तलाशी वारण्ट - दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (धारा 93) एवं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (धारा 96)

 दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (धारा 93) एवं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (धारा 96) 

प्रश्न-
 तलाशी वारण्ट क्या है?

तलाशी वारण्ट का तात्पर्य एक लिखित प्राधिकार है, जो किसी सक्षम मजिस्ट्रेट अथवा न्यायालय द्वारा किसी पुलिस अधिकारी अथवा व्यक्ति को निर्दिष्ट होता है। इस प्राधिकार के बल पर ऐसा पुलिस अधिकारी अथवा व्यक्ति सामान्य रूप से किसी स्थान की अथवा विनिर्दिष्ट किसी दस्तावेज या चीज की या सदोष परिरुद्ध व्यक्ति की तलाश करता है। किसी स्थान, व्यक्ति, दस्तावेज अथवा चीज की तलाशी एक बल-प्रवर्ती प्रक्रिया है और इसमें किसी नागरिक के घर अथवा परिसर की गोपनीयता अथवा पवित्रता का अतिक्रमण अन्तर्वलित है।

कलिंगा ट्यूब्स लिमिटेड बनाम डी. सूरी, 1953 उड़ीसा के वाद में यह संप्रेक्षित किया गया कि तलाशी वारण्ट जारी करने की शक्ति का प्रयोग सम्पूर्ण सतर्कता और चौकसी के साथ किया जाना चाहिए।

बी. एस. कूट्टन पिल्ले बनाम रामकृष्णन (1980)  के वाद में कहा गया कि जब भी किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष तलाशी वारण्ट जारी करने विषयक आवेदन पेश किया जाय तो उसे चाहिए कि ऐसा करने से पूर्व वह अपने मस्तिष्क का उपयोग करे न कि यन्त्रवत आदेश दे।

धारा 93 (1) के अनुसार, तीन परिस्थितियों में तलाशी का वारंट जारी किया जा सकता है-

 (1) जब न्यायालय के पास यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण हो कि वह व्यक्ति जिसे धारा 91 के अन्तर्गत कोई समन अथवा आदेश दिया गया हो या धारा 92 (1) के अधीन कोई अपेक्षा निर्दिष्ट की गई हो, समन अथवा अपेक्षा के अनुसार दस्तावेज नहीं पेश करेगा, या

(2) यदि न्यायालय को निश्चित रूप से यह ज्ञात नहीं है कि दस्तावेज या वस्तु किसके पास है, अथवा

(3) जहाँ न्यायालय यह उचित समझे कि इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के प्रयोजन के लिए तलाशी या निरीक्षण आवश्यक है।

गुजरात राज्य बनाम श्याम लाल 1965  के वाद में कहा गया कि यदि किसी व्यक्ति के कब्जे में कोई दस्तावेज या चीज होने के बारे में न्यायालय को ज्ञात है, तो उस दशा में तलाशी का वारंट जारी नहीं किया जा सकता है। 

धारा 93 (2) के अनुसार, न्यायालय यदि युक्तियुक्त समझे, तो तलाशी वारण्ट में उस स्थान को विनिर्दिष्ट कर सकता है जहाँ पर तलाशी ली जानी है। उक्त दशा में वह व्यक्ति जिस पर वारण्ट के निष्पादन का दायित्व सौंपा गया है, केवल उस विनिर्दिष्ट स्थान या भाग की तलाशी ही ले सकेगा

स्टेट बनाम एन. एम. टी. जाय इमेचुलेट, 2004  के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि तलाशी और अभिग्रहण के मामलों में पुलिस अभिरक्षा के दौरान जो बयान दिया जाता है या जो रिकवरी की जाती है उसे व्यर्थ नहीं माना जा सकता है चाहे अवैध रूप से पुलिस को अभियुक्त की सुपुर्दगी की गयी हो। इसके लिए जरूरी है कि रिकवरी और कथन का साक्ष्य विधि के अनुसार परीक्षण कर लिया जाये।

धारा 93 (3) के अनुसार, तलाशी का वारण्ट कोई भी मजिस्ट्रेट अथवा न्यायालय जारी कर सकता है परन्तु डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में यदि कोई दस्तावेज, पार्सल या अन्य चीज है, तो उसकी तलाशी के लिये जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से भित्र कोई अन्य मजिस्ट्रेट वारण्ट जारी नहीं कर सकता।

(धारा 93) के अधीन जारी तलाशी वारंट का प्रारुप इस संहिता की अनुसूची 2 के प्रारूप क्रमांक 10 में दिया गया है।

क्लार्क बनाम ब्रजेन्द्र राब किशोर चौधरी,  के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि वारंट न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा ही जारी किया जा सकता है। यह कहना उचित नहीं होगा कि कोई मजिस्ट्रेट तब तक वारंट जारी नहीं कर सकता है जब तक कि वह न्यायालय के रूप में बैठा हो। हो, यह आवश्यक है कि उसके समक्ष कार्यवाही लंबित होनी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने इस तर्क की पुष्टि करते हुए मोहम्मद सिराजुद्दीन बनाम आर.सी. मिश्रा ए.आई.आर. 1967 के वाद में यह विनिश्चित किया कि वारण्ट जारी करने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही का लंबित होना एक पूर्ववर्ती शर्त है।

वारंट जारी करने के लिए कतिपय युक्ति संगत न्यायिक आधारों का होना आवश्यक है।

विमल कांति घोष बनाम एम. चन्द्र शेखर राव, (1980) के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि जहाँ न्यायालय तलाशी वारंट का जारी किया जाना आवश्यक समझता है किन्तु तलाशी वारण्ट जारी करने में वह व्यतिक्रम करता है, तो इसे न्यायालय की कार्यवाही का दुरुपयोग माना जाएगा।

धारा 91 के अधीन समन या आदेश या धारा 92 (1) के अधीन अधियाचन उस व्यक्ति को सम्बोधित होता है जिसके पास वह दस्तावेज या वस्तु है, परन्तु धारा 93 के अधीन जारी वारण्ट पुलिस अधिकारी को निर्दिष्ट होता है। धारा 91 के अधीन कोई न्यायालय या पुलिस थाने का कोई भारसाधक अधिकारी कार्यवाही कर सकता है जबकि धारा 93 के अधीन केवल न्यायालय ही कार्यवाही कर सकता है।

यह धारा केवल वहीं नहीं लागू होती जहाँ जाँच लम्बित है बल्कि वहाँ भी जहाँ जांच होने वाली है। तलाशी-वारण्ट साधारण या किसी स्थान या उसके किसी भाग तक के लिए प्रतिबन्धित हो सकता है।

प्रश्न-
 तलाशी वारण्ट क्या है?

तलाशी वारण्ट कब जारी किया जा सकता है? क्या यह अनुच्छेद 20 (3) का अतिक्रमण करता है? स्पष्ट कीजिए।



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