शिनाख्त परेड साक्ष्य अधिनियम (धारा 9)

 शिनाख्त परेड-

शिनाख्त परेड साक्ष्य अधिनियम (धारा 9)

 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अध्याय 2 की धारा 9 से शिनाख्त परेड की कार्यवाही से संबंधित है।

          धारा 9 के अनुसार वे तथ्य जो विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के स्पष्टीकरण या पुरस्थापना के लिए आवश्यक है अथवा जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य द्वारा इंगित अनुमान का समर्थन या खंडन करते हैं,  अथवा जो किसी व्यक्ति या वस्तु की, जिसकी अनन्यता सुसंगत हो, और अनन्यता स्थापित करते हैं, अथवा वह समय यह स्थान स्थिर करते हैं जहां या जहां कोई विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य घटित हुआ अथवा जो उन पक्षकारों का संबंध दर्शित करते हैं जिनके द्वारा ऐसे किसी तथ्य का संव्यवहार किया गया था, वहां तक सुसंगत है जहां तक वे उसे प्रयोजन के लिए आवश्यक हो।

        शिनाख्त की कार्यवाही का साक्ष्य इसी धारा के अंतर्गत आता है ऐसे साक्ष्य की उपयोगिता का स्पष्टीकरण उच्चतम न्यायालय के रामनाथन बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु के मामले में मिलता है। न्यायमूर्ति सिंघल ने कहा शिनाख्त की कार्यवाही  बहुत ही लंबे अर्से से प्रयोग में चली आ रही है इसका ढंग यह है कि जिस व्यक्ति पर शक होता है उसे कई अन्य व्यक्तियों के साथ लाइन में खड़ा कर दिया जाता है और फिर यह देखा जाता है कि वे व्यक्ति जो मौके पर गवाह थे, वे भी उसे पहचान पाते है या नहीं। पहचान हो जाने पर एक साक्ष्य बन जाता है कि उसी व्यक्ति ने अपराध किया होगा। ऐसी कार्यवाही और भी आवश्यक हो जाती है जब मौके के गवाह अपराधी का नाम नहीं बता पा रहे हो। परंतु इस बात का वे दावा करते है  कि चाहे वे उसे पहले से नहीं जानते थे, वे उसे पहचान लेंगे और उसके नेन नक्श भी बता सकेंगे यदि वह उनके सामने फिर से आ जाए।ऐसी शिनाख्त दोनों पक्षकारों के हित में है,  अर्थात अभियुक्त तथा अन्वेषक। अन्वेषण करने वाले अधिकारी को यह जानने में सुविधा मिलती है कि क्या उसके गवाहों ने सचमुच में अपराधी देखा था और वे उसे पहचानने की क्षमता रखते थे या नहीं ? यदि ऐसा है तो इससे अभियुक्त  की पहचान में जो कमी रह जाती है वह पूरी की जा सकती है तथा संदेह को मिटाया जा सकता है।  संदेह जनक व्यक्ति को लाइन में खड़ा करके उसकी शिनाख्त  करवाने से इस बात की परीक्षा होती है कि गवाह की याद तथा सत्यता सही है। यह ढंग से शिनाख्त  के प्रयोजन के लिए सफल रहा। 

         साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत पहचान परेड को सुसंगत माना गया है  इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति या वस्तु की अनन्यता अथवा पहचान को साबित करना है पहचान परेड अन्वेषण के प्रक्रम का साक्ष्य होता है यह ऐसे अपरिचित व्यक्ति को जिसे साक्षी ने घटना के समय देखा था, उसे कई व्यक्तियों के साथ एक लाइन में खड़ा करके उनके बीच में से साक्षी के पहचाने की क्षमता के प्रश्न पर उसकी सत्यवादिता को परखना है।  अभियुक्त  पहचान परेड कराई जाने का अधिकार के रूप में दवा नहीं कर सकता है। 

        पहचान परेड दण्ड प्रकिया संहिता की धारा 162 के अंतर्गत अन्वेषण प्रक्रिया का एक हिस्सा है पहचान परेड के लिए कोई सटीक फार्मूला नहीं है कि इसे कब या कितने समय के अंतराल पर कराया जाना चाहिए। यह प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर निर्भर करता है फिर भी इसे उपलब्ध प्रथम अवसर पर ही आयोजित किया जाना चाहिए।

        दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 291 'क' के अंतर्गत, जब कोई दस्तावेज जो किसी व्यक्ति या वस्तु के संदर्भ में किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट की स्वहस्ताक्षरित रिपोर्ट होना तात्पर्यित है, इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के तौर पर प्रयोग की जा सकेगी,  चाहे ऐसे मजिस्ट्रेट को साक्षी के तौर पर न बुलाया गया हो।

        परंतु जब ऐसी शिनाख्त  रिपोर्ट किसी संदिग्ध  व्यक्ति या साक्षी का विवरण है  साक्ष्य  अधिनियम की  धारा 21,32, 33,155, 157 के उपबंध लागू होते हैं, वहां ऐसा विवरण इस उपधारा  के अधीन उन धाराओं के उपबंधों के सिवाय उपयोग में नहीं लाया जाएगा।

        उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन बनाम बी.सी. शुक्ला में कहा कि गवाहों द्वारा किसी अभियुक्त  का न्यायालय  में आकर पहचान कर लेना जबकि इससे पूर्व शिनाख्त  की कार्यवाही  न की गई हो व्यर्थ  साक्ष्य होगा।

        स्टेट आर. ए .पी. बनाम वी. के. वेंकट रेड्डी के वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त की साक्षियों  द्वारा फोटो देखकर की गई पहचान इस धारा के अंतर्गत साक्ष्य में ग्रहण की गई है।  उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसे भी शिनाख्त की कार्यवाही का स्थान दिया जाना चाहिए।

      रामकिशन बनाम मुंबई राज्य 1953 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि शिनाख्त परीक्षण कोई भी व्यक्ति कर सकता है।

       इकबाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य  2015 के वाद में न्यायालय ने निर्धारित किया कि केवल साक्षी की गवाही और उसके द्वारा पहचान परेड में पहचान के आधार पर अभियुक्त की दोषसिध्दि  नहीं की जा सकती। 

       राजा बनाम राज्य पुलिस निरीक्षक दिसंबर 2019 के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि पहचान परेड अन्वेषण का हिस्सा है यह सारवान साक्ष्य नहीं है,  अपितु संपुष्टीकारक साक्ष्य है साक्षी द्वारा  न्यायालय में की गई अपराधी की पहचान किसी पहचान परेड में की गई उसकी पहचान के अपेक्षा सर्वोत्तम होता है।

      निष्कर्ष- पहचान परेड में अभियुक्त के पहचान का साक्ष्य मूलभूत साक्ष्य नहीं होता है।  इसकी प्रकृति केवल संपुष्टिकारक होती है अतः मात्र से शिनाख्त परेड के आधार पर अभियुक्त की दोषसिध्दि  नहीं की जा सकती है। 

प्रश्न - अभियुक्त की शिनाख्त  परेड तथा साक्ष्य में क्या मूल्य है ? एवं दडं प्रकिया संहिता एवं साक्ष्य अधिनियम इस बारे में दिए गए संबंधित प्रावधानों के संदर्भ में विवेचना करें।

https://urlwwwvidiksangyan.blogspot.com/2023/11/9.html





कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.