अपील पर विचार करने में यदि अपील न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक समझता है तो वह अपने कारणों को अभिलिखित करेगा और ऐसा साक्ष्य या तो स्वयं ले सकता है, या मजिस्ट्रेट द्वारा या जब अपील न्यायालय उच्च न्यायालय है, तब सेशन न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा लिये जाने का निर्देश दे सकता है।
अतिरिक्त साक्ष्य जब सेशन न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा लिया जाता है, तब वह उनके द्वारा प्रमाणित करके अपील न्यायालय को भेजा जाता है और वह अपील न्यायालय उसके बाद अपील को निपटाने के लिये अग्रसर होता है।
अतिरिक्त साक्ष्य लेते समय अभियुक्त या उसेक प्लीडर को उपस्थित होने का अधिकार रहता है, और उस अतिरिक्त साक्ष्य का लिया जाना अध्याय 23 के उपबंधो के अधीन होता है मानो वह कोई जांच हो।
वीर सिंह Vs उत्तर प्रदेश राज्य 1977 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि किसी उपर्युक्त मामले में अतिरिक्त साक्ष्य का लिया जाना अपील न्यायालय की विवेकीय शक्ति के अन्तर्गत आता है। इस विवेकीय शक्ति का प्रयोग अभियोजन के साक्ष्य में किसी अन्तराल अथवा कमी को पूरा करने के लिये नहीं किया जाना चाहिए।
प्रश्न 29. अपील के स्तर पर, अतिरिक्त साक्ष्य की विधि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 391 के अंतर्गत दी गयी है और इसके खंड (4) के अधीन साक्ष्य का लिया जाना दण्ड प्रक्रिया संहिता के अध्याय XXIII के उपबंधों के अधीन होना अनिवार्य बनाता है, मानो कि वह कोई जांच हो।
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