अनुच्छेद 370 व अनुच्छेद 35A
अनुच्छेद 370 अक्टूबर 1949 में लागू हुआ था इसने कश्मीर को आंतरिक प्रशासन की स्वायत्तता प्रदान की थी, जिससे उसे वित्त, रक्षा, विदेशी मामलों और संचार को छोड़कर सभी मामलों में अपने कानून बनाने की अनुमति मिल गई थी ।
2.
अनुच्छेद 370 के
तहत राज्य ने एक अलग संविधान व अलग ध्वज बनाया था, और
बाहरी लोगों को क्षेत्र में संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया
गया था ।
3.
सन
1954 में एक अनुच्छेद 35
(ए) जोड़ा
गया था जिसने राज्य के विधायकों को राज्य के स्थायी निवासियों के लिए विशेषाधिकार सुनिश्चित करने का अधिकार दिया था।
घटना क्रम
- 20 दिसंबर, 2018 - जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद-356 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति शासन लगाया गया। इसके बाद तीन जुलाई, 2019 को इसे बढ़ा दिया गया।
- 5 अगस्त, 2019- केंद्र ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 के प्राविधानों को निरस्त किया।
- 6 अगस्त, 2019 - अनुच्छेद-370 को रद्द करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली पहली याचिका अधिवक्ता एम.एल. शर्मा द्वारा दायर की गई। बाद में शाकिर शब्बीर भी शामिल हो गए।
- 10 अगस्त, 2019 - नेशनल कान्फ्रेंस ने एक याचिका दायर कर कहा कि राज्य की स्थिति में लाए गए बदलावों ने इसके नागरिकों के अधिकारों को उनके जनादेश के बिना छीन लिया है।
- 24 अगस्त, 2019 - प्रेस काउंसिल आफ इंडिया ने कम्युनिकेशन पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के फैसले का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
- 28 अगस्त, 2019 - सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने के लिए कश्मीर टाइम्स के संपादक द्वारा दायर याचिका पर केंद्र व जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया।
- 28 अगस्त, 2019 - तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा।
- 19 सितंबर, 2019- सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया।
- 2 मार्च 2020 - सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 के प्रविधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की सवैचानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेजने से इन्कार कर दिया।
- 25 अप्रैल, 2022 - सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद-370 के प्रविधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को गर्मी की छुट्टियों के बाद सूचीबद्ध करने पर विचार करने के लिए सहमत हुआ।
- 11 जुलाई, 2023 - सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अनुच्छेद-370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अगस्त से दैनिक सुनवाई शुरू करेगा
- 5 सितंबर, 2023 - कोर्ट ने मामले में 23 याचिकाओं पर 16 दिनों तक सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
- 11 दिसंबर, 2023- सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 निरस्त करने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा। साथ ही कहा कि अगले वर्ष 30 सितंबर तक वहां विधानसभा चुनाव कराने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
सर्वोच्च
न्यायालय ने इन सवालों पर विचार किया
Ø 1.क्या
अनुच्छेद - 370
का प्रावधान अस्थाई प्रकृति का था या
फिर उसे संविधान में अस्थाई दर्जा प्राप्त हो गया था?
Ø 2. क्या
अनुच्छेद -370
(1) (डी) की
शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अनुच्छेद-367 में
संशोधन कर राज्य की संविधान सभा की जगह विधानसभा करना संविधान सम्मत है?
Ø 3. क्या
अनुच्छेद -370
(1)(डी) की
शक्ति का इस्तेमाल करते हुए भारत का संपूर्ण संविधान जम्मू कश्मीर में लागू किया
जा सकता है?
Ø 4. क्या
जम्मू- कश्मीर की संविधान सभा की संस्तुति के बगैर राष्ट्रपति का
अनुच्छेद -370
को समाप्त करना संविधान सम्मत है?
Ø 5. क्या
जम्मू कश्मीर में 20 जून 2018 को राज्यपाल शासन घोषित करना और उसके बाद जम्मू कश्मीर
विधानसभा को भंग करना संविधान सम्मत था?
Ø 6. क्या
जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति द्वारा 19
दिसंबर 2018
को अनुच्छेद 356 के
तहत राष्ट्रपति शासन घोषित किया जाना संविधान की नजर में वैद्य था?
Ø 7. जम्मू
कश्मीर को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019
के जरिये दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया जाना
वैध था?
Ø 8. क्या
अनुच्छेद -356
के तहत राष्ट्रपति शासन लागू होने के
दौरान जब विधानसभा या तो भंग हो या निलंबित हो जम्मू कश्मीर का राज्य का
दर्जा केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील किया जा सकता है?
Ø जिस 'विलय-पत्र' पर
जम्मू कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने हस्ताक्षर
किया था उसका प्रारूप भी बिल्कुल वही था,
जिस पर अन्य सभी रियासतों
ने भारत में विलय के दौरान हस्ताक्षर किया था अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान द्वारा जिहादी हमले के बाद जो पत्र महाराजा हरि सिंह
ने माउंटबेटन को लिखा था उसमें उन्होंने कहीं भी रियासत को कोई
विशेषाधिकार दिए जाने का उल्लेख नहीं किया था।
- शेख अब्दुल्ला ने अपनी आत्मकथा "आतिश-ए-चिनार" में स्वीकार किया था-' महाराज हरि सिंह सदैव मजहबी विद्वेष से ऊपर थे और वह अपने कई मुस्लिम दरबारियों के निकट थे।,
- वर्ष 1946 में ,कश्मीर छोड़ो, आंदोलन के दौरान शेख अब्दुल्ला गिरफ्तार हुए
- कालांतर में शेख अब्दुल्ला ने फिर अपनी असली में मजहबी रंग दिखाना शुरू कर दिया"निजाम-ऐ-मुस्तफा " की मांग को गति मिली
- जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के लिए एक निष्पक्ष सत्य एवं सुलह आयोग स्थापित करने की सिफारिश।
- भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद जम्मू कश्मीर के पास ना तो वाह्य संप्रभुता शेष रही और ना ही आंतरिक।
1.
अनुच्छेद 370 की
कोई भी व्याख्या यह नहीं कह सकती कि भारत के साथ जम्मू
कश्मीर का एकीकरण अस्थाई था।
2
जम्मू कश्मीर
के भारत में शामिल होने का विलय पत्र में निष्पादन के बाद और 26 नवंबर
1949 को भारत का संविधान अंगीकार किया जाने के बाद जम्मू कश्मीर के पास संप्रभु राज्य का कोई तत्व नहीं बचा था ।
3 जम्मू कश्मीर के पास कोई आन्तरिक संप्रभुता थी ना बाहरी। अनुच्छेद 370 में
असमान संघवाद का तत्व था,
ना की संप्रभुता का।
Ø सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले में कहा कि अनुच्छेद- 356 के तहत राष्ट्रपति शासन घोषित करने की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। राष्ट्रपति द्वारा इस शक्ति का प्रयोग तर्कसंगत होना चाहिए और उद्देश्य से उसकी संबद्धता होनी चाहिए जो व्यक्ति इस शक्ति को चुनौती देता है उसे प्रथम दृष्टिया साबित करना होता है कि वह दुर्भावना से किया गया या उसके वाह्य कारण थे।
Ø राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 (3 ) में
मिली शक्ति का इस्तेमाल करते
हुए अनुच्छेद 370 समाप्त
करने की एक तरफ अधिसूचना जारी कर सकते हैं ।
Ø राष्ट्रपति को इसके लिए राज्य सरकार की
सहमत लेने या अनुच्छेद 370 (1) (डी) के दूसरे उपबंध के तहत राज्य की ओर से काम कर रही केंद्र सरकार
की सहमत लेने की जरूरत नहीं है ।
Ø राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370(1)के
तहत शक्ति का निरंतर प्रयोग इंगित करता है कि संवैधानिक एकीकरण की प्रक्रिया
जारी थी ।
Ø राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370 (3) के
तहत जारी घोषणा एकीकृत एकीकरण
प्रक्रिया की परिणिति है ।
Ø भारत का संविधान संवैधानिक शासन की
संपूर्ण संहिता है। फैसले में कहा गया कि भारत का संविधान संवैधानिक शासन की पूर्ण संहिता है को 273
के जरिए जम्मू कश्मीर में पूर्णतया के
साथ भारत का संविधान लागू करने के बाद जम्मू कश्मीर का संविधान निष्क्रीय
और व्यर्थ हो गया है।
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