सक्षम साक्षी साक्ष्य अधिनियम की (धारा 118 से 134)

 सक्षम साक्षी -

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के अध्याय 9 के अंतर्गत धारा 118 से 134 तक में साक्षी की सक्षमता तथा उसकी परीक्षाओं के क्रम के विषय में विभिन्न प्रकार से उपबंध प्रावधानित है जिसमें से धारा 118, 119, 120 साक्षी के सक्षमता के संबंध में प्रावधान करती है इसके साथ ही  अधिनियम की धारा 133 जहां सह अपराधी को अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध सक्षम साक्षी घोषित करती है वहीं दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 315 भी अभियुक्त को (प्रतिरक्षा के विषय में) कृति पर औपचारिकताओं के साथ (लिखित निवेदन करने पर) सक्षम साक्षी घोषित करती है

      जो साक्षी सक्षम होते हैं उनका साक्ष्य विधिमान्य तो होता है किंतु उनके साक्ष्य की विश्वसनीयता परखने के लिए उनकी विश्वसनीयता परखी की जाती है और उसे परखने के लिए अधिनियम मुख्य रूप से धारा 155 की व्यवस्था की गई है साथ ही उनकी प्रति परीक्षा भी उनकी विश्वसनीयता के संबंध में विशेष भूमिका अदा करता है।

       सक्षम साक्षी धारा 118 के अंतर्गत यह बताया गया कि कोई व्यक्ति उसे किए गए प्रश्न को समझने या उसका युक्ति संगत उत्तर देने में सक्षम है तो विधि की निगाह में सक्षम साक्षी है।

         यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि वह सक्षम साक्षी नहीं है तो न्यायालय उससे प्रश्न करके यह जांच सकता है कि क्या वह कोमल वयस्क, या अतिवार्धक्य, या शरीर के मन के किसी रोग या इसी प्रकार के अन्य किसी कारण से वह प्रभावित है जिससे कि उससे लिए गए प्रश्न समझने या उसका युक्तिसंगत उत्तर देने में अक्षम हो गया है? यदि न्यायालय के इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक है तो संबंधित व्यक्ति अक्षम होगा। और यदि नकारात्मक है तो संबंधित व्यक्ति विधि की निगाह में सक्षम साक्षी है  और जब वह सक्षम साक्षी होता है तो उसे न्यायालय धारा 132 के अधीन  साक्ष्य देने के लिए विवश भी कर सकता है।

 स्पष्ट है कि साक्षी की सक्षमता वह गुण है जो उसके तार्किक बुद्धि या ज्ञान को इस स्तर की बताती है कि किए गए प्रश्न को समझता है अथवा उसका युक्तिसंगत उत्तर दे सकता है।

   सक्षम साक्षी के प्रकार-

वैसे तो धारा 118 सभी व्यक्तियों को सक्षम साक्षी घोषित करती है फिर भी उम्र  या आयु तथा मानसिक दशा और व्यक्ति की विशेष परिस्थिति के कारण अलग-अलग सक्षम साक्षी के रूप में चिन्हित किया गया है।

(1) बच्चा-

धारा 118 के अंतर्गत कोमल वयस को सक्षम साक्षी घोषित किया गया है शर्त सिर्फ इतनी है कि वह किया गया प्रश्न समझता हो या उसका युक्तिसंगत उत्तर दे सकता हो या इनके आयु का कोई मानक निर्धारित नहीं है।

 किंतु मोहम्मद दास बनाम स्टेट ऑफ पंजाब 1954 के वाद में 5 वर्षीय बच्चा को सक्षम साक्षी बताया गया है। जाहिर है कि बालसाक्षी को सक्षम होने के लिए आयु की अनिवार्यता कम (उक्त शर्त अधिक अपेक्षित है।)

(2)पागल व्यक्ति-

इसके संबंध में धारा 118 के स्पष्टीकरण यह कहता है कि पागल व्यक्ति अक्षम साक्षी नहीं है यदि वह उसे किए गए प्रश्नों को समझने या  उसका युक्ति संगत उत्तर देने में सक्षम है, अर्थात वह उक्त गुणों से संपन्न है तो वह पागल होते हुए भी सक्षम साक्षी है।

(3) मूक व्यक्ति -

धारा 119 के अंतर्गत मूक व्यक्ति को साक्ष्य देने के लिए अधिकृत किया गया है और वह अपना साक्ष्य लिखकर या संकेत  के माध्यम से दे सकते हैं किंतु उन्हें ऐसा न्यायालय के समक्ष ही करना होगा,  इस अधिनियम के पूर्व गूंगे और बहरे व्यक्तियों को साक्ष्य देने में अक्षम माना जाता था किंतु अब ऐसा नहीं है। क्वीन बनाम अब्दुल्ला 1885 के प्रकरण में गूँगी  महिला के इशारे से व्यक्त साक्ष्य को सम्मान दिया गया। 

(4) पति पत्नी -

धारा 120 सिविल मामलों में पक्षकारों के पति या पत्नी और दाडिंक के मामलें में किसी व्यक्ति के विरुद्ध पति या पत्नी सक्षम साक्षी है।

(5) सह अपराधी- धारा 133 सह अपराधी अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध सक्षम साक्षी है

(6) अभियुक्त- सीआरपीसी की धारा 315 यह कहती है की अभियुक्त व्यक्ति प्रतिरक्षा हेतु सक्षम साक्षी है  किंतु यह धारा यह भी कहती है कि उसके लिखित निवेदन पर ही उसका साक्ष्य लिया जाएगा अन्यथा  नहीं। 

      विश्वसनीयता अधिक्षिप्त करने के तरीके-

निम्नलिखित तरीकों से साक्षियो  विश्वसनीयता अधिक्षिप्त  की जाती है

(1) प्रति परीक्षा-

 साक्षी की प्रतिपरीक्षा करके उसकी विश्वसनीयता अधिक्षिप्त की जा सकती  है। धारा 145 के अधीन उसके पूर्व कथन को साबित करके, वर्तमान कथन का खंडन करके या धारा 146 के अंतर्गत यह पूछ कर कि वह कौन है? जीवन में उसकी स्थिति क्या है? या उसकी शील को धक्का पहुंचा कर या उसकी सत्यवादिता  संबंधी प्रश्न करके भी विश्वसनीयता अधिक्षिप्त की जा सकती है, इसके साथ ही धारा 155 साक्षी की विश्वसनीयता अधिक्षिप्त करने के कुछ विभिन्न तरीके बताती है जो निम्नवत हैं -

(1) ऐसे साथियों को पेश करके जो अपने ज्ञान के आधार पर किसी साक्षी को विश्वसनीयता  के अयोग्य समझते हैं।

(2) यह साबित करके कि साक्षी ने साक्ष्य देने हेतु रिश्वत प्राप्त किया है  या रिश्वत का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है या उसको कोई भ्रष्ट उत्प्रेरणा मिली हुई है।

(3)साक्षी के द्वारा किए गए असंगत पूर्व कथनों को साबित करके।

     निष्कर्ष- इस प्रकार किसी साक्षी की विश्वसनीयता को उपरोक्त तरीकों में से किन्ही या सभी तरीकों से अधिक्षिप्त किया जा सकता है।


प्रश्न- कौन-कौन से लोग सक्षम साक्षी है इसे जांचने की विधिक कसौटी क्या है।?

उत्तर- सभी गवाह सक्षम है या नहीं, यह इस बात पर आधारित है कि वह न्यायालय द्वारा पूछे गए प्रश्नों को समझ सकता है या नहीं। और समझकर उसका युक्तिसंगत उत्तर दे सकता है, अथवा नहीं। यहां तक की एक पागल भी सक्षम साक्षी है, बशर्ते कि वह प्रश्नों को समझने और उत्तर देने में समर्थ हो। किसी साक्षी की सक्षमता की एकमात्र परख उसकी समझने की शक्ति है। (ए .आई.आर .1953 पटना) के मामले में कहा गया कि धारा 118 के अनुसार 6 या 7 वर्ष की आयु का बालक सक्षम साक्षी है यदि वह उससे किए गए प्रश्नों को समझने और उनका युक्तिसंगत उत्तर देने की शक्ति रखता है।





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