मृत्यकालिक कथन की परिभाषा साक्ष्य अधिनियम 2023 में नहीं दी गई है धारा 26 के मुख्य भाग तथा इसके उपधारा (1) को साथ पढ़ने से साथ मृत्यकालिक कथन की निम्न परिभाषा बनती है-

 


मृत्यकालिक कथन की परिभाषा साक्ष्य अधिनियम 2023 में नहीं दी गई है धारा 26 के मुख्य भाग तथा इसके उपधारा (1) को साथ पढ़ने से साथ मृत्यकालिक कथन की निम्न परिभाषा बनती है-

मृत्युकालिक कथन किसी ऐसे व्यक्ति का लिखित या मौखिक कथन है, जो मर गया है तथा जिसने अपने कथन में अपनी मृत्यु के कारणों  को बताया है या उन परिस्थितियों को बताया है जिनमें उसकी मृत्यु हुई है । कथन करते समय उसे मृत्यु की आशंका रही हो या नहीं । 

धारा 26 के अनुसार-

वे दशाएं जिनमें उस व्यक्ति द्वारा सुसंगत तथ्य का किया गया कथन सुसंगत है, जो मर गया है या मिल नहीं सकता, आदि -

 सुसंगत तथ्यों के लिखित या मौखिक कथन, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा किए गए थे, जो मर गया है या मिल नहीं सकता है या जो साक्ष्य देने के लिए असमर्थ हो गया है या जिसकी उपस्थिति इतने विलम्ब या व्यय के बिना उपाप्त नहीं की जा सकती, जितना मामले की परिस्थितियों में न्यायालय को अयुक्तियुक्त प्रतीत होता है, निम्नलिखित दशाओं में स्वयंमेव सुसंगत तथ्य हैं, अर्थात् :-

(क) जब वह कथन किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के कारण के बारे में या उस संव्यवहार की किसी परिस्थिति के बारे में किया गया है जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्य हुई, तब उन मामलों में, जिनमें उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत है। ऐसे कथन सुसंगत हैं चाहे उस व्यक्ति को, जिसने उन्हें किया है, उस समय जब वे किए गए थे मृत्यु की प्रत्याशंका थी या नहीं और चाहे उस कार्यवाही की, जिसमें उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत होता है, प्रकृति कैसी ही क्यों न हो;

(छ) जब वह कथन ऐसे व्यक्ति द्वारा कारबार के साधारण अनुक्रम में किया गया था और विशेषतः जब वह, उसके द्वारा कारबार के साधारण अनुक्रम में या वृत्तिक कर्तव्य के निर्वहन में रखी जाने वाली पुस्तकों में उसके द्वारा की गई किसी प्रविष्टि या किए गए ज्ञापन के रूप में है; या उसके द्वारा धन, माल, प्रतिभूति या किसी भी किस्म की सम्पत्ति की प्राप्ति की लिखित या हस्ताक्षरित अभिस्वीकृति है; या वाणिज्य में उपयोग में आने वाले उसके द्वारा लिखित या हस्ताक्षरित किसी दस्तावेज के रूप में है; या किसी पत्र या अन्य दस्तावेज की तारीख के रूप में है, जो उसके द्वारा प्रायः दिनांकित, लिखित या हस्ताक्षरित की जाती थी;

(ग) जब वह कथन उसे करने वाले व्यक्ति के धन सम्बन्धी या साम्पत्तिक हित के विरुद्ध है या जब, यदि वह सत्य है, तो उसके कारण उस पर दाण्डिक अभियोजन या नुकसानी का वाद लाया जा सकता है या लाया जा सकता था;

(घ) जब उस कथन में ऐसे किसी व्यक्ति की राय किसी ऐसे लोक अधिकार या रूढ़ि या लोक या साधारण हित के विषयों के अस्तित्व के बारे में है, जिसके अस्तित्व से, यदि वह अस्तित्व में होता तो, उससे उस व्यक्ति का अवगत होना सम्भाव्य होता और जब ऐसा कथन ऐसे किसी अधिकार, रूढ़ि या बात के बारे में किसी विवाद के उत्पन्न होने से पहले किया गया था;

(ङ) जब वह कथन किन्हीं ऐसे व्यक्तियों के बीच रक्त, विवाह या दत्तकग्रहण पर आधारित किसी नातेदारी के अस्तित्व के सम्बन्ध में है, जिन व्यक्तियों की रक्त, विवाह या दत्तकग्रहण पर आधारित नातेदारी के बारे में उस व्यक्ति के पास, जिसने वह कथन किया है, ज्ञान के विशेष साधन थे और जब वह कथन विवादग्रस्त प्रश्न के उठाए जाने से पूर्व किया गया था।

(च) जब वह कथन मृत व्यक्तियों के बीच रक्त, विवाह या दत्तकग्रहण पर आधारित किसी नातेदारी के अस्तित्व के सम्बन्ध में है और उस कुटुम्ब की बातों से, जिसका ऐसा मृत व्यक्ति संबंधित था, संबंधित किसी वसीयत या विलेख में या किसी कुटुम्ब वंशावली में या किसी समाधि- पत्थर, कुटुम्ब चित्र या अन्य चीजों पर जिन पर ऐसे कथन प्रायः किए जाते हैं, किया गया है, तथा जब ऐसा कथन विवादग्रस्त प्रश्न के उठाए जाने से पूर्व किया गया था।

(छ) जब वह कथन किसी ऐसे विलेख, वसीयत या अन्य दस्तावेज में अन्तर्विष्ट है, जो किसी ऐसे संव्यवहार से संबंधित है जैसा धारा 11 के खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट है।

(ज) जब वह कथन कई व्यक्तियों द्वारा किया गया था और प्रश्नगत बात से सुसंगत उनकी भावनाओं या धारणाओं को अभिव्यक्त करता है।

दृष्टांत


(क) प्रश्न यह है कि क्या क की हत्या ख द्वारा की गई थी; या क की मृत्यु किसी संव्यवहार में हुई क्षतियों से हो जाती है, जिसके अनुक्रम में उससे बलात्संग किया गया था। प्रश्न यह है कि क्या उससे ख द्वारा बलात्संग किया गया था, या प्रश्न यह है कि क्या क, ख द्वारा ऐसी परिस्थितियों में मारा गया था कि क, की विधवा द्वारा ख के विरुद्ध वाद लाया जा सकता है। अपनी मृत्यु के कारण के बारे में क द्वारा किए गए वे कथन, जो उसने क्रमशः विचाराधीन हत्या, बलात्संग और वादयोग्य दोष को निर्देशित करते हुए किए हैं, सुसंगत तथ्य हैं।

(ख) प्रश्न क के जन्म की तारीख के बारे में है। एक मृत शल्य चिकित्सक की अपने कारबार के साधारण अनुक्रम में नियमित रूप से रखी जाने वाली डायरी में इस कथन की प्रविष्टि, कि अमुक दिन उसने की माता की परिचर्या की और उसे पुत्र का प्रसव कराया, सुसंगत तथ्य है।
(ग) प्रश्न यह है कि क्या क अमुक दिन नागपुर में था। कारबार के साधारण अनुक्रम में नियमित रूप से रखी गई एक मृत सालिसिटर की डायरी में यह कथन, कि अमुक दिन वह सालिसिटर नागपुर में एक वर्णित स्थान पर विनिर्दिष्ट कारबार के बारे में विचार-विमर्श करने के प्रयोजन के लिए क के पास रहा, सुसंगत तथ्य है।

(घ) प्रश्न यह है कि क्या कोई पोत मुम्बई बन्दरगाह से अमुक दिन रवाना हुआ। किसी वाणिज्यिक फर्म के, जिसके द्वारा वह पोत भाड़े पर लिया गया था, मृत सदस्य द्वारा चेन्नई स्थित अपने सम्पर्कियों को, न्हें वह स्थोरा परेषित किया गया था, यह कथन करने वाला पत्र कि पोत मुम्बई पत्तन से अमुक दिन चल दिया, सुसंगत तथ्य है।

(ङ) प्रश्न यह कि क्या क को अमुक भूमि का किराया दिया गया था। क के मृत अभिकर्ता का क के नाम पत्र जिसमें यह कथन है कि उसने क के निमित्त किराया प्राप्त किया है और वह उसे क के आदेश के अधीन रखे हुए है, सुसंगत तथ्य है।

(च) प्रश्न यह है कि क्या क और ख का विवाह वैध रूप से हुआ था। एक मृत पादरी का यह कथन कि उसने उनका विवाह ऐसी परिस्थितियों में कराया था, जिनमें उसका कराया जाना अपराध होता, सुसंगत है।

(छ) प्रश्न यह है कि क्या एक व्यक्ति क ने, जो मिल नहीं सकता अमुक दिन एक पत्र लिखा था। यह तथ्य कि उसके द्वारा लिखित एक पत्र पर उस दिन की तारीख दिनांकित है, सुसंगत है।

(ज) प्रश्न यह है कि किसी पोत के ध्वंस का कारण क्या है। कप्तान द्वारा, जिसकी उपस्थिति उपाप्त नहीं की जा सकती, किया गया ऐसा प्रतिवाद, सुसंगत तथ्य है।

(झ) प्रश्न यह है कि क्या अमुक सड़क लोक मार्ग है। ग्राम के मृत प्रधान क द्वारा किया गया कथन कि वह सड़क लोक-मार्ग है, सुसंगत तथ्य है।

(ज) प्रश्न यह है कि विशिष्ट बाजार में अमुक दिन अनाज की क्या कीमत थी। एक मृत व्यवसायी द्वारा अपने कारबार के साधारण अनुक्रम में किया गया कीमत का कथन सुसंगत तथ्य है।

(ट) प्रश्न यह है कि क्या क, जो मर चुका है, ख का पिता था। क द्वारा किया गया यह कथन कि ख उसका पुत्र है, सुसंगत तथ्य है।

(ठ) प्रश्न यह है कि क के जन्म की तारीख क्या है। क के मृत पिता द्वारा किसी मित्र को लिखा हुआ पत्र, जिसमें यह बताया गया है कि क का जन्म अमुक दिन हुआ, सुसंगत तथ्य है।

(ड) प्रश्न यह है कि क्या और कब क और ख का विवाह हुआ था। ख के मृत पिता ग द्वारा किसी याददाश्त-पुस्तिका में अपनी पुत्री का क के साथ अमुक तारीख को विवाह होने की प्रविष्टि सुसंगत तथ्य है।

(ढ) दुकान की खिड़की में अभिदर्शित रंगित व्यंगचित्र में अभिव्यक्त अपमान-लेख के लिए ख पर क बाद लाता है। प्रश्न व्यंगचित्र की समरूपता और उसके अपमान-लेखीय प्रकृति के बारे में है। इन बातों पर दर्शकों की भीड़ की टिप्पणियां साबित की जा सकेंगी।

संत गोपाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1995 के बाद में उच्च न्यायालय ने कहा की "मृत्युकालिक कथन" से तात्पर्य उस व्यक्ति के लिखित या मौखिक सुसंगत कथनों से है जो मर चुका है।

मृत्युकालिक कथन के बारे में विभिन्न विद्वानों के कथन-

न्यायाधीश लश-  कोई व्यक्ति जो कि तुरंत ही अपने निर्माता (ईश्वर) के समक्ष जा रहा हो, वह अपनी जुबान पर झूठ लेकर न जाएगा ।

आर्नाल्ड- "मरते हुए व्यक्ति, के अधरों पर सत्य का वास होता है ।"

शेक्सपियर - "वे सच बोलते हैं जो तकलीफ में बोलते हैं।

मृत्यु कालिक कथन का विधिक सूत्र

"Memo moriturus, procesumiture mentri"(a man will not meet his maker with a lie in his mouth.)

अर्थात "कोई व्यक्ति अपने निर्माता से अपने मुंह में झूठ के साथ नहीं मिलेगा ।"

यदि मृत्युकालिक कथन को रोक दिया जाए(Excluded) तो इसका परिणाम न्याय की हत्या (Miscarriage of justice)होगा ।

आवश्यक शर्तें-

(1) व्यक्ति जिसने मृत्यु कालिक कथन दिया था, उसकी मृत्यु हो गई हो।

(2) कथन उस व्यक्ति की मृत्यु के कारण के बारे में या ऐसी परिस्थिति के बारे में किया गया हो जिसके फलस्वरुप उसकी मृत्यु हुई हो।

(3) कार्यवाही में उसे व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्न हो |

  कारवाई सिविल या दाडिंक की हो सकती है।

मृत्यु कालिक  कथन की ग्राहयता के संबंध में सामान्य नियम

(1) ऐसा कोई नियम नहीं है कि जब तक मृत्युकालिक कथन समर्थित ना हो इसके आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।

(2) किसी भी अन्य  साक्ष्य की तुलना में मृत्यु कालिक कथन दुर्बल प्रकार का साक्ष्य नहीं होता है ।

(3)ऐसा मृत्यु कालिक कथन जिसे प्रश्न उत्तर रूप में तथा मृतक के अपने शब्दों में किसी मजिस्ट्रेट द्वारा लिखा जाता है पूर्ण रूप से विश्वसनीय होता है।

संकेत द्वारा कथन(statement by signs)

क्वीन इंप्रेस बनाम अब्दुल्ला 1885 के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने कहा कि इशारे द्वारा किया गया का कथन भी बराबर ग्राहय  होगा।

 संव्यवहार की परिस्थितियों जिससे उसकी मृत्यु हुई(circumstances of transaction which resulted in his death)

शरदबरधी चंद शारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य 1984

इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि संव्यहार  की परिस्थितियों में क्रूरता (evidence of cruelty)भी शामिल है।

मृत्यु की प्रत्याशंका का (पूर्वानुमान) आवश्यक नहीं(Expectations of death not necessary)

पकला नारायण स्वामी बनाम एंपरर 1939 पी सी 

इस वाद में प्रिवी कौंसिल ने निर्धारित किया कि कथनकर्ता  को मृत्यु की प्रत्याशंका  होना का आवश्यक नहीं।












 

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