पर व्यक्तियों की राय कब सुसंगत है(साक्ष्य अधिनियम)

 पर व्यक्तियों की राय कब सुसंगत है-


सामान्यतः किसी मामले में राय धारित करने का कार्य न्यायालय द्वारा किया जाता है या ऐसा करने के लिए वही अधिकृत भी है,  किन्तु  न्यायालय  को कभी-कभी कुछ तकनीकी एवं विशिष्ट मामलों के संबंध में राय धारित करना पड़ता है, जो उसके लिए दुष्कर सिद्ध होते हैं। ऐसी दशा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 से 51 तक में कुछ ऐसे तकनीकी मामलों का वर्णन किया गया है। जिनमें क्र्मशः  विशेष एवं पर व्यक्ति की राय को सुसंगत घोषित किया गया है  और उनकी राय बतौर साक्ष्य ग्राहय भी किया जाता है।

        पर व्यक्तियों की राय के संबंध में जो विधिक  उपबंध  अधिनियम में दिए गए हैं वह धारा  47, 47A ,48, 49 और 50 के अंतर्गत पृथक्कतः वर्णित है, पर व्यक्तियों  की राय ऐसे व्यक्तियों से है जो विशेषज्ञ नहीं है किंतु विशेष स्थिति में होने के कारण कतिपय तथ्यों का विश्वसनीय ज्ञान रखते हैं और उनके इसी ज्ञान को बतौर  राय न्यायालय स्वीकार करता है।

           राय किसी व्यक्ति द्वारा किसी तथ्य के अस्तित्व या अनस्तित्व पर एक विश्लेषणात्मक विचार है, जो वर्तमान परिस्थितियों के विश्लेषण से उद्भुत होता है, इसके अंतर्गत इंद्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान मात्र नहीं आता।

निम्नवत दशाओं  में पर व्यक्ति राय से सुसंगत है-

   (1) धारा 47- जबकि न्यायालय को किसी हस्तलेख के बारे में राय बनानी हो तो ऐसे व्यक्तियों के राय  सुसंगत है, जो ऐसे हस्तरलेख से परिचित है स्पष्टीकरण में स्पष्ट किया गया कि जब कोई व्यक्ति किसी को-

(क) लिखते हुए देखा है या

(ख) अपने द्वारा या अपनी तरफ से लिखित पत्र के जवाब में संबंधित व्यक्ति का पत्र प्राप्त करता है, या

(ग) उसके समक्ष ऐसा पत्र कारबार के सामान्य अनुक्रम में विचार विमर्श के लिए रखा जाता रहा है तो उक्त समस्त व्यक्ति परिचित कहे जाएंगे और उनकी राय सुसंगत होगी।

    (2) धारा 48- जबकि न्यायालय को किसी, साधारण रूढ़ि या अधिकार के अस्तित्व के बारे में राय कायम करनी हो तब ऐसे व्यक्ति की राय सुसंगत है, जो यदि ऐसे अधिकार या रूढ़ि का अस्तित्व होता तो वह संभाव्यतः जानता होता।

    (3) धारा 49- जबकि न्यायालय को 

(क)मनुष्यों के निकाय, या 

(ख)पारिवारिक प्रथाओं के सिद्धांतों

(ग) किसी धार्मिक या खैराती  प्रतिष्ठान के संविधान और शासन के,या 

(घ) किसी विशिष्ट शब्दों, पदों या अर्थों  के बारे में राय कायम करनी हो तो ज्ञान के विशेष साधन रखने वाले व्यक्तियों की राय सुसंगत है।

        (4) धारा 50-जबकि न्यायालय को किसी व्यक्ति के किसी अन्य व्यक्ति के साथ नातेदारी के बारे में राय बनानी हो , तो चाहे परिवार के रूप में या अन्यथा उस विषय के संबंध में ज्ञान का विशेष साधन रखने वाले व्यक्तियों के राय सुसंगत होगी।

        उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि परव्यक्तियों के अंतर्गत उपरोक्त व्यक्ति ही आते हैं जो कि विशेषज्ञ ना होते हुए भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण राय देने हेतु सक्षम घोषित किए गए हैं। यद्यपि की सामान्य अर्थों में परव्यक्ति की कोटि में पक्षकारों से अन्यथा समस्त व्यक्ति आते हैं किंतु साक्ष्य अधिनियम के परिपेक्ष्य में उक्त व्यक्तियों के सिवाय राय देने के संबंध में अन्य व्यक्तियों का कोई महत्व नहीं है। 

  साक्ष्यिक मूल्य-

   भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 47 से 50 के अंतर्गत तो परव्यक्तियों की राय की सुसंगति के संबंध में विशेष रूप से उपबंध तो किया गया है,  किंतु अधिनियम ऐसे राय के साक्ष्यिक  महत्व के संबंध में पूरी तरह से मौन है। 

         इस मामले में विडम्बना यह है कि न्यायिक निर्णय भी हमारा कोई सहयोग नहीं करते किंतु न्यायालय द्वारा ऐसे राय के संबंध में किए जाने वाले व्यवहार को देखते ही यह स्पष्ट होता है कि ऐसे राय मानने के लिए न्यायालय बाध्य नहीं है और अधिकतर ये संपुष्टिकारी साक्ष्य के रूप में स्वीकार किए जाते रहे हैं वैसे यदि इन परव्यक्तियों की राय की निष्पक्षता, सत्यता और विश्वसनीयता की पुष्टि हो जाती है तो यह एक मजबूत साक्ष्य के रूप में न्यायालय का सहयोग करती है। 

प्रश्न- किन-किन दशाओं  में परव्यक्तियों की राय सुसंगत है? स्पष्ट कीजिए तथा संक्षेप में इनके साक्ष्य के साक्ष्यिक  महत्व पर प्रकाश डालिए। https://urlwwwvidiksangyan.blogspot.com/2023/11/blog-post_17.html







 



कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.