न्यायालय समन्स के बदले वारण्ट कब जारी कर सकता है?
न्यायालय समन के बदले वारण्ट कब जारी कर सकता है?
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 87 में यह उपबंध किया गया कि न्यायालय समन्स के बदले वारंट कब जारी कर सकती है-
धारा 87 के अनुसार, इस धारा में समन के स्थान पर या उसके अतिरिक्त वारण्ट जारी करने के लिये न्यायालय को सशक्त किया है। परन्तु इस शक्ति का प्रयोग केवल वही न्यायालय कर सकता है जिसे इस संहिता द्वारा किसी व्यक्ति की हाजिरी के लिए समन जारी करने के लिए सशक्त किया गया है। ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि वह वारण्ट जारी करने के पूर्व समन के स्थान पर या उसके अतिरिक्त वारण्ट जारी करने का कारण भी लिखें। चूँकि इस धारा में समन के स्थान पर या उसके अतिरिक्त गिरफ्तारी का वारण्ट जारी करना एक विवेकीय शक्ति है, आज्ञापक नहीं, अतः वारण्ट जारी करने के पूर्व उसके कारणों को अभिलिखित करना अनिवार्य है। कारण अभिलिखित करने की अपेक्षा इस धारा के अन्तर्गत आज्ञापक है। यदि वारण्ट जारी करने के आदेश में कारण अभिलिखित नहीं किये गये हैं तो वह आदेश ही विधि-सम्मत नहीं होगा।
यह धारा न्यायालय को समन के स्थान पर या उसके अतिरिक्त वारण्ट जारी करने की शक्ति प्रदान करती है। इस शक्ति का प्रयोग दो मामलों में किया जा सकता है-
(1) जहाँ न्यायालय को यह विश्वास है कि समन किया गया व्यक्ति (जिसमें अभियुक्त या साक्षी शामिल है) या तो फरार हो गया है या हाजिर नहीं होगा, और
(2) जहाँ वह बिना किसी उचित कारण के हाजिर होने में असफल रहा है।
प्रद्युत कुमार वैद्यया बनाम छाया रानी वैद्यया 1995 क्रि. लॉ. ज. (कलकत्ता) के वाद में कहा गया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन एक कार्यवाही में, मजिस्ट्रेट ने एक ऐसे पक्षकार का साक्ष्य समाप्त कर दिया था जिसके साक्षियों में से एक पर्याप्त तामील के बावजूद भी हाजिर नहीं हुआ था, उच्च न्यायालय ने उस साक्षी की हाजिरी सुनिश्चित कराने के लिए दं. प्र. सं. की धारा 87 के अधीन शक्तियों के प्रयोग किए जाने पर विचार करने का मजिस्ट्रेट को निदेश देते हुए, उस आदेश को अपास्त कर दिया।
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