सीपीसी धारा 132,133,135

 कुछ स्त्रियों की स्वीय उपसंजाति से छूट-


सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 132 में कुछ स्त्रियों की स्वीय उपसंजाति से छूट प्रदान की गयी है।

धारा 132 के अनुसार, (1) जो स्त्रियां देश की रूढ़ियों और रीतियों के अनुसार लोगों के सामने आने के लिये विवश नहीं की जानी चाहिए, उन्हें न्यायालय में स्वीय उपसंजाति से छूट होगी।

(2) इसमें अन्तर्विष्ट कोई भी बात किसी ऐसे मामले में जिसमें स्त्री की गिरफ्तारी इस संहिता द्वारा निषिद्ध नहीं है, सिविल आदेशिका के निष्पादन में किसी स्त्री की गिरफ्तारी से छूट देने वाली नहीं समझी जायेगी।

मोहम्मद इस्माइल बनाम वजीर बीबी साहिबा, 1951 मद्रास के वाद में कहा गया कि देश की रूढ़ियों और रीतियों से तात्पर्य, समूचे देश की रूढ़ियों और रीतियों से नहीं है, अपितु किसी समुदाय विशेष, वर्ग विशेष या उसके अंग विशेष, जिससे महिला सम्बन्धित है या किसी स्थान विशेष में प्रचलित रीति और रिवाजों से है। लेकिन ऐसे रीति-रिवाज किसी व्यक्ति विशेष के नहीं होने चाहिए।

परन्तु इस धारा के प्रावधानों से यह नहीं मानना चाहिए कि किसी महिला को दीवानी प्रक्रिया के निष्पादन में निरोध से पूरी छूट मिली हुई है। महिला को बन्दी बनाया जा सकता है बशर्ते कि संहिता उसके लिये निषेध न करती हो।

इस धारा का मात्र उद्देश्य उन परिस्थितियों में (जिनका वर्णन उपधारा (1) में किया गया है) महिला को न्यायालय में स्वीय उपसंजाति से छूट देना है।

(ख) अन्य व्यक्तियों को छूट-

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 133 में अन्य व्यक्तियों को छूट के बारे में प्रावधान किया गया है।

धारा-133 के अनुसार, (1) निम्नलिखित व्यक्ति न्यायालय में स्वीय उपसंजाति से छूट पाने के हकदार होंगे, अर्थात्

(1) भारत का राष्ट्रपति

(ii) भारत का उपराष्ट्रपति

(iii) लोकसभा अध्यक्ष

(iv) संघ के मंत्री

(v) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश

(vi) राज्यों के राज्यपाल और संघ राज्यक्षेत्रों के प्रशासक

(vii) राज्य विधानसभाओं के अध्यक्ष

(viii) राज्य विधान परिषद् के सभापति

(ix) राज्यों के मंत्री

(x) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, तथा

(xi) वे व्यक्ति जिन्हें धारा 87 'ख' लागू होती है।

(3) जहां कोई व्यक्ति ऐसी छूट के विशेषाधिकार का दावा करता है और उसके परिणामस्वरूप उसकी परीक्षा कमीशन द्वारा करना आवश्यक है वहां यदि उसके साक्ष्य की अपेक्षा करने वाले पक्षकार ने कमीशन का खर्चा नहीं दिया है तो वह व्यक्ति इसका खर्चा देगा।

धारा 133 में वर्णित व्यक्तियों को न्यायालय में स्वीय उपसंजाति से छूट मिली हुई है अगर वह न्यायालय में स्वयं उपस्थित होना चाहते हैं तो हो सकते हैं किन्तु उन्हें मजबूर नहीं किया जा सकता। अगर ऐसे व्यक्ति की परीक्षा वाद के या अन्य दीवानी कार्यवाही के सम्बन्ध में आवश्यक है तो ऐसी परीक्षा कमीशन के माध्यम से होगी।

(ग) सिविल आदेशिका के अधीन गिरफ्तारी से छूट-

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 135 में सिविल आदेशिका के अधीर गिरफ्तारी से छूट के बारे में आवश्यक प्रावधान किया गया है।

धारा 135 के अनुसार, (1) कोई भी न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट यो अन्य न्यायिक अधिकारी उस समय सिविल आदेशिका के अधीन गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा, जब वह अपने न्यायालय को जा रहा हो, उसमें पीठासीन हो यो वहाँ से लौट रहा हो।

(2) जहाँ कोई मामला किसी ऐसे अधिकरण के समक्ष लम्बित है, जिसकी उसमें अधिकारिता है, या जिसके बारे में वह सद्भावपूर्वक यह विश्वास करता है कि उसमें ऐसी अधिकारिता है वहाँ उस मामले के पक्षकार, उनके प्लीडर, मुख्तार, राजस्व अभिकर्ता और मान्यता प्राप्त अभिकर्ता और उनके वे साथी, जो समन के आज्ञानुवर्तन में कार्य कर रहे हैं, ऐसी आदेशिका से जो ऐसे अधिकरण ने न्यायालय के अवमानना के लिये निकाली है भिन्न सिविल आदेशिका के अधीन गिरफ्तारी किये जाने से उस समय तक छूट प्राप्त करते रहेंगे, जब तक वे ऐसे मामले के प्रयोजन के लिये ऐसे अधिकरण को जा रहे हो या उनमें हाजिर हों और जब वे ऐसे अधिकरण से लौट रहे हो।

(3) उपधारा (2) की कोई बात निर्णीत-ऋणी को तुरन्त निष्पादन के आदेश के अधीन या जहाँ ऐसा निर्णीत-ऋणी इस बात का हेतुक दर्षित करने के लिये हाजिर हुआ है कि डिक्री के निष्पादन में उसे कारागार में क्यों न सुपुर्द किया जाये, वहाँ गिरफ्तारी से छूट का दावा करने के लिये समर्थ नहीं बनायेगी।

प्रश्न-1 निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-

(क) कुछ स्त्रियों की स्वीय उपसंजाति से छूट

(ख) अन्य व्यक्तियों को छूट

(ग) सिविल आदेशिका के अधीन गिरफ्तारी से छूट


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