पक्षद्रोही साक्षी धारा 154 और 155 साक्ष्य अधिनियम 1872
पक्षद्रोही साक्षी-
पक्षद्रोही साक्षी की परिभाषा उच्चतम न्यायालय ने सतपाल बनाम दिल्ली प्रशासन 1976 में दिया है पक्षद्रोही साक्षी उसे कहते हैं जो उसे पक्षकार के हक की बात नहीं करता है जिसने उसे बुलाया है या जो उसके खिलाफ बात करता है या उसके कहने से सत्य नहीं बताता ।
धारा 154 - (1)न्यायालय उस व्यक्ति को जो साक्षी को बुलाता है उसे साक्षी से कोई प्रश्न करने की अपने विवेकानुसार अनुज्ञा दे सकेगा, जो प्रतिपक्षी द्वारा प्रतिपरीक्षा में किया जा सकते हैं।
(2) उपधारा (1) इस प्रकार अनुज्ञात व्यक्ति को ऐसे साक्षी के साक्ष्य के किसी भाग पर निर्भर करने के हक से वंचित नहीं करेगा ।
पक्षद्रोही साक्षी (Hostile witness)- गवाह को बुलाने वाला पक्षकार, न्यायालय की आज्ञा से उस गवाह से सूचक प्रश्न पूछ सकता है और उसकी प्रतिपरीक्षा कर सकता है। जब कोई गवाह न्यायालय की दृष्टि में प्रतिकूल है और वह गवाह बुलाने वाले पक्षकार के विरुद्ध अपना रुख रखता है तो वह पक्षद्रोही गवाह है। पक्षद्रोही शब्द का तात्पर्य इस अर्थ से समझना चाहिये कि जब गवाह बुलाने वाले पक्ष के खिलाफ गवाही देता है तो वह 'पक्षद्रोही साक्षी' है। वह मात्र इतने से ही पक्षद्रोही साक्षी नहीं मान लिया जायेगा कि उसका साक्ष्य बुलाने वाले पक्षकार के हित में नहीं है। पक्षद्रोही साक्षी वह है जो अपने साक्ष्य देने के ढंग से (जिसके अन्तर्गत यह तथ्य भी आता है कि वह पूर्वकथन से हट रहा है) यह जाहिर करता है कि वह न्यायालय को सच बताने का इच्छुक नहीं है।
धारा 154 किसी पक्षकार को अपने ही गवाह से, न्यायालय की आज्ञा से उसी प्रकार प्रतिपरीक्षा करने का अधिकार देती है जैसे कि विपक्षी पक्षकार उससे करता है। ऐसी प्रतिपरीक्षा का अर्थ है कि उससे निम्नलिखित प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं-
(1) सूचक प्रश्न (धारा 143),
(2) उसके पूर्ववर्ती लिपिबद्ध कथन के बारे में प्रश्न (धारा 145), और
(3 ) (क) उसकी विश्वसनीयता को परखने वाले प्रश्न (धारा 155),
(ख) यह पता चलाने के लिए कि वह कौन है और जीवन में उसकी स्थिति क्या है,
अथवा
(ग) उसके चरित्र को बदनाम करके कि वह विश्वास के योग्य नहीं है (धारा 146)।
किसी साक्षी को पक्षद्रोही घोषित करने के पूर्व न्यायालय आमतौर से यह जानने के लिए कि क्या साक्षी अन्वेषण के दौरान ली गई स्थिति से पीछे हट रहा (resile) है अन्वेषक अधिकारों के समक्ष दिये गये बयान को देखना चाहिये। स्वयं अपने साक्षी से प्रतिपरीक्षा करने को इजाजत देने के पूर्व न्यायालय को संतुष्ट होना चाहिये कि-
(i) साक्षी पक्षद्रोहिता प्रदर्शित कर रहा है, या
(ii) अपने पूर्वतन कथन से असंगत या विरुद्ध कथन कर रहा है, या
(iii) साक्षी सत्य नहीं बोल रहा है।
साधारणतः यदि यह प्रतीत हो कि गवाह अन्वेषण के दौरान दिये गये अपने बयान से पीछे हट रहा है तो न्यायालय को धारा 154 के अधीन ऐसे गवाह से ऐसे प्रश्न पूछने को अनुज्ञा देनी चाहिए जो प्रतिपरीक्षा में पूछे जा सकते हैं अर्थात् सूचक प्रश्न।
पक्षद्रोही साक्षी का परिसाक्ष्य कड़े तरीके से देख लेना चाहिए क्योंकि वह अपने पूर्व कथनों का खण्डन करता है। जो पक्षकार अपने साक्षी को प्रतिपरीक्षा करता है वह उसके साक्ष्य का उपयोग नहीं कर सकता।
पुनः परीक्षा में प्रतिपरीक्षा- जब गवाह मुख्य परीक्षा के बाद प्रतिपरीक्षा में पक्षद्रोही हो जाता है तो न्यायालय को ऐसे गवाह को बुलाने वाले पक्षकार की प्रार्थना पर पक्षद्रोही घोषित कर प्रतिपरीक्षा करने की अनुमति उन बातों के बारे में देना चाहिए जो बयान उसने प्रतिपरीक्षा में प्रतिकूल दिया हो।
यह सुस्थापित विधि है कि साक्षी के साक्ष्य को त्यक्त या छोड़ा नहीं जा सकता और उसका प्रयोग अन्य विश्वसनीय साक्ष्य की संपुष्टि के लिए किया जा सकता है यदि ऐसा विश्वसनीय साक्ष्य अभिलेख पर मौजूद है
बिना पक्षद्रोही घोषित किये प्रतिपरीक्षा (Cross-examination without declaring hostile)- यह आवश्यक नहीं कि गवाह को बुलाने वाला पक्षकार उसको पक्षद्रोही घोषित करने के बाद उससे प्रतिपरीक्षा कर सकता है। जैसा कि इस धारा से स्पष्ट है न्यायालय बुलाने वाले पक्षकार को गवाह की प्रतिपरीक्षा करने की कभी भी अनुमति दे सकता है चाहे गवाह प्रतिकूल दर्शित नहीं होता हो?
साक्ष्यिक मूल्य -
भगवान दास बना हरियाणा राज्य 1976 के वाद में अभियोजन पक्ष द्वारा पक्षद्रोही घोषित किए गए साक्षी के साक्ष्य को उसी रीति व सीमा तक माना जाएगा जिस सीमा तक किसी अन्य साक्षी का साक्ष्य। यदि उसके परिसाक्ष्य की अन्य विश्वसनीय स्वतंत्र साक्ष्य से संपुष्टि हो जाती है। तो उसके आधार पर दोषसिध्दी अवैध नहीं।
काली लखन भा बनाम गुजरात राज्य 2000 के वाद में पक्षद्रोही साक्षी का साक्ष्य उस सीमा तक विश्वासनीय होता है जिस सीमा तक अभियोजन पक्ष के वक्तव्यों का समर्थन करता है ऐसा साक्ष्य निष्प्रभावी या शून्य नहीं माना जा सकता और इसके आधार पर दोषसिध्दी की जा सकती है बशर्ते कि स्वतंत्र साक्ष्यों से पुष्टि कर ली जाए।
एम. रवि बनाम एम. राजा येलियाह 2017 के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 154 सिविल एवं आपराधिक मामले में कोई भी विभेद नहीं करती है।
प्रश्न -
पक्षद्रोही साक्षी से आप क्या समझते हैं ? पक्षद्रोही साक्षी द्वारा दिए गए साक्ष्य का क्या मूल्य है ?
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