धारा 42 अंतरित डिक्री के निष्पादन में न्यायालय की शक्तियां -




धारा 42 अंतरित डिक्री के निष्पादन में न्यायालय की शक्तियां -


(1) अपने को भेजी गई डिक्री का निष्पादन करने वाले न्यायालय को ऐसी डिक्री के निष्पादन में वे ही शक्तियां होगी जो उसकी होती यदि वह उसके ही द्वारा पारित की गई होती। वे सभी व्यक्ति, जो डिक्री की अवज्ञा करते हैं या उसके निष्पादन में बाधा डालते हैं, ऐसे न्यायालय द्वारा उसी रीति से दण्डनीय होंगे मानो डिक्री उसने ही पारित की हो और ऐसी डिक्री के निष्पादन में उसका आदेश अपील के बारे में उन्हीं नियमों के अधीन रहेगा मानो डिक्री उसके ही द्वारा पारित की गई हो।

(2) उपधारा (1) के उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उस उपधारा के अधीन न्यायालय की शक्तियों के अंतर्गत डिक्री पारित करने वाले न्यायालय की निम्नलिखित शक्तियां होगी अर्थात्- 

(क) धारा 39 के अधीन किसी अन्य न्यायालय को निष्पादन के लिए डिक्री भेजने की शक्ति,

(ख) धारा 50 के अधीन मृत निर्णीत ऋणी के विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध डिक्री का निष्पादन करने की शक्ति,

(ग) डिक्री को कुर्क करने का आदेश देने की शक्ति।

(3) उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट शक्तियों के प्रयोग में आदेश पारित करने वाला न्यायालय उसकी एक प्रति डिक्री पारित करने वाले न्यायालय को भेजेगा।

(4) इस धारा की किसी बात से यह नहीं समझा जायेगा कि वह उस न्यायालय को जिसको डिक्री निष्पादन के लिए भेजी गई है, निम्नलिखित शक्तियों में से कोई शक्ति प्रदान करती है, अर्थात-

(क) डिक्री के अंतरिती की प्रेरणा से निष्पादन का आदेश देने की शक्ति,

(ख) किसी फर्म के विरुद्ध पारित डिक्री की दशा में आदेश 21 के नियम 50 के उपनियम (1) के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) में निर्दिष्ट व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी डिक्री के निष्पादन की इजाजत देने की शक्ति।

धारा 47 वे प्रश्न जिनका अवधारण डिक्री का निष्पादन करने वाला न्यायालय करेगा-

 (1) वे सभी प्रश्न, जो उस वाद के पक्षकारों या उनके प्रतिनिधियों के बीच पैदा होते हैं, जिनमें डिक्री पारित की गई थी और जो डिक्री के निष्पादन, उन्मोचन या तुष्टि से सम्बन्धित है। डिक्री का निष्पादन करने वाले न्यायालय द्वारा, न कि पृथक वाद द्वारा, अवधारित किये जायेंगे।

(2) जहां यह प्रश्न पैदा होता है कि कोई व्यक्ति किसी पक्षकार का प्रतिनिधि है या नहीं है। वहां ऐसा प्रश्न उस न्यायालय द्वारा इस धारा के प्रयोजनों के लिए अवधारित किया जाएगा।

धारा 46 आज्ञापत्र-

 (1) जब कभी डिक्री पारित करने वाला न्यायालय डिक्रीदार के आवेदन पर ठीक समझे तब वह किसी ऐसे अन्य न्यायालय को, जो उस डिक्री के निष्पादन के लिये सक्षम है, यह आज्ञापत्र निकाल सकेगा कि वह निर्णीत ऋणी की उस आज्ञापत्र में विनिर्दिष्ट कोई भी सम्पत्ति कुर्क कर ले।

(2) वह न्यायालय, जिसे आज्ञापत्र भेजा जाता है, उस सम्पत्ति को ऐसी रीति से कुर्क करने के लिए कार्यवाही करेगा, जो डिक्री के निष्पादन में सम्पत्ति की कुर्की के लिए विहित है,

परन्तु,

जब तक कि कुर्की की अवधि डिक्री पारित करने वाले न्यायालय के आदेश द्वारा बढ़ा न दी गई हो या जब तक कि कुर्की के अवसान के पूर्व कुर्की करने वाले न्यायालय को अंतरित न कर दी गई हो और डिक्रीदार ने ऐसी सम्पत्ति के विक्रय के आदेश के लिए आवेदन न कर दिया हो, आज्ञापत्र के अधीन कोई भी कुर्की दो मास से अधिक चालू न रहेगी। 

प्रश्न- डिक्री का निष्पादन करने वाले न्यायालय की शक्तियों की चर्चा कीजिए। ऐसे न्यायालय द्वारा किन प्रश्नों का अवधारण अथवा विनिश्चयन किया जा सकता है। डिक्री के निष्पादन के संदर्भ में आज्ञापत्र की संकल्पना को स्पष्ट कीजिए। 




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