साक्ष्य तथा सबूत में अंतर
साक्ष्य एवं सबूत में अंतर-
साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 पैरा 6 से स्पष्ट होता है कि साक्ष्य किसी तथ्य को साबित करने का माध्यम है। यह माध्यम मौखिक या लिखित होता है।
साक्ष्य-
साक्ष्य शब्द से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते है-
(1) वे सभी कथन जिनके जाँचाधीन तथ्य के विषयों के संबंध में न्यायालय अपने सामने साक्षियों द्वारा किए जाने की अनुज्ञा देता है या अपेक्षा करता है। ऐसे कथन मौलिक साक्ष्य कहलाते हैं।
(2) न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की गई सब दस्तावेजें ऐसी दस्तावेजी साक्ष्य कहलाती हैं।
साक्ष्य शब्द अंग्रेजी के Evidence का हिंदी अनुवाद है, जो लैटिन शब्द Evidare से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है "अस्पष्ट दर्शित करना।"
जाहिर है कि वह सभी विषयवस्तु या वस्तु स्थिति जो किसी विवाद्यक तथ्य के अस्तित्व या अनस्तित्व के संबंध में प्रकाश प्रक्षेपित करते है, साक्ष्य की कोटि में आते हैं।
जैसे-
प्रश्न यह है कि क्या 'क' ने 'ख' को मारा। जिस व्यक्ति ने मारते हुए देखा था उसका कथन मारने की घटना का मौखिक साक्ष्य होगा और इसके द्वारा मारने की घटना को, जो एक तथ्य है, साबित किया जा सकेगा।
इसी प्रकार जहां प्रश्न हो कि किराएदार ने किराया अदा किया तो मकान मालिक द्वारा दी गई रसीद उस तथ्य का दस्तावेज साक्ष्य है।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि किसी तथ्य को साबित करने का जो माध्यम होता है उसी को साक्ष्य कहते है।
दूसरी और साक्ष्य का जो प्रभाव होता है उसे सबूत कहते है। यदि साबित किया जाने वाला तथ्य दिए गए साक्ष्य से साबित हो जाता है तो हम कहते है कि प्रश्नास्पद तथ्य साबित हो गया है और दिया गया साक्ष्य उस तथ्य का सबूत है। जैसे यदि यह साबित हो जाता है कि किरायेदार द्वारा दाखिल रसीद मकान मालिक द्वारा ही हस्ताक्षर करके दी गई है जो किराए का दिया जाना साबित हो जाता है और रसीद उसका सबूत है।
इस प्रकार साक्ष्य किसी तथ्य को साबित करने का माध्यम है उसका प्रभाव ही सबूत है। साक्ष्य इसी प्रकार प्रमाण नहीं है
जैसे- सीमेंट और ईट मकान नहीं है वह केवल मकान बनाने का साधन है। इस प्रकार साक्ष्य सबूत की नींव है।
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