आदेश 14 में विवाद्यकों के स्थिरीकरण (सीपीसी)-

 आदेश 14 में विवाद्यकों के स्थिरीकरण (सीपीसी)-


विवाद्यक से तात्पर्य-

विवाद्यकों के स्थिर करने का उद्देश्य पक्षकारों के बीच वास्तविक विवाद का अभिनिश्चित करना होता है। पक्षकारों के मध्य विवाद्यक तब पैदा होते हैं जबकि तथ्य या विधि का कोई सारपूर्ण बिंदु (तात्विक प्रतिपादना) का एक पक्षकार द्वारा अभिकथन किया जाता है और दूसरे पक्षकार द्वारा उसी बिन्दु का प्रत्याख्यात द्वारा इंकार करना, यह दोनों पक्षकारों के मध्य विवाद्यक कहलाता है। परन्तु जहां किसी वाद में एक पक्षकार कथन करता है और दूसरा पक्षकार उस कथन से इंकार नहीं करता है अर्थात् उसे स्वीकार कर लेता है, वहां न्यायालय विवाद्यक संरचित नहीं करेगा एवं स्वीकृति के आधार पर डिक्री दे देगा। न्यायालय द्वारा वाद में विवाद्यक सृजित किये बिना किसी विवाद का निर्णय नहीं दिया जा सकेगा।

ए. शंमुगम बनाम आर्य क्षेत्रीय राजदुला वनस्थली, 2012 सु. को. 2010 के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पक्षकारों के मध्य विवाद्यक सृजित करने के लिये न्यायालय का कर्तव्य है कि दोनों पक्षकारों के अभिवचन की तकनीकी रूप से परीक्षा करे तथा उनके उन दस्तावेजों एवं साक्ष्य पर ध्यान दे, जो उनके मध्य विवाद से सम्बन्धित है।

विवाद्यक के प्रकार-

किसी बाद में विवाद्यक निम्न प्रकार के हो सकते हैं-

(1) तथ्य सम्बन्धी विवाद्यक,

(2) विधि सम्बन्धी विवाद्यक, एवं

(3) तथ्य एवं विधि से मिश्रित विवाद्यक

जहां वाद के सारपूर्ण बिन्दु तथ्य से संबंधित होते हैं, वे विवाद्यक तथ्य सम्बन्धी विवाद्यक हैं और यदि इनका सम्बन्ध विधि से होता है, तो विधि सम्बन्धी विवाद्यक एवं यदि तथ्य एवं विधि दोनों से होता है, तो ऐसे विवाद्यक तथ्य एवं विधि से मिश्रित विवाद्यक कहलाते हैं।

विवाद्यकों का स्थिरीकरण (निपटारा) (आदेश 14)

विवाद्यक (पक्षकारों के मध्य विवादित प्रश्न) किसी मुकदमे की रीढ़ की हड्डी होते हैं, जिस पर पूरा मुकदमा निर्भर करता है। विवाद्यकों की रचना करके प्रत्येक पक्ष को उन वास्तविक प्रश्नों की

जानकारी करा दी जाती है, जिनका परीक्षण किया जाने वाला है और उससे उस साक्ष्य को पेश करने में उसे सुविधा होती है, जो विवाद्यकों से सम्बद्ध होते हैं।

विवाद्यक किसे कहते हैं एवं इनकी रचना किस प्रकार से की जाती है। इस संबंध में नियम 1 में उल्लेख किया गया है, जो निम्न प्रकार से है-

नियम 1 विवाद्यकों की विरचना

(1) विवाद्यक तब पैदा होते हैं जब कि तथ्य या विधि

की कोई तात्विक प्रतिपादना एक पक्षकार द्वारा प्रतिज्ञात और दूसरे पक्षकार द्वारा प्रत्याख्यात की जाती है।

(2) तात्विक प्रतिपादनायें विधि या तथ्य की वे प्रतिपादनायें हैं जिन्हें वाद लाने का अपना अधिकार दर्शित करने के लिये वादी को अभिकचित करना होगा या अपनी प्रतिरक्षा गठित करने के लिये प्रतिवादी को अभिकथित करना होगा।

(क) एक पक्षकार द्वारा प्रतिज्ञात और दूसरे पक्षकार द्वारा प्रत्याख्यात हर एक तात्विक प्रतिपादना एक सुभिन्न विवाद्यक का विषय होगी।

(4) विवाद्यक दो किस्म के होते हैं-

(क) तथ्य विवाद्यक

(ख) विधि विवाद्यक

(5) न्यायालय वाद की प्रथम सुनवाई में वाद-पत्र को और यदि कोई लिखित कथन हो तो उसे पढ़ने के पश्चात् और आदेश 10 के नियम 2 के अधीन परीक्षा करने के पश्चात् तथा पक्षकारों या उनके प्लीडरों की सुनवाई के पश्चात् यह अभिनिश्चय करेगा कि तथ्य की या विधि की किन तात्विक प्रतिपादनाओं के बारे में पक्षकारों में मतभेद है और तब वह उन विवाद्यकों की विरचना और अभिलेखन के लिये अग्रसर होगा, जिसके बारे में यह प्रतीत होता है कि मामले का ठीक विनिश्चय उन पर निर्भर करता है।

(6) इस नियम की कोई भी बात न्यायालय से अपेक्षा नहीं करती कि वह उस दशा में विवाद्यक विरचित और अभिलिखित करें, जब प्रतिवादी वाद की पहली सुनवाई में कोई प्रतिरक्षा नहीं करता।

नियम 2 न्यायालय द्वारा सभी विवाद्यकों पर निर्णय सुनाया जाना 

(1) इस बात के होते हुए भी वाद का निपटारा प्रारम्भिक विवाद्यक पर किया जा सकेगा, न्यायालय उपनियम (2) के उपबन्धों के अधीन रहते हुये सभी विवाद्यकों पर निर्णय सुनायेगा।

(2) जहां विधि विवाद्यक और तथ्य विवाद्यक दोनों एक ही वाद में पैदा हुए हैं और न्यायालय की यह राय है कि मामले या उसके किसी भाग का निपटारा केवल विधि के आधार पर किया जा सकता है। वहां यदि वह विवाद्यक-

(क) न्यायालय की अधिकारिता, अथवा

(ख) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा सृष्ट वाद के वर्जन, से सम्बन्धित है तो वह पहले उस विवाद्यक का विचारण करेगा और उस प्रयोजन के लिये यदि वह ठीक समझे तो, वह अन्य विवाद्यकों का निपटारा तब तक के लिए मुल्तवी कर सकेगा जब तक कि उस विवाद्यक का अवधारण न कर दिया गया हो और उस वाद की कार्यवाही उस विवाद्यक के विनिश्चय के अनुसार कर सकेगा।

नियम 3 वह सामग्री जिससे विवाद्यकों की विरचना की जा सकेगी-

न्यायालय निम्नलिखित सभी सामग्री से या उसमें से किसी से विवाद्यकों की विरचना कर सकेगा-

(क) पक्षकारों द्वारा या उनकी ओर से उपस्थित किन्हीं व्यक्तियों द्वारा या ऐसे पक्षकार के प्लीडरों द्वारा शपथ पर किये गये अभिकथन,

(ख) अभिवचनों में  या वाद में परिप्रश्नों के उत्तर में किये गये अभिकथन, और

(ग) दोनों पक्षकारों में से किसी के द्वारा पेश की गई दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु।

नियम-4 न्यायालय विवाद्यकों की विरचना करने से पहले साक्षियों की या दस्तावेजों की परीक्षा कर सकेगा-

जहां न्यायालय की यह राय है कि ऐसे व्यक्ति की परीक्षा किये बिना जो न्यायालय के सामने नहीं है या किसी ऐसे दस्तावेज का निरीक्षण किये बिना जो वाद में पेश नहीं की गई, विवाद्यकों की ठीक-ठीक विरचना नहीं की जा सकती, वहां वह विवाद्यकों की [विरचना किसी दिन के लिए जो सात दिन के पश्चात स्थगित कर सकेगा और  तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन रहते हुये) समन या अन्य आदेशिका द्वारा विवश करके किसी व्यक्ति की हाजिरी करा सकेगा या उस व्यक्ति द्वारा किसी दस्तावेज को पेश कर सकेगा, जिसके कब्जे या शक्ति में वह दस्तावेज है।

नियम 5 विवाद्यकों का संशोधन और उन्हें काट देने की शक्ति 

(1) न्यायालय डिक्री प्राप्त करने से पूर्व किसी भी समय ऐसे निबन्धनों पर जो ठीक समझे, विवाद्यकों में संशोधन कर सकेगा या अतिरिक्त विवाद्यकों की विरचना कर सकेगा और ऐसे सभी संशोधन या अतिरिक्त विवाद्यक जो पक्षकारों के बीच में विवादग्रस्त बातों के अवधारण के लिए आवश्यक हों, इस प्रकार किये जायेंगे या विरचित किये जायेंगे।

(2) न्यायालय डिक्री पारित करने के पूर्व किसी भी समय किन्हीं ऐसे विवाद्यकों को काट सकेगा जिनके बारे में उसे प्रतीत होता है कि वे गलत तौर पर विरचित या पुनस्थापित किये गये हैं।

नियम 6 तथ्य के या विधि के प्रश्न, करार द्वारा विवाद्यकों के रूप में कथित किये जा सकेंगे-जहां वाद के पक्षकार तथ्य के या विधि के ऐसे प्रश्न के बारे में रजामन्द हो गये हैं, जो उनके बीच विनिश्चित किया जाना है। वहां वे उसका विवाद्यक के रूप में कथन कर सकेंगे और लिखित रूप में यह करार कर सकें कि ऐसे विवाद्यक पर न्यायालय के सकारात्मक या प्रकारात्मक निष्कर्ष पर-

(क) ऐसे धनराशि जो करार में विनिर्दिष्ट हैं  या न्यायालय द्वारा या ऐसी रीति से, जो न्यायालय निदेश करे, अभिनिश्चित की जाती है, पक्षकारों में से एक द्वारा उनमें से दूसरे को संदत्त की जायेगी या उनमें से एक पक्षकार ऐसे किसी अधिकार या ऐसे किसी दायित्व के अधीन घोषित किया जायेगा, जो करार में विनिर्दिष्ट है,

(ख) कोई सम्पत्ति जो करार में विनिर्दिष्ट है और वाद में विवादग्रस्त है, पक्षकारों में से एक द्वारा उनमें से एक दूसरे को या ऐसे परिदत्त की जायेगी, जैसे कि वह दूसरा निदेश करे, अथवा

(ग) पक्षकारों में से एक या अधिक पक्षकार करार में विनिर्दिष्ट और विवादग्रस्त वाद में सम्बन्धित कोई विशिष्ट कार्य करेंगे या करने से विरत रहेंगे।

नियम 7 यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि करार का निष्पादन सद्भावनापूर्वक हुआ था तो वह निर्णय सुना सकेगा-

जहां न्यायालय का ऐसी जांच करने के पश्चात् जो वह उचित समझे, यह समाधान हो जाता है कि-

(क) करार पक्षकारों द्वारा सम्यक रूप से निष्पादित किया था,

(ख) पूर्वोक्त प्रश्न के विनिश्चय में उसका सारवान हित है तथा

(ग) वह इस योग्य है कि उसका विचारण और विनिश्चय किया जाये,

वहां वह उस विवाद्यक को अभिलिखित करने और उसका विचारण करने के लिए अग्रसर होगा, और उस पर अपने निष्कर्ष या विनिश्चय का उसी रीति से कथन करेगा मानों उस विवाद्यक की विरचना न्यायालय द्वारा की गई हो, और ऐसे विवाद्यक के निष्कर्ष या विनिश्चय के आधार पर वह करार के निबन्धनों के अनुसार निर्णय सुनायेगा और इस प्रकार सुनाये गये निर्णय के अनुसार में डिक्री होगी।

न्यायिक निर्णय-

अलका गुप्ता बनाम नरेन्दर कुमार गुप्ता,  2011 सु. को. के वाद में कहा गया कि एक वाद बिना विचारण के खारिज नहीं किया जा सकता मात्र इस नाते कि न्यायालय वादी के आचरण से संतुष्ट नहीं है।

ए. सनमुगम बनाम ए. के. आर. वी. एम. ए. पी. संगम, ए. आई. आर. 2012 सु. को. 2010 के वाद में कहा गया कि अभिवचन का अपना बड़ा महत्व होता है। विवाद्यकों की विरचना का प्रक्रम किसी भी वाद के लिये बड़ा महत्वपूर्ण होता है। अतः एक न्यायाधीश के लिये यह अत्यावश्यक है कि वह विवाद्यकों की विरचना से पहले अभिवचन का आलोचनात्मक परीक्षण करे।




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