खर्च - धारा-35(सीपीसी)-


 खर्च - धारा-35(सीपीसी)-


 (1) ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के जो विहित की जाएँ और तत्समय प्रवृत किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, सभी वादों के और उनसे आनुषंगिक खचों का दिलाना न्यायालय के विवेकाधिकार में होगा और न्यायालय को यह अवधारण करने की कि ऐसे खर्चे किसके द्वारा या किस सम्पत्ति में से और कितने तक दिए जाने हैं, और पूर्वोक्त प्रयोजनों के लिए सभी आवश्यक निर्देश देने की पूरी शक्ति होगी। यह तथ्य कि न्यायालय को वाद का विचारण करने की अधिकारिता नहीं है, ऐसी शक्तियों के प्रयोग के लिए वर्जन नहीं होगा।

(2) जहां न्यायालय यह निदेश देता है कि खर्चे परिणाम के अनुसार नहीं दिए जायेंगे वहां न्यायालय अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा।

परिव्यय देने का उद्देश्य किसी भी पक्षकार की, उन खचों के खिलाफ क्षतिपूर्ति करना होता है, जो सफलतापूर्वक उसके अपने अधिकार की रक्षा करने में हुए हैं। मुकदमों और आवेदनों में का परिव्यय अदालत के विवेकाधिकार पर निर्भर होता है। यह विवेकाधिकार बहुत विस्तृत है, लेकिन इसका प्रयोग न्यायिक रूप से और नियत सिद्धांतों पर किये जाने की है। और ये नियत सिद्धान्त है- साम्य, न्याय और शुद्ध अन्तःकरण (Equity, Justice and good Conscience) के सिद्धान्त। सामान्य नियम तो यह है कि खर्चे घटना का अनुसरण करेंगे, अर्थात् सफल पक्षकार तब तक खर्च प्राप्त करने के लिए अधिकृत है जब तक कि वह दुराचरण का दोषी न हो या इसको खर्चा न दिलवाये जाने के लिये कोई और अच्छा कारण नहीं हो।

खर्चे के विरुद्ध अपील -

अब यह एक सुस्थापित विधि है कि यदि खर्च संबंधी आदेश  में कोई सिद्धान्त का प्रश्न अन्तर्ग्रस्त हो तो केवल खर्चों के बारे में अपील तब की जा सकेगी जबकि  खर्चे किसी आज्ञप्ति के द्वारा प्रदान किये गये हौं।

उदाहरणार्थ-जहां कि किसी ऐसे औपचारिक पक्षकार से, जिसके विरुद्ध किसी अनुतोष का दावा न किया गया हो, वाद का खर्चा दिलवाया जाय, या जहाँ कि विवेक का दोषपूर्णतया प्रयोग किया गया हो, जैसे किसी सफल मुकदमा करने वाले व्यक्ति को अपने खर्चों से वंचित रखा जाय या उससे हारने वाले पक्षकार को खर्चा दिलवाया जाय आदि।

पुनर्विलोकन-

 महादेव गनेश बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, 1976 बाम्बे के वाद में कहा गया कि बड़ा ही मजबूत मामला बनने पर खर्चा सम्बन्धी आदेश पर पुनर्विचार किया जा सकता है।

पुनरीक्षण - श्रीमती गद्दोबाई बनाम मि. हफी खान 1951  के वाद में खर्चे के आदेश पारित करने से सम्बन्धित गलती के कारण पुनरीक्षण नहीं किया सकता। किन्तु जहां न्यायालय को अधिकारिता नहीं प्राप्त है और यह खर्चे सम्बन्धित आदेश में कोई संशोधन करता है, वहां पुनरीक्षण किया जा सकता है।

खर्चे जो न्यायालय द्वारा दिलाये जायेंगे - 

आदेश 20 (क) के नियम 1 के अधीन न्यायालय निम्न प्रकार के विभिन्न मद मंजूर कर सकेगा-

(1) वाद दायर किये जाने के पूर्व किसी ऐसी सूचना के दिये जाने के लिए किया गया खर्च, जो विधि द्वारा दी जाने के लिए अपेक्षित हो,

(2) किसी ऐसी सूचना पर किया गया खर्च, जो विधि द्वारा दी जाने के लिए अपेक्षित होने पर भी वाद के किसी पक्षकार के द्वारा दूसरे पक्षकार को वाद दायर किये जाने के पूर्व दी गयी हो,

(3) किसी पक्षकार द्वारा फाइल किये गये अभिवचनों को टाइप करने, लिखने या मुद्रित करने पर उपगत व्यय,

(4) वाद के प्रयोजनों के लिए, अभिलेखों के निरीक्षण के लिए किसी पक्षकार द्वारा संदत्ता प्रभार,


(5) किसी पक्षकार द्वारा साक्षियों को पेश करने के लिए उपगत व्यय चाहे वे न्यायालय के माध्यम से समन न किए गये हों, और

(6) अपीलों की दशा में किसी पक्षकार द्वारा निर्णयों और डिक्रियों की प्रतियां प्राप्त करने में उपगत प्रभार, जो अपील के ज्ञापन के साथ फाइल की जाने के लिए अपेक्षित है।

इस अधिनियम के अधीन खर्चों की मंजूरी, उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त बनाये गये नियमों के अनुसार दी जा सकेगी।


कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.