पक्षद्रोही साक्षी- (भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023)

 पक्षद्रोही साक्षी-


साक्ष्य अधिनियम- 2023 में पक्षद्रोही साक्षी को न तो परिभाषित किया गया है  न ही इस शब्द का प्रयोग किया गया है।  सामान्य भावाबोध में "पक्षद्रोही साक्षी"- जब कोई साक्षी  उसी पक्षकार  के विरुद्ध बातें करने लगे जिसने उसे बुलाया है,  तो ऐसे साक्षी को पक्षद्रोही साक्षी कहते हैं।"

 पक्षद्रोही साक्षी की परिभाषा उच्चतम न्यायालय ने सतपाल बनाम दिल्ली प्रशासन 1976 में दिया है  पक्षद्रोही साक्षी उसे कहते हैं जो उसे पक्षकार के हक की बात नहीं करता है जिसने उसे बुलाया है  या जो उसके खिलाफ बात करता है या उसके कहने से सत्य नहीं बताता ।

 धारा 157 - (1)न्यायालय उस व्यक्ति को जो साक्षी को बुलाता है उसे साक्षी से कोई प्रश्न करने की अपने विवेकानुसार अनुज्ञा दे सकेगा, जो प्रतिपक्षी द्वारा प्रतिपरीक्षा में किया जा सकते हैं।

(2) उपधारा (1) इस प्रकार अनुज्ञात व्यक्ति को ऐसे साक्षी के साक्ष्य के किसी भाग का  अवलम्ब के हक से वंचित नहीं करेगा।  

 साक्ष्यिक मूल्य  -

        भगवान दास बना हरियाणा राज्य 1976 के वाद में अभियोजन पक्ष द्वारा पक्षद्रोही  घोषित किए गए साक्षी के साक्ष्य को उसी रीति व सीमा तक माना जाएगा जिस सीमा तक किसी अन्य साक्षी का साक्ष्य। यदि उसके परिसाक्ष्य की अन्य विश्वसनीय स्वतंत्र साक्ष्य से संपुष्टि हो जाती है। तो उसके आधार पर दोषसिध्दी अवैध नहीं।

       काली लखन भा बनाम गुजरात राज्य 2000 के वाद में पक्षद्रोही साक्षी का साक्ष्य उस सीमा तक विश्वासनीय होता है जिस सीमा तक अभियोजन पक्ष के वक्तव्यों का समर्थन करता है ऐसा साक्ष्य निष्प्रभावी या शून्य नहीं माना जा सकता और इसके आधार पर दोषसिध्दी की जा सकती है बशर्ते कि स्वतंत्र साक्ष्यों से पुष्टि कर ली जाए।

        एम. रवि बनाम एम. राजा येलियाह 2017 के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 154 (157 BNNS) सिविल एवं आपराधिक मामले में कोई भी विभेद नहीं करती है।

प्रश्न -

पक्षद्रोही साक्षी से आप क्या समझते हैं ? पक्षद्रोही साक्षी द्वारा दिए गए साक्ष्य का क्या मूल्य है ?


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