धारा-35 'क' (सीपीसी)मिथ्या या तंग करने वाले दावों या प्रतिरक्षाओं के लिए प्रतिकारात्मक खर्चे-

 

धारा-35 'क' (सीपीसी)-

 


मिथ्या या तंग करने वाले दावों या प्रतिरक्षाओं के लिए प्रतिकारात्मक खर्चे-

(1) यदि किसी वाद में या अन्य कार्यवाही में जिसके अन्तर्गत निष्पादन कार्यवाही आती है, किन्तु अपील या पुनरीक्षण नहीं आता है, कोई पक्षकार दावे या प्रतिरक्षा के बारे में इस आधार पर आक्षेप करता है कि दावा या प्रतिरक्षा या उसका कोई भाग, जहां तक वह आक्षेपकर्ता के विरुद्ध है, वहां तक उस पक्षकार के ज्ञान में मिथ्या या तंग करने वाला है, जिसके द्वारा वह किया गया है और तत्पश्चात् यदि ऐसा दावा या ऐसी प्रतिरक्षा वहां तक पूर्णतः या भागतः नामंजूर परित्यक्त या प्रत्याहत की जाती है, जहां तक वह आक्षेपकर्ता के विरुद्ध है, तो न्यायालय यदि ठीक समझे, तो ऐसे दावे या प्रतिरक्षा को मिथ्या या तंग करने वाली ठहराने के लिए अपने, कारणों को अभिलिखित करने के पश्चात् यह आदेश कर सकेगा कि आक्षेपकर्ता को प्रतिकर के रूप में खर्चे का संदाय वह प्रतिवादी करे, जिसके द्वारा ऐसा दावा या प्रतिरक्षा की गई है। 

(2) कोई भी न्यायालय तीन हजार रुपये की रकम और अपनी धन सम्बन्धी अधिकारिता की परिसीमा तक की रकम में से जो भी रकम कम हो, उससे अधिक रकम के संदाय के लिए कोई आदेश नहीं करेगा-


परन्तु,

जहां किसी ऐसे न्यायालय की जो प्रान्तीय लघुवाद न्यायालय अधिनियम, 1887 या भारत के किसी भाग में, जिस पर उक्त अधिनियम का विस्तार नहीं है, प्रवृत्त तत्समान विधि के अधीन लघुवाद न्यायालय की अधिकारिता का, प्रयोग करता है और जो ऐसे अधिनियम या विधि के अधीन गठित न्यायालय नहीं है, अधिकारिता की धन संबंधी परिसीमाएं दो सौ पचास रुपये से कम है वहां उच्च न्यायालय ऐसी रकम, जो दो सौ पचास रुपये से अनधिक हो और उन परिसीमाओं से एक सौ रुपये से अधिक न हो, खर्चे के रूप में इस धारा के अधीन अभिनिर्णीत करने की शक्ति उस न्यायालय को दे सकेगा-

परन्तु,

यह और है कि उच्च न्यायालय ऐसी रकम को परिसीमित कर सकेगा जिसे कोई न्यायालय या न्यायालयों का वर्ग इस बात के अधीन खर्चे के रूप में अधिनिर्णीत करने के लिए सशक्त है।

(3) कोई भी व्यक्ति, जिसके विरुद्ध इस धारा के अधीन आदेश किया गया है, इस कारण से कोई छूट किसी ऐसे आपराधिक दायित्व से नहीं पायेगा, जो उनके द्वारा किये गये दावे या प्रतिरक्षा के सम्बन्ध में है। 

(4) किसी मिथ्या या तंग करने वाले दावे या प्रतिरक्षा के संबंध में इस धारा के अधीन अधिनिर्णीत किसी प्रतिकर की रकम को ऐसे दावे या प्रतिरक्षा के सम्बन्ध में नुकसानी या प्रतिकर के लिये किये गये किसी पश्चात्वर्ती वाद में हिसाब में लिया जायेगा।

यह धारा प्रतिकारात्मक खर्च की व्यवस्था करती है। यह धारा, धारा 35 में वर्णित सामान्य नियम कि "खर्च मात्र क्षतिपूर्ति हैं और क्षतिपूर्ति से कभी अधिक नहीं" का एक अपवाद है। यह धारा वहां लागू होती है, जहां धारा 35 पर्याप्त प्रतिकर की व्यवस्था नहीं करती। इस प्रावधान के अन्तर्गत जहां न्यायालय को यह समाधान होता है कि मुकदमा तंग करने के उद्देश्य से प्रेरित है और आधारहीन है वहां यह भयपरितकारी कार्यवाही कर सकता है। यह धारा केवल वाद पर लागू होती है, अपील एवं पुनरीक्षण पर नहीं।


इस धारा की प्रयोज्यता के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है-

(1) दावा या प्रतिवाद परेशान करने वाला होना आवश्यक है,

(2) उसका ऐसे पक्षकार के ज्ञान में मिथ्या या परेशान करने वाला होना आवश्यक है, जिसने कि इनके बारे में आपत्ति की हो,

(3) ऐसे दावे या प्रतिवाद को पूर्णतः या अंशतः अस्वीकार कर दिया गया हो, वापस ले लिया गया हो या छोड़ दिया गया हो,

(4) यह आपत्ति कि वाद मिथ्या या परेशान करने वाला था, सर्वप्रथम अवसर पर की गई हो, प्रतिकारात्मक खर्चों के लिए निर्णय देने के पूर्व न्यायालय का इस बात से समाधान होना आवश्यक होगा कि-

(1) यह दावा वादी के ज्ञान में मिथ्या और परेशान करने वाला था,

(2) न्याय के हित में यह अपेक्षित है, एवं

(3) प्रतिवादी के द्वारा सर्वप्रथम अवसर पर आपत्ति प्रस्तुत कर दी गई थी।

क्षतिपूरक वाद व्यय मंजूर किये जाने का उद्देश्य स्पष्ट रूप से न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकना और पीड़ित पक्षकार को न्याय हित में उस वाद व्यय की क्षतिपूर्ति कराना है जो उसे विपक्षी पक्षकार के झूठे या परेशान करने वाले किसी दावे या प्रतिरक्षा के कारण से उठाना पड़ा था।

सर शोभासिंह एण्ड सन्स प्रा० लि० बनाम शशि मोहन कपूर  2019 के मामले में प्रत्यर्थी द्वारा डिक्री के निष्पादन में रुकावट पैदा करने के लिए तुच्छ आपत्तियाँ पेश किए जाने के लिए उस पर 5 लाख रुपये का प्रतिकारात्मक खर्चा अधिरोपित किया गया। उच्चतम न्यायालय ने खर्चा अधिरोपित किए जाने को तो उचित माना लेकिन खर्चे की राशि अत्यधिक होने से उसे कम करके 50,000/- रुपये किया गया।

प्रश्न-निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए -

(1) प्रतिकारात्मक खर्च



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