न्यायिकेत्तर संस्वीकृति का प्रत्याहरण

 न्यायिकेत्तर संस्वीकृति का प्रत्याहरण- (Retracted extra- judicial confession)


संस्कृति को न्यायिक और न्यायिकेत्तर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है- 
न्यायिकेत्तर संस्वीकृति स्वैच्छिक होनी चाहिए। यह अभियुक्त द्वारा मजिस्ट्रेट के सामने या न्यायालय के अतिरिक्त अन्य कहीं की जाती है यह किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के सामने की जा सकती है। जब न्यायिकेत्तर संस्वीकृति को वापस ले लिया जाता है। या इनकार कर दिया जाता है तो इसे न्यायिकेत्तर संस्वीकृति का प्रत्याहरण कहते है चूंकि यह कमजोर प्रकृति का साक्ष्य है और जब उसे वापस ले लिया जाता है।  तो उसकी साक्ष्यिक प्रकृति और कमजोर हो जाती है अतः प्रत्याहारी न्यायिकेत्तर संस्वीकृति के आधार पर अभियुक्त की दोषसिध्दि अत्यंत खतरनाक होती है। किंतु अन्य पर्याप्त स्वतंत्र साक्ष्य हो तो प्रत्याहारी न्यायिकेत्तर संस्वीकृतियां  से उसे पुष्ट किया जा सकता है।

अर्थात- संस्वीकृति करके पीछे उससे मुकर जाना (Retracted confession) "संस्वीकृति करके फिर उससे मुकर जाना" वह कथन है जो अभियुक्त व्यक्ति द्वारा विचारण के शुरू होने के पहले की जाती है। जिसके द्वारा वह स्वीकार करता है कि उसने अपराध किया हैं। किन्तु विचारण के दौरान वह कहता है कि उसने ऐसा नहीं किया था। मान लीजिये एक गम्भीर अपराध किसी स्थान पर किया जाता है। पुलिस उस अपराध की छानबीन करती है। अभियुक्त को यह जानकर कि उसने अपराध किया है, पुलिस उसे मजिस्ट्रेट के सामने भेजती है। मजिस्ट्रेट के सामने अभियुक्त को यह स्वीकार करना है कि उसने अपराध किया है। किन्तु जब अभियुक्त विचारण न्यायालय के सामने उपस्थित होता है तो वह कहता है कि उसने ऐसा कोई कथन नहीं किया था या उसने अपना कथन पुलिस के असम्यक दबाव में दिया था। इस मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष की गई संस्वीकृति को वापस ली गई या मुकर गई संस्वीकृति कहते हैं।

    श्री शैल नगेशी पारे बनाम महाराष्ट्र राज्य 1985 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित  किया कि यदि अभियुक्त ने संस्वीकृति वापस ले लिया है तो यह आवश्यक हो जाता है कि अभियुक्त को दोषसिध्दि प्रदान करने से पहले संस्वीकृति को संपोषक साक्ष्य से संपुष्ट होना चाहिए।

सखाराम बनाम महाराष्ट्र राज्य 1994 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय किया कि अब यह सुव्यवस्थित नियम हो चुका है कि यद्यपि वापस ली गई न्यायालय-बाह्य संस्वीकृति (retracted extra- judicial confession) अच्छा साक्ष्य है परन्तु इसकी स्वतंत्र साक्ष्यों द्वारा सम्पुष्टि होनी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त न्यायालय को संतुष्ट होना चाहिए कि आरोपित संस्वीकृति सत्य तथा स्वतंत्र एवं स्वेच्छया की गई थी।

पक्किरी सामी बनाम स्टेट आफ टी० एन० 1997 के वाद में ग्राम प्रशासकीय अधिकारी की मौजूदगी में ग्राम सहायक द्वारा एक न्यायेतर संस्वीकृति अभिलिखित की गई। दं० प्र० सं० की धारा 164 के अधीन चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित अपने कथन में अभियुक्त ने उसका कोई संदर्भ नहीं दिया और केवल यह कहा था कि वह निर्दोष था और उसने कोई अपराध नहीं किया था। यह अभिनिर्धारित हुआ कि इसे संस्वीकृति से मुकरना नहीं कहा जा सकता है। मामले की परिस्थितियों में ग्राम सहायक से की गई संस्वीकृति को विश्वसनीय माना गया। अगर न्यायालय का समाधान हो कि संस्वीकृति, जैसे कि पहले लिखी गई थी, ऐच्छिक थी, इसे दोषसिद्धि का आधार बनाया जा सकता है। केवल इतना ही अन्तर संस्कृति वापस लेने से हो सकता है कि न्यायालय फिर से देखेगा कि संस्वीकृति वास्तव में स्वतंत्र थी। ऐसी संस्कृति के आधार पर सजा बोली जा सकती है अगर सम्पोषण हो जाए।

स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम पी० रवि कुमार 2018 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि-मात्र न्यायेतर संस्वीकृति के आधार पर अभियुक्त को तब तक दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता जब तक किसी अन्य स्वतंत्र साक्ष्य से उसकी अभिपुष्टि न हो जाये।

रामलाल बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश 2018' के मामले में अभियुक्त (बैंक क्लर्क) पर खाताधारियों के धन का दुर्विनियोग करने का आरोप था। उसके द्वारा अपने उच्च अधिकारियों के समक्ष न्यायेतर संस्वीकृति की गई जिसका स्वैच्छिक होना पाया गया। अभियुक्त को दोषसिद्ध किया गया।

दत्तात्रेय बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र 2019 के मामले में अभियुक्त पर एक 5 वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार का आरोप था। उस पर हत्या का आरोप भी था। अभियुक्त को दोषसिद्ध किया गया, क्योंकि- 

(i) अभियुक्त की सूचना पर मृतका के कपड़ों का थैला बरामद किया गया।

 (ii) मृतका के अभिभावकों द्वारा उस रक्त-रंजित थैले को पहचान लिया गया। 

(iii) पहचान परेड में साक्षियों द्वारा अभियुक्त को थैले सहित पहचान लिया गया।

 (iv) अभियुक्त के डी०एन०ए० परीक्षण से भी घटना की पुष्टि हो गई थी।

(v) अभियुक्त ने पंचों की उपस्थिति में अपनी पत्नी के समक्ष न्यायेतर संस्वीकृति (extra-judicial confession) भी की कि उसके द्वारा बालिका के साथ बलात्कार किया गया था




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