दस्तावेज साक्ष्य द्वारा मौखिक साक्ष्य का अपवर्जन (साक्ष्य अधिनियम की धारा 91,92)
दस्तावेजी साक्ष्य द्वारा मौखिक साक्ष्य के अपवर्जन-
किस हद तक और किन मामलों में मौखिक साक्ष्य दस्तावेजी साक्ष्य द्वारा अपवर्जित होता है, इसकी व्याख्या भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 91 और 92 में की गई है।
धारा -91 निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है-
(1) किसी तथ्य को साबित करने के लिए सर्वोत्तम साक्ष्य ही पेश किया जाना चाहिए।
(2) दस्तावेज साक्ष्य मौखिक साक्ष्य की अपेक्षा सर्वोत्तम होता है।
सिद्धांत यह है कि "जो भी बात लिखित रूप में है उसे लिखत द्वारा ही साबित किया जाना चाहिए।"
धारा 91 के अनुसार जो संविदा या अनुदान या संपत्ति का किसी प्रकार का अंतरण दस्तावेज के रूप में लेखबद्ध कर लिए गए है, या जिस दशा में लेखबद्ध होगा विधि द्वारा अपेक्षित है, तो ऐसे संव्यवहार को साबित करने के लिए दस्तावेज के प्राथमिक या द्वितीयक साक्ष्य को छोड़कर कोई अन्य साक्ष्य नहीं दिया जा सकता है। धारा 91 केवल लिखित संविदा अनुदान या संपत्ति के व्ययन के निबंधनों के दस्तावेजों को लागू होती है संविदा के तथ्यों पर यह धारा लागू नहीं होती है जहां किसी दस्तावेज़ में संविदा के निबंधन न हो वहां उसके संबंध में मौखिक साक्ष्य दिया जा सकता है।
धारा 91 के दो अपवाद हैं
(1)लोकपद पर नियुक्ति- जब विधि द्वारा या अपेक्षित है कि लोक ऑफिसर की नियुक्ति लिखित रूप में हो और जब यह दिखाया जाए कि किसी विशिष्ट व्यक्ति ने ऐसे अधिकारी की हैसियत से कार्य किया है। तो उसका हस्तलेख साबित करने की आवश्यकता नहीं है।
(2) विल- जब एक प्रोबेट किसी वसीयत के आधार पर प्राप्त किया गया है और बाद में उस वसीयत के अस्तित्व के बारे में प्रश्न उठता है तो मूल वसीयत को प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। प्रोबेट का अर्थ अधिप्रमाणित वसीयत है।
धारा 92 भी धारा 91 की तरह इस नियम पर आधारित है कि जो कुछ लेखबद्ध है वह स्वतः लेख से ही सिद्ध होना चाहिए धारा 91 के अनुसार यदि किसी संविदा आदि को लिखित रूप में होना आवश्यक है तो साक्ष्य में केवल उस संविदा का दस्तावेज ही प्रस्तुत किया जाएगा और दूसरा साक्ष्य नहीं। अब धारा 92 कहती है कि यदि कोई संविदा आदि धारा 91 के अनुसार दस्तावेज को पेश करके साबित कर दी गई है तो इसके बाद पक्षकारों अथवा उनके हित प्रतिनिधियों को संविदा आदि की शर्तों का खंडन करने हेरफेर करने जोड़ने या घटाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस तरह से धारा 91 और 92 एक दूसरे की पूरक है, साथ ही स्पष्ट है कि धारा 92 तभी चलायमान होती है जब धारा 91 के अंतर्गत दस्तावेज को सिद्ध किया जा चुका हो, इसके पूर्व नहीं।
इस संबंध में प्रिवी काउंसिल द्वारा धारा 91 और 92 में अंतर्निहित सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि यह सामान्य नियम है कि जहां कहीं भी या तो विधि की अपेक्षाओं द्वारा या पक्षकारों की संविदा लेखबद्ध दस्तावेज जिनको इसलिए लिखित रूप दिया गया है ताकि याददाश्त रहे और सत्यता से कोई पक्षकार न मुकरे, साक्ष्य में प्रस्तुत की जाती है वहां कोई अन्य साक्ष्य लिखित दस्तावेज में हेरा फेरी करने के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता है।
धारा 92 को धारा 91 के अनुबंध के रूप में पढ़ना चाहिए दोनों धारायें एक ही सिद्धांत पर आधारित है मौखिक साक्ष्य से दस्तावेजी साक्ष्य की श्रेष्ठता। धारा 92 का मुख्य उद्देश्य मिथ्या अथवा झूठ साक्ष्य को हतोत्साहित करना है धारा 92 किसी लिखत अथवा दस्तावेज के पक्षकारों एवं उनके हित प्रतिनिधियों पर ही लागू होती है अन्य व्यक्तियों पर नहीं। धारा 92 उन्हीं दस्तावेजों को लागू होती है जो दो या अधिक पक्षकारों के बीच लिखी जाती है और उनको नहीं जो एक व्यक्ति द्वारा निष्पादित की जाती है, जैसे कि बिल मुख्तारनामा आदि। धारा 92 यह महत्वाकांक्षा करती है कि दस्तावेज के लेख से ही उस दस्तावेज के अर्थ और आशय को समझ जाना चाहिए। उसे स्पष्ट करने के लिए अलग से साक्ष्य नहीं दिया जा सकता है।
प्रिवी कौंसिल द्वारा निर्णीत बाल किशन बनाम डब्ल्यू . एल. सेन 1899 के वाद में कहा गया कि किसी दस्तावेज के निष्पादित किए जाने में उसके पक्षकारों का आशय क्या था, इसे स्पष्ट करने के लिए दिया गया मौखिक साक्ष्य, साक्ष्य में अग्राहय है।
यह ध्यातव्य है कि धारा 92 का प्रावधान केवल संबंधित दस्तावेज के पक्षकारों या उसके विधिक प्रतिनिधियों को ही प्रभावित करता है अन्य व्यक्तियों को नहीं क्योंकि यह बात धारा 99 को समझ लेने पर अधिक स्पष्ट हो जाती है धारा 99 के अनुसार वे व्यक्ति जो किसी दस्तावेज़ के पक्षकार या उसके हित प्रतिनिधि नहीं है ऐसे किन्हीं भी तथ्यों का साक्ष्य दे सकेंगे, जो दस्तावेज के निबंधनो में फेरफार करने वाले किसी समकालीन कारण को दर्शित करने की प्रवृत्ति रखते हो।
मौखिक साक्ष्य को किसी लिखत के निबंधनों को खंडित करने से वर्जित करने के निम्नलिखित कारण है।
(1) विधि श्रेष्ठतम साक्ष्य की अपेक्षा करता है, अतः घटिया साक्ष्य ग्रहण करना विधि की इस मांग की उपेक्षा करना होगा।
(2) जब पक्षकारों ने जानबूझकर स्वेच्छा से अपने काम को लेखबद्ध कर दिया है तो यही निश्चायक उपधारणा की जाती है कि उसका आशय यह था कि लिखत ही उसके आशयों का संपूर्ण एवं अंतिम कथन होगा और भविष्य में वह किसी प्रक्रम पर फसाद, दुर्भावना तथा विस्तृति का विषय न रहेगा।
अपवाद- यह सामान्य नियम कि किसी दस्तावेज की शर्तों के खंडन करने अथवा फेरफार करने हेतु कोई मौखिक साक्ष्य की अनुमति नहीं दी जाएगी- के निम्नलिखित अपवाद है-
(1) ऐसा कोई तथ्य जो दस्तावेज को अवधिमान्य बनाता हो तो इस बारे में मौखिक साक्ष्य दिया जा सकता है जो किसी व्यक्ति को किसी डिक्री या आदेश का हकदार बनाता हो।
(2)ऐसी विषय पर पृथक मौखिक साक्ष्य जिस पर दस्तावेज कुछ भी नहीं कहता है, और जो उसकी शर्तों के प्रतिकूल नहीं है, साबित किया जा सकता है।
परंतु इसके लिए मौखिक साक्ष्य ऐसे विषय से संबंधित होना चाहिए, जिसके बारे में दस्तावेज मौन है और इस प्रकार का मौखिक साक्ष्य दस्तावेज में दी गई शर्तों से असंगत नहीं होना चाहिए।
(3) जहां इस प्रकार का पृथक मौखिक करार हो कि लिखित शर्त तब तक लागू नहीं होगी जब तक कि एक पूर्ववर्ती शर्त पूरी नहीं की जाती है या कोई निश्चित घटना नहीं घटती है, तो ऐसी दशा में दिखाने हेतु मौखिक साक्ष्य ग्राहय होता है कि चूंकि शर्त पूरी नहीं की गई है इसलिए संविदा परिपक्व नहीं हुई और इसलिए लागू नहीं हो सकती है ।
(4) जहां किसी संविदा अनुदान या संपत्ति के अन्य व्ययन का लिखत में होना विधि द्वारा अपेक्षित नहीं है एवं संविदा, अनुदान या संपत्ति के अन्य व्ययन का लिखत रजिस्ट्रीकृत नहीं हो, वहां ऐसी लिखित संविदा अनुदान या अन्य व्ययन के निबंधनो को विखंडित या उपांतरित करने के लिए मौखिक करार का साक्ष्य दिया जा सकता है।
(5) कोई रूढ़ि प्रथा जिसका उद्धरण स्पष्ट रूप से संविदा में नहीं किया गया है यदि वह संविदा के शर्तों के प्रतिकूल नहीं है तो उसे साबित किया जा सकता है। रिवाज या प्रथाओं का मौखिक साक्ष्य हमेशा ग्राहय होता है।
(6) कोई तथ्य जो यह दिखाता है कि दस्तावेज की भाषा किस रीति में वर्तमान तथ्य में इस्तेमाल की गई है, इसे साबित किया जा सकता है। दस्तावेज की भाषा का प्रयोग किन तथ्यों और परिस्थितियों के संदर्भ में किया गया है, इस संबंध में मौखिक साक्ष्य दिया जा सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि यह सिद्धांत के निरपेक्ष रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि दस्तावेज की शर्तों में खण्डन अथवा फेरफार करने के लिए किसी मौखिक साक्ष्य को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
प्रश्न-
दस्तावेज साक्ष्य द्वारा मौखिक साक्ष्य के अपवर्जन संबंधी विधि की विवेचना कीजिए ? क्या इसके कोई अपवाद भी है? स्पष्ट कीजिए।https://urlwwwvidiksangyan.blogspot.com/2023/11/9192.htm
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