चीजें पेश करने को विवश करने के लिए आदेशिकाएं (Processes to Compel the Production of Things)(91-105)-

चीजें पेश करने को विवश करने के लिए आदेशिकाएं (Processes to Compel the Production of Things)(91-105)-

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 में दस्तावेज या किसी अन्य वस्तु को पेश किये जाने के लिए समन जारी करने के उपबंध दिये गये हैं।

धारा 91 के अनुसार, (1) जब कभी कोई न्यायालय या पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी यह समझता है कि किसी ऐसे अन्वेषण, जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के प्रयोजन के लिए, ऐसे दस्तावेज या किसी चीज का पेश किया जाना आवश्यक है। न्यायालय समन जारी करके उस व्यक्ति से, जिसके कब्जे या शक्ति में ऐसा दस्तावेज या चीज होने का विश्वास है, यह अपेक्षा कर सकता है कि वह समन में उल्लिखित समय और स्थान पर उसे पेश करे अथवा हाजिर हो और पेश करे।

(2) उपर्युक्त परिस्थितियों में, जहाँ किसी व्यक्ति से कोई दस्तावेज या चीज पेश करने की अपेक्षा की गई है, यदि कोई व्यक्ति उसे पेश करने के लिए स्वयं हाजिर होने के बजाय उस दस्तावेज या चीज को पेश करवा देता है, तो यह समझा जायेगा कि उसने उस अपेक्षा का अनुपालन कर दिया है।

(3) इस धारा के उपबन्ध -

(1) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 123 और 124 या बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 पर प्रभाव डालने वाले नहीं समझे जायेंगे, अथवा

 (2) डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार या अन्य दस्तावेज या किसी पार्सल या चीज को लागू होने वाले नहीं समझे जायेंगे।

इस धारा में 'व्यक्ति' शब्द का प्रयोग उस व्यक्ति के संदर्भ में किया गया है, जिसके कब्जे या शक्ति में किसी दस्तावेज अथवा चीज के होने का विश्वास है। परन्तु 'व्यक्ति' शब्द के अभिनिहित अर्थ में 'अभियुक्त व्यक्ति' को सम्मिलित नहीं किया गया है। ये शब्द कि 'व्यक्ति..... हाजिर हो और पेश करे' अभियुक्त व्यक्ति के संदर्भ में कुछ असंगत तथा अनुपयुक्त से लगते हैं, क्योंकि उससे अन्यथा भी न्यायालय में हाजिर होने की अपेक्षा की जाती है।

गुजरात राज्य बनाम श्याम लाल ए. आई. आर. 1965 एम. सी. के वाद में कहा गया कि धारा 91 का अर्थान्वयन इस प्रकार किया जाता है कि उनमें अभियुक्त को भी सम्मिलित किया जा सके, तो यह अर्थान्वयन अभियुक्त व्यक्ति के लिए घोर कठिनाई उत्पन्न करने वाला सिद्ध होगा और उसके लिये अन्वेषण, जाँच अथवा विचारण ऋजुहीन साबित होगा।

मुम्बई राज्य बनाम काठी कालू ओघड़ ए. आई. आर. 1961 एस. सी. में कहा गया कि पुनः इस अर्थान्वयन यदि इतना विस्तृत किया जाता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 20 (3) का अतिलंघन करने वाला होगा, जिसमें दबावपूर्ण आत्म-अभिशंसन के विरुद्ध सिद्धान्त समाविष्ट किया गया है। इसलिए संविधान के इस अनुच्छेद का अर्थान्वयन इस प्रकार किया गया है कि किसी अभियुक्त व्यक्ति को किसी ऐसी दस्तावेज अथवा चीज को प्रकट करने के लिये विवश नहीं किया जायेगा, जो उसके लिये अपराधबोधक हो और जिसका कि ज्ञान उसे हो।

उच्चतम न्यायालय ने इन्हीं कारणों से यह दृष्टिकोण अपनाया कि धारा 91 के सही अर्थान्वयन के अन्तर्गत अभियुक्त व्यक्ति को सम्मिलित नहीं किया जा सकता है।

यदि कोई व्यक्ति इस धारा के अन्तर्गत अपेक्षित दस्तावेज या चीज को पेश करने में साशय लोप करता है, तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 175 के अधीन दण्डनीय हो सकता है। परन्तु यह भी स्पष्ट है कि इस धारा के अधीन जारी किये गये समय या आदेश के अनुपालन के लिए किसी व्यक्ति को दण्ड देने के पूर्व यह सिद्ध होना चाहिए कि समन अथवा आदेश जारी करने की शर्तों का पूर्ण पालन किया गया था और अपेक्षित व्यक्ति को समन अथवा आदेश तामील कर दिया गया था।

प्रश्न-

दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के लिए समन न्यायालय द्वारा कब जारी किया जाता है? उल्लेख कीजिए।

क्या कोई समन अथवा आदेश किसी अभियुक्त व्यक्ति के लिए भी जारी किया जा सकता है?

यदि कोई व्यक्ति दस्तावेज एवं चीज को पेश करने में लोप करता है तो भारतीय दण्ड संहिता की किस धारा के तहत दण्डित होगा।

क्या धारा 91 के उपबंध साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 और 124 को लागू होंगे? स्पष्ट कीजिए।



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