बहरे और गूंगे व्यक्ति का साक्ष्य
बहरे और गूंगे व्यक्ति का साक्ष्य-
साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 में बहरे और गूंगे व्यक्ति के साक्ष्य के बारे में प्रावधान किया गया है-
ऐसा कोई साक्षी जो बोलने में असमर्थ है, ऐसे किसी अन्य रीति से, जिससे वह उसे बोधगम्य बना सकता है, जैसे लिखकर या संकेतों द्वारा, अपना साक्ष्य दे सकेगा, किंतु ऐसा लेखन लिखित रूप में होना चाहिए और खुले न्यायालय में प्रकट संकेत चिन्ह तथा इस प्रकार का दिया गया साक्ष्य मौखिक साक्ष्य मान जाएगा।
परंतु यदि मौखिक साक्ष्य संसूचित करने में असमर्थ है तो न्यायालय कथन अभिलिखित करने में द्विभाषिए या विशेष प्रबोधक की सहायता लेगा और ऐसे कथन की वीडियो फिल्म तैयार की सकेगी।
क्वीन बनाम अब्दुल्ला के वाद में मरणासन्न स्त्री जो बोलने में असमर्थ थी चोट के बारे में किए गए प्रश्नों के संकेतों द्वारा दिए गए उत्तर और आक्रमणकारी का नाम कथन के रूप में ग्राहय किया गया।
पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ए.पी. हाई कोर्ट बनाम लिंगी शेट्टी सीनू 1997 के वाद में निर्धारित किया गया कि जहां बलात्संग की शिकार अभियोक्त्री गूंगी थी, गूगों के लिए राजकीय आवासीय विद्यालय के प्रधानाचार्य का उसके अनुवादक के रूप में साक्ष्य विशेषज्ञ साक्ष्य है और ऐसे अनुवादक की सहायता से उसके परीसाक्ष्य पर निर्भर किया जा सकता है।
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