प्रतिपरीक्षा साक्ष्य अधिनियम


 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अध्याय 10 में धारा 135 से लेकर धारा 166 तक में साक्षियों के संबंध में विभिन्न प्रकार के उपबंध किए गए हैं धारा 137, 138 और 143 से 149 तक की धारायें प्रतिपरीक्षा के संबंध में विभिन्न प्रावधान करती हैं।

       परीक्षा-

किसी तथ्य के सत्यता या असत्यता को प्रश्ननोत्तर के माध्यम से जांच करना ही परीक्षा है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 137 के पैरा (2) में प्रतिपक्षी द्वारा जब यही परीक्षा की जाती तो उसे प्रतिपरीक्षा कहते हैं।

        प्रतिपरीक्षा-

अधिनियम की धारा 137 के पैरा (2) के अनुसार- " किसी साक्षी की प्रतिपक्षी द्वारा की गई परीक्षा उसकी प्रतिपरीक्षा कहलाती है, इसी को अदालती भाषा में जिरह भी कहते हैं। जब कोई पक्ष अपने गवाह की मुख्य परीक्षा कर लेता है तो विपक्ष को उसकी प्रतिपरीक्षा करने का अधिकार होता है प्रतिपरीक्षा को सत्यता की जांच का बहुत बड़ा अस्त्र माना जाता है प्रतिपरीक्षा साक्ष्य  की समस्त आधुनिक प्रणालियों का एक आवश्यक स्वरूप है। 


       प्रोफेसर विगमोर के शब्दों में-

प्रति परीक्षा सत्य को खोजने के लिए कभी अस्वीकृत किया गया महानतम विधिक इंजन है तथा सत्य तक पहुंचाने की शल्य  क्रिया है। 

         कौन से प्रश्न पूछे जा सकेंगे-

साक्ष्य अधिनियम की धारा 138(2) कहती है कि मुख्य परीक्षा और प्रतिपरीक्षा को सुसंगत तथ्यों तक सीमित होना होगा लेकिन प्रतिपरीक्षा का उन तथ्यों तक सीमित रहना आवश्यक नहीं है जिनका परिसाक्ष्य मुख्य परीक्षा में दिया गया है।

     प्रति परीक्षा में निम्नलिखित प्रश्नों को पूछा जा सकेगा-

(1) कोई भी सुसंगत प्रश्न पूछे जा सकेंगे।(धारा 138)

(2) सूचक प्रश्न पूछा जा सकेगा।(धारा 143)

(3)यदि संविदा, अनुदान या  संपत्ति का अन्य कथन दस्तावेज के संबंध में है, लेखबद्ध है  तो यह पूछा जा सकेगा की साक्षी दस्तावेज  क्यों नहीं पेश कर रहा है। (धारा 144)

(4) साक्षी के द्वारा दिए गए पूर्व कथन के बारे में प्रश्न पूछा जा सकेगा।(धारा 145)

(5)साक्षी की सत्यवादिता का परखने के प्रवृत्ति के प्रश्न।(धारा 146)    (6)साक्षी कौन है जीवन में उसकी स्थिति क्या है।

(7) शील से संबंधित प्रश्न पूछे जा सकेंगे।

(8) यदि प्रश्न केवल साक्षी के शील को दोष लगाकर उसकी विश्वसनीयता अधिक्षिप्त  करने के संबंध में है तो उचित प्रश्न पूछे जा सकेंगे।(धारा 148)

 (9)सुआधारित कोई भी प्रश्न पूछा जा सकेगा।(धारा 149)

(10) ऐसे प्रश्न जो ऐसे किसी तथ्य को स्पष्ट करने के लिए आवश्यक है, जबकि ऐसा तथ्य मामले को  अवधारित करने के लिए न्यायालय की राय में ज्ञात होना आवश्यक है  पूछे जा सकेंगे है। (धारा-151)

(11)असंगत पिछले कथनों के संबंध में प्रश्न किया जा  सकते है।(धारा 155)

     कौन से प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं?

(1) कोई भी असंगत प्रश्न नहीं पूछे जा सकेंगे।(धारा 138)

 यदि उसके साक्षी के शील को दोष पहुंचाकर उसकी विश्वसनीयता अधिक्षप्त करने के संबंध में ही वह प्रश्न किया जा रहा है और अनुचित है,  तो नहीं पूछा जा सकेगा।(धारा 148)

(3) बिना आधार के कोई प्रश्न नहीं पूछे जा सकेंगे।( धारा 149)

 (4)सामान्यतः आशिष्ट एवं कलंकात्मक प्रश्न नहीं पूछे जा सकेंगे।(धारा 151)

 (5)अनावश्यक तौर से अपमानित या क्षुब्ध करने वाले प्रश्न या अन्यथा  संताकारी प्रश्न नहीं पूछे जा सकेंगे।(धारा 152)

       प्रति परीक्षा का उद्देश्य-

आधुनिक न्याय प्रणाली  बहुत कुछ साक्ष्यआधारित है, और ऐसे साक्ष्य के माध्यम से चाहे लिखित चाहे मौखिक रूप में न्यायालय के समक्ष लाये जाते हैं ऐसी दशा में यह आवश्यक है  कि ऐसे साक्षियों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य की सत्यता साक्षी की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता को परखा जाए और इसे परखने का सर्वोत्तम विधिक साधन जिरह है।

 प्रति परीक्षा के उद्देश्य को प्रसिद्ध विधिशास्त्री पावेल ने निम्न शब्दों में वर्णित किया है-

"प्रति परीक्षा का उद्देश्य गवाह की विश्वसनीयता एवं उसकी योग्यता को सामने लाना है- गवाहों द्वारा पहले कहे गए तथ्यों की सूचना परीक्षा कर उन्हें अलगाना है। विरोधों का पता लगाना है। इसका उद्देश्य असंगति को खोजना और प्रस्तुत करना है या दबे हुए तथ्य को निकालना है जिससे प्रति परीक्षा करने वाले पक्ष का मामला मजबूत बने।

 फिफ्सन के अनुसार प्रति परीक्षा के दो उद्देश्य होते हैं। (1)पक्षकार के मामले को कमजोर करना या नष्ट करना,और विरोधी पक्ष के दवा से अपने मामले को सुदृढ़ करना|

(2) विरोधी पक्ष के गवाह से अपने मामले को सुदृढ़  करना। 

          प्रति परीक्षा की प्रकृति-

प्रति परीक्षा उसी प्रकार अन्तर्ज्ञान  या अनुभव से प्राप्त होती है जैसे - संगीत।

          प्रतिपरीक्षा का क्षेत्र

जब गवाह को बुलाने वाला पक्षकार अपनी मुख्य परीक्षा समाप्त कर देता है तब विरोधी पक्षकार  को उस गवाह से प्रतिपरीक्षा करने का अधिकार होता है प्रतिपरीक्षा को सुसंगत तथ्यों से संबंधित होना होगा। किंतु इसे मुख्य परीक्षा में कहे गए तथ्यों तक सीमित रहना आवश्यक नहीं है। साक्षी की परीक्षा में प्रतिपरीक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है एक कुशल प्रतिपरीक्षा एक अधिवक्ता की कला की सर्वोच्च उपलब्धि है।

क्या कोई पक्षकार अपने ही द्वारा बुलाये  गये गवाह की प्रति परीक्षा कर सकता है?

        पक्षद्रोही साक्षी-(धारा 154)

न्यायालय उस व्यक्ति को जो साक्षी को बुलाता है उस साक्षी से ऐसा कोई प्रश्न करने की अनुमति अपने विवेकानुसार दे सकेगा जो कि प्रतिपक्षी द्वारा प्रतिपरीक्षा में किया जा सकता है।

         सतपाल बनाम दिल्ली एडमिनिस्ट्रेटर के वाद में कहा गया कि साक्षी को पक्षद्रोही घोषित करना अनिवार्य नहीं है।  और यह भी कहा कि जिरह की तरह प्रश्न पूछना न्यायालय का विवेकाधिकार है।

         गुलशन कुमार बनाम  राज्य के वाद में कहा गया कि  गवाह पक्षद्रोही हो जाता है तो उसके द्वारा किए गए कथन में से यदि न्यायालय समझे तो भागतः ग्रहण कर सकता है।https://urlwwwvidiksangyan.blogspot.com/2023/11/blog-post_8.html










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