संज्ञान में आप क्या समझते हैं? अपराधों का संज्ञान कौन ले सकता है? भारतीय सुरक्षा संहिता 2023 के अन्तर्गत अपराधों का संज्ञान लेने की क्या परिसीमा है?

 

प्रश्न - भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 

 संज्ञान से आप क्या  समझते हैं? अपराधों का संज्ञान कौन ले सकता है? भारतीय नागरिक  सुरक्षा संहिता 2023  के अन्तर्गत अपराधों का संज्ञान लेने  की क्या परिसीमा है?  

उत्तर -

भारतीय नागरिक सुरक्षा संरिता, 2023 की धारा 210-222 तक के अन्तर्गत कार्यवाहियां शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्ते के संबंध में आवश्यक उपबंध किया गया है 

                  'संज्ञान'

संज्ञान से तात्पर्य होता है किसी मामले की न्यायिक रूप से नोटिस लेना। विचारण के लिए संज्ञान का लेना अनिवार्य होता है। इसकी बराबरी प्रक्रिया निर्गत करने से नहीं की जा समती ।

'संज्ञान करना' से अभिप्रेत है परिवाद में वर्णित तथ्यों पर आगे की कार्यवाही करने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा चित्त का न्यायिक रूप से लगाया जाना । प्रत्येक मामले को अवधारित करने के लिए यह तथ्य का प्रश्न होता है कि मजिस्ट्रेट द्वारा मामले का संज्ञान किया गया है अथवा नहीं। किसी अपराध का संज्ञान करने के पूर्व, मजिस्ट्रेट को यह देखना होता है कि परिवाद से अपराध बनता है कि नहीं। उसे अपना चित्त लगाना पड़ता है कि अपराध का संज्ञान करने के लिए पर्याप्त कारण  या आधार है कि नहीं।  इस संहिता द्वारा  अनुज्ञात कोई न्यायिक  कार्यवाही जो संभाव्य अभियोजन की दृष्टि से जांच या विचारण आरम्भ करने के लिए की गई हो, इसमें कोई औपचारिक कार्रवाई या वास्तव में किसी प्रकार की कार्रवाई शामिल नहीं है, परन्तु वैसे ही घटित हो जाती है जैसे ही मजिस्ट्रेट सन्देहास्पद अपराध को किये जाने पर अपना चित्र लगाता है।

सामान्यतः' कोई भी प्राईवेट व्यक्ति, जब किसी अपराध के निमित्त दाण्डिक कार्यवाहिया प्रारंभ करना चाहता है, तो उसके समक्ष दो विकल्प है

 (1) वह पुलिस के समक्ष प्रथम इत्तिला रिपोर्ट दाखिल करे, यदि अपराध संज्ञेय है,

(2) यदि वह किसी सक्षम मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद दाखिल करे, चाहे अपराध संज्ञेय  हो अथवा असंज्ञेय हो।

इस प्रकार, जव किरसी मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद दाखिल किया जाता है, तो वह पुलिस द्वारा अन्वेषण करने के लिए आदेश दे सकता है।

 धारा  210 मजिस्ट्रेटों दुवारा अपराधों का संज्ञान -

इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट और उपधारा (2) के अधीन विशेषतया सशक्त किया गया कोई  द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट, किसी भी, अपराध  का संज्ञान निम्नलिखित दशाओं में कर सकता है-

 (क) उन तथ्यों का परिवाद प्राप्त होने पर, जिनमें किसी विशेष विधि के अधीन प्राधिकृत किए गए किसी व्यक्ति द्वारा  फाइल  किया गया कोई परिवाद भी है, जो ऐसे अपराध को गठित करता है

(ख) ऐसे तथ्यों के बारे में (इलेक्ट्रानिक ढंग किसी ढंग में प्रस्तुत ) पुलिस रिपोर्ट पर,

(ग) पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति से प्राप्त इस सूचना पर या स्वयं अपनी इस जानकारी पर, कि ऐसा अपराध किया गया है। 

(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को ऐसे अपराधों का, जिनकी जांच या विचारण करना उसकी क्षमता के भीतर है, उपधारा (1) के अधीन संज्ञान करने के लिए सशक्त  कर सकता है।

संज्ञान अपराध का किया जाता है न कि अपराधी का-

 धारा 210 (1) के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का  संज्ञान ग्रहण किया जाता है, अपराधी का नहीं। यदि मजिस्ट्रेट को धारा 210 के अधीन कोई परिवाद प्राप्त होता है, तो वह उसका संज्ञान न ग्रहण कर धारा 175 (3) के अधीन अन्वेषण का आदेश दे सकता है, चाहे भले ही मामला अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वारा विचारण के योग्य हो। यदि वह ऐसा करता है और पुलिस की अन्तिम रिपोर्ट (फाइनल रिपोर्ट) आ जाती है, तो भी वह धारा 223 तथा 227 के अधीन परिवाद पर अपराध का संज्ञान कायम रखते हुये कार्यवाही कर सकता है मजिस्ट्रेट  द्वारा अपराध का संज्ञान ग्रहण कर लेने के बाद ही यह निर्णीत किया जाता है कि वास्तव में अपराधी कौन है। 

धारा 175 (3) के अनुसार, धारा 210 के अधीन सशक्त कोई मजिस्ट्रेट, धारा 173 (4)के अधीन किए गए शपथ-पत्र ‌द्वारा समर्थित आवेदन पर विचार करने के पश्चात् और ऐसी जांच, जो वह आवश्यक समझे, करने के पश्चात तथा इस संबंध में किए गए निवेदन पर, ऊपर उल्लिखित किए गए अनुसार ऐसे अन्वेषण का आदेश कर सकेगा ।

👉अंकुर मुटरेजा बनाम दिल्ली राज्य 2021

के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 210 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत उपद्वव रोकने के लिए दिल्ली पुलिस को निर्देश जारी करने के लिए मजिस्ट्रेट को सशक्त नहीं करती है।

👉नाहरासह बनाम उत्तरप्रदेश राज्य 2022 के बाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 210 (1) (बी) अगर सामग्री प्रथम दृष्टया संलिप्ता का खुलासा करती है तो मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को भी समन जारी कर सकता है जिसका नाम पुलिस रिपोर्ट या एफ आई आर में नहीं है।

👉कृष्णा पति त्रिपाठी बनाम मध्यप्रदेश राज्य और अन्य 2022 के वाद में मध्य प्रदेश  उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि धारा 210 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता , 2023 के तहत कोई सिस्टम उपलब्ध नहीं है जो मजिस्ट्रेट को स्वतः या किसी आवेदन पर आगे की जांच के लिए निर्देश देने का अधिकार देता हो।

👉मणिपुर राज्य बनाम मिस रंजना मनोहरमयुम 2022 के  वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 210 के अनुसार, मजिस्ट्रेट  किसी भी अपराध का संज्ञान या तो परिवाद प्राप्त करने के बाद ले सकता है जिसमें अपराध के तथ्य बताये गये हैं, उन तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद, पुलिस अधिकारी के अलावा किसी अन्य स्रोत से सूचना प्राप्त करने के बाद या यह जानने के बाद कि अपराध किया गया है। 

निष्कर्ष -

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता , 2023 के तहत संज्ञान लेना शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। वास्तव में, संज्ञान लेने के लिए न्यायालय या मजिस्ट्रेट की ओर से किसी औपचारिक कार्रवाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि जैसे ही मजिस्ट्रेट भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत आगे की कार्रवाई करने के उद्‌देश्य से किसी अपराध के कथित आचरण पर अपने विचार लागू करता है, तो संज्ञान लिया जाना माना जा सकता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा शांति 2023 की धारा 210 से 222 के तहत मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के अधिकार पर कुछ प्रतिबंध' लगाए गए हैं। उनके पास अपराध घोषित करने का अधिकार है, लेकिन वह मामले की जांच या सुनवाई नहीं कर सकता है। इसलिए संज्ञान लेने का चरण विधि के शासन के लिए महत्वपूर्ण है और पुलिस के अधिकार पर एक महत्वपूर्ण न्यायिक जांच के रूप में कार्य करता है।

अपराधों के संज्ञान के लिए परिसीमा काल -

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 513-519 के अन्तर्गत अपराधों के संज्ञान के लिए परिसीमा काल के बारे में प्रावधान किया गया है- 

धारा 513 परिभाषा परिसीमा काल से किसी अपराध का संज्ञान करने के लिए धारा 514 में विनिर्दिष्ट अवधि अभिप्रेत है।

धारा- 514 परिसीमाकाल की समाप्ति के पश्चात् संज्ञान का वर्जन -

(1) इस संहिता में जैसा अन्यया उपबंधित है उसके सिवाय, कोई न्यायालय उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट प्रवर्ग के किसी अपराध का संज्ञान परिसीमा- काल की समाप्ति के पश्चात् नहीं करेगा -

(2)परिसीमा काल,

(क)  छह मास, यदि अपराध केवल जुर्माने से दंडनीय है, (ख) एक वर्ष होगा, यदि अपराध एक वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय है, 

(ग) तीन वर्ष होगा, यदि अपराध एक वर्ष से अधिक किन्नु तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास मे दडंनीय है।

(3) इस धारा के प्रयोजनों के लिए, उन अपराधों के संबंध में, जिनका एक साथ विचारण किया जा सकेगा, परिसीमा काल का अवधारण उस अपराध के प्रतिनिर्देश से किया जायेगा जो, यथास्थिति, कठोरतर या कठोरतम दंड से दंडनीय है।

स्पष्टीकरण

परिसीमा की अवधि संगणित करने के प्रयोजन के लिए, सुसंगत तारीख धारा 223 के अधीन परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख या धारा 173 के अधीन सूचना अभिलिखित करने की तारीख होगी।

👉 अमृतलाल बनाम शांतिलाल सोनी 2022 के वाद में  उच्चतम न्यायालाय ने यह अभिनिर्धारित किया कि धारा 514 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के तहत  परिसीमा अवधि की गणना करने के उद्देश्य से, प्रासंगिक तिथि परिवाद दर्ज करने की तिथि यि अभियोजन की स्थापना की तिथि है, न कि वह तिथि जिस पर मजिस्ट्रेट अपराध का संज्ञान लेता है

👉ज्वाला  प्रसाद मौर्य बनाम यूपी राज्य एवं अन्य 2022 के बाद में अभिनिर्धारित किया गया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528 भारतीय न्याय संहिता  2023 की धारा 145 और 352 एवं  भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 514  के तहत परिसीमा काल  की गणना के उद्‌देश्य से, प्रासंगिक तारीख है परिवाद दर्ज करने की तारीख या अभियोजन शुरू करने की तारीख न कि वह तारीख जिस पर मजिस्ट्रेट अपराध का संज्ञान लेता है।

प्रश्न-

 👉मजिस्ट्रेट द्वारा अपराधों के संज्ञान करने के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में क्या उपबन्ध है? अपराधों के संज्ञान करने के लिए परिसीमा संबंधी क्या प्रावधान है।

👉संज्ञान से आप क्या समझते हैं? अपराधों का संज्ञान कौन ले सकता है? दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अन्तर्गत अपराधों का संज्ञान लेने की क्या परिसीमा है?

👉किन दशाओं में मजिस्ट्रेट अपराध का संज्ञान ले सकता है? 

👉मजिस्ट्रेट कब किसी अपराध का संज्ञान कर सकता है? क्या ऐसे संज्ञान पर अभियुक्त मामले को अन्य न्यायालय में अन्तरित करने के लिए आवेदन कर सकता है?


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