रेसजेस्टे का सिद्धांत साक्ष्य अधिनियम (धारा 6)
रेसजेस्टे का सिद्धांत-
साक्ष्य अधिनियम के अध्याय 2 धारा 6 के अधीन एक ही संव्यवहार में आने वाले तथ्यों की सुसंगतता का उल्लेख किया गया है। जो निम्नवत है
"जो तथ्य विवाद्यक ना होते हुए भी किसी भी विवाद्यक तथ्य से इस प्रकार संशक्त हैं कि वह एक ही संव्यवहार के भाग है, वे तथ्य सुसंगत है चाहे वे उसी समय और स्थान पर या विभिन्न समयों या स्थान पर घटित हुई हो "
धारा 6 में विहित सिद्धांत को अंग्रेजी विधि में रेसजेस्टे के नाम से जानते हैं। इस पद की आलोचना आंग्ल विधिवेताओं द्वारा इस आधार पर की गई है कि यह असंदिग्ध पद है जो कि न्याय के मार्ग में पग पग पर संदेह की स्थिति उत्पन्न करता है। अतः इसे इंग्लिश शब्दकोष से निकाल देना न्यायाचित होगा।
इस प्रकार धारा 6 के अंतर्गत अवधारित इस सिद्धांत की प्रायोज्यता हेतु निम्नवत तत्वों का विद्मान होना आवश्यक है।
(1) परस्पर संबंध तथ्यों पर कोई विवाद ना हो किंतु वे तथ्य इस प्रकार विवाद्यक तथ्यों से बंधे हुए हो की विवाद्यक तथ्य का अस्तित्व या अनास्तित्व उससे अलग करके देखा ही ना जा सके।
(2) इसका संबंध इतना घनिष्ठ हो कि वे एक ही संव्यवहार के भाग लगे।
संव्यवहार क्या है?
यह शब्द भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कहीं परिभाषित तो नहीं है किंतु स्टीफन महोदय ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि-
संव्यवहार परस्पर संम्बद्ध तथ्यों का एक समूह है जिसे एक ही नाम से निर्देशित किया जा सकता है, जैसे-अपकृत्य, संविदा, अपराध आदि।
संव्यवहार के अर्थ को रटन बनाम क्वीन के प्रकरण से भी समझाया जा सकता है-
अपनी ही पत्नी की हत्या के लिए आरोपित व्यक्ति का तर्क है की गोली दुर्घटना वश या अचानक चल गई। प्रस्तुत प्रकरण में पत्नी टेलीफोन ऑपरेटर को फोन कर रही थी कि मुझे पुलिस से मिला दीजिए। वह बहुत घबराहट में थी उसने अपना पता बताया तत्पश्चात फोन कट गया।उक्त सभी बातें एक ही संव्यवहार का भाग मानते हुए निर्धारित किया गया था क्योंकि (1)टेलीफोन पर पुलिस की सहायता मांगना(2) घबराहट की हालत में उसका टेलीफोन करना(3) एकाएक टेलीफोन का ठप हो जाना यह बताता है कि उसकी हत्या साशय थी, दुर्घटनावश नहीं थी। क्योंकि दुर्घटना से पीड़ित व्यक्ति को यह ख्याल ही पैदा नहीं हो सकता कि वह दुर्घटना से पहले पुलिस को बुला ले।
एक ही संव्यवहार का भाग होने के लिए आवश्यक नहीं है की सभी तथ्य एक ही समय एक ही स्थान पर घटित हुए हो या भिन्न-भिन्न समयों और भिन्न-भिन्न स्थानों पर भी घटित हो सकते हैं।
यह सिद्धांत लागू करने में न्यायालय कथन और घटना के मध्य अंतराल न होने पर बल देता है अर्थात कथन घटना के इतना पूर्व या पश्चात हुआ हो जिससे न तो सोच विचार कर कहने और न झूठी कहानी गढ़ने का मौका मिले।
इस पर प्रमुख वाद आर बनाम वेडिंगफील्ड का है- एक स्त्री का गला कटा हुआ था अचानक उस कमरे से निकली जिसमें उसे जख्मी किया गया था मृत्यु के कुछ ही क्षण पूर्व उसने कहा "चाचा देखो वेडिंग फील्ड ने मेरी क्या दुर्दशा की है " मुख्य न्यायाधीश का काकबर्न ने कहा कि यह कथन अग्राह्य है क्योंकि यह कथन उसने जख्मी होते समय नहीं बल्कि बाद में कहा था अतः एक ही संव्यवहार का भाग नहीं था। यद्यपि उक्त निर्णय की आलोचना के बाद भी हाउस आफ लॉर्ड्स ने आर बनाम क्रिस्टाई में वेडिंगफील्ड के निर्णय का समर्थन किया था। जबकि आर बनाम फोस्टर के वाद में घटना के बाद किए गए कथन को एक ही संव्यवहार का भाग माना ।
निष्कर्ष तो हम कह सकते हैं की घटना एवं कथन के मध्य का समयअंतराल सुसंगतता का निर्धारक मापदंड नहीं हो सकता बल्कि तथ्यों के आधार पर न्यायाधीशों को अन्य परिस्थितियों का भी अवलोकन करना चाहिए।
इस प्रकार हम देखते हैं ऐसे तथ्य जो एक ही संव्यवहार के भाग होते है, रेसजेस्टे के अंतर्गत आते हैं।भारत में रेसजेस्टे के सिद्धांत को जहां धारा 6 में अधिनियमित किया गया है और धारा 7,8,9, 10 ,14 ,15, 16 उसके विशिष्ट दृष्टांत है।https://urlwwwvidiksangyan.blogspot.com/2023/11/6.html
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