सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 37 में डिक्री पारित करने वाले न्यायालय की परिभाषा एवं धारा 39 में डिक्री का अंतरण के बारे में प्रावधान किया गया है।
धारा-37 डिक्री पारित करने वाले न्यायालय की परिभाषा-
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 37 में डिक्री पारित करने वाले न्यायालय की परिभाषा एवं धारा 39 में डिक्री का अंतरण के बारे में प्रावधान किया गया है।
धारा-37 जब तक कि कोई बात, विषय या संदर्भ में विरुद्ध न हो, डिक्रियों के निष्पादन के संबंध में 'डिक्री पारित करने वाला न्यायालय' पद के या उस प्रभाव वाले शब्दों के बारे में यह समझा जायेगा कि उसके या उनके अंतर्गत-
(क) जहां निष्पादित की जाने वाली डिक्री अपीली अधिकारिता के प्रयोग में पारित की गई है वहां प्रथम बार का न्यायालय आता है, तथा
(ख) जहां प्रथम बार का न्यायालय विद्यमान नहीं रह गया या उसे निष्पादित करने की अधिकारिता उसे नहीं रह गई है। वहां वह न्यायालय आता है जो, यदि वह वाद जिसमें डिक्री पारित की गई है, डिक्री के निष्पादन के लिये आवेदन देने के समय संस्थित किया जाता तो ऐसे वाद का विचारण करने की अधिकारिता रखता।
स्पष्टीकरण-
प्रथम बार के न्यायालय की डिक्री का निष्पादन करने की अधिकारिता केवल इस आधार पर समाप्त नहीं हो जाती कि उस वाद के संस्थित किये जाने के पश्चात् जिसमें डिक्री पारित की गई थी या डिक्री पारित किये जाने के पश्चात् उस न्यायालय की अधिकारिता से कोई क्षेत्र किसी अन्य न्यायालय की अधिकारिता में अन्तरित कर दिया गया है किन्तु ऐसे प्रत्येक मामले में, ऐसे अन्य न्यायालय को भी डिक्री के निष्पादन की अधिकारिता होगी यदि डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन करने के समय, उसे उक्त वाद का विचारण करने की अधिकारिता होगी।
धारा-38 के अनुसार, डिक्री या तो उसे पारित करने वाले न्यायालय द्वारा या उस न्यायालय द्वारा, जिसे वह निष्पादन के लिए भेजी गई है, निष्पादित की जा सकेगी।
धारा-39 डिक्री का अन्तरण (1) डिक्री पारित करने वाला न्यायालय डिक्री-धारक के आवेदन पर उसे सक्षम अधिकारिता वाले अन्य न्यायालय को निष्पादन के लिए भेजेगा-
(क) यदि वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध डिक्री पारित की गई है, ऐसे अन्य न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है या कारोबार करता है या अभिलाभ के लिए स्वयं काम करता है, अथवा
(ख) यदि ऐसे व्यक्ति की सम्पत्ति जो ऐसी डिक्री की तुष्टि के लिए पर्याप्त हो, डिक्री पारित करने वाले न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर नहीं है और ऐसे अन्य न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर है, अथवा
(ग) यदि डिक्री उसे पारित करने वाले न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के बाहर स्थित स्थावर सम्पत्ति के विक्रय या परिदान का निदेश देती है, अथवा
(घ) यदि डिक्री पारित करने वाला न्यायालय किसी अन्य कारण से जिसे वह लेखबद्ध करेगा, यह विचार करता है कि डिक्री का निष्पादन ऐसे अन्य न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए।
(2) डिक्री पारित करने वाला न्यायालय स्वप्रेरणा से उसे सक्षम अधिकारिता वाले किसी भी अधीनस्थ न्यायालय को निष्पादन के लिए भेज सकेगा।
(3) इस धारा के प्रयोजनों के लिए, किसी न्यायालय को सक्षम अधिकारिता वाला न्यायालय समझा जाएगा, यदि उस न्यायालय को डिक्री के अंतरण के लिए आवेदन करने के समय, ऐसे न्यायालय को उस वाद का विचारण करने की अधिकारिता होती जिसमें ऐसी डिक्री पारित की गई थी।
(4) इस धारा की किसी बात से यह नहीं समझा जायेगा कि वह उस न्यायालय को, जिसने डिक्री पारित की है, अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के बाहर ऐसी डिक्री को, किसी व्यक्ति या सम्पत्ति के विरुद्ध निष्पादन के लिए अधिकृत करती है।
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