साक्षी की विश्वसनीयता साक्ष्य अधिनियम (धारा 155)

 साक्षी की विश्वसनीयता-


साक्ष्य अधिनियम की धारा 155 के अनुसार, किसी साक्षी की विश्वसनीयता पर प्रतिपक्षी द्वारा या न्यायालय की सम्मति से उस पक्षकार द्वारा, जिसने उसे बुलाया है,  निम्नलिखित प्रकार से अधिक्षेप किया जा सकेगा-

(1) उन व्यक्तियों के साक्ष्य द्वारा, जो यह परिसाक्ष्य देते हैं कि वे अपने ज्ञान के आधार पर उसे विश्वसनीयता का अपात्र समझते हैं।

(2) यह साबित किए जाने द्वारा कि साक्षी को रिश्वत दी गई है, या उसने रिश्वत  की प्रस्थापना प्रतिग्रहित कर ली है या उसे अपना साक्ष्य देने के लिए अन्य भ्रष्ट उत्प्रेरणा मिली है।

(3) उसके साक्ष्य के ऐसे भाग से, जिसका खंडन किया जा सकता है, असंगत पिछले कथनों को साबित करके।

      स्पष्टीकरण- कोई साक्षी जो किसी अन्य को विश्वास नहीं था के लिए पात्र घोषित करता है अपने से की गई मुख्य परीक्षा में अपने विश्वास के कर्म को चाहे ना बताएं किंतु प्रति परीक्षा में उसके कर्म को पूछा जा सकेगा और उन उत्तरों का धन्यवाद देता है खंडन नहीं किया जा सकेगा परंतु यदि मिथ्या हो तो उसे पर मिथ्या साक्षी देने का आरोप लगाया जा सकेगा।

       मोहम्मद बनाम स्टेट आफ हरियाणा 2002 के वाद में पुत्र ने कहा कि अभियुक्त ने उसकी मां की हत्या की है। उसने अपने पहले कथन का खंडन किया, किंतु उसे ऐसा नहीं करने दिए गया कि कथन लिखित नहीं था। प्रतिपरीक्षा में उसके पूर्व कथन के बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछे गए थे।




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