मौखिक साक्ष्य एवं अनुश्रुत साक्ष्य

      साक्ष्य अधिनियम की धारा 59 एवं 60 (अध्याय 4)  में मौखिक साक्ष्य के बारे में प्रावधान किया गया  है। 

     


आधुनिक न्याय प्रणाली पूरी तरह से साक्ष्य पर आधारित है और हमारे न्यायालय ऐसे साक्ष्यों पर विचार करके तत्परता से उनका विश्लेषण करके ही किसी निर्णय पर पहुंचने में कामयाब होते हैं चूंकि  न्यायालय को किसी निष्कर्ष पर पहुंचाने में साक्ष्य का विशेष योगदान होता है इसलिए साक्ष्य अधिनियम  का यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि हमेशा सर्वोत्कृष्ट साक्ष्य दिया जाना चाहिए।  हम यह भी जानते हैं कि न्यायालय के समक्ष साक्ष्य को मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में  प्रस्तुत किया जाता है दस्तावेजी के संबंध में जहां प्राथमिक साक्ष्य  सर्वोत्कृष्ट होता है वहीं मौखिक साक्ष्य  के संबंध में प्रत्यक्ष साक्ष्य को सर्वोत्तम माना गया है विधि की इसी अपेक्षा के कारण भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 60 यह सशक्त रूप से वकालत करती है कि मौखिक साक्ष्य समस्त दशाओं में चाहे कैसी भी हो प्रत्यक्ष ही होना चाहिए। धारा 60 की यह पदावली कि "प्रत्यक्ष ही होना चाहिए" से स्पष्ट होता है कि यह धारा मौखिक साक्ष्य  की प्रत्यक्षता के संबंध में कठोरता से वकालत करती है इतना ही नहीं यह धारा यह भी बता देती है कि किसी तथ्य  को किसके द्वारा साबित किया जाना चाहिए। उदाहरण स्वरुप यह बताया गया कि यदि मौखिक साक्ष्य यदि किसी सुन जा सकने, देखे जा सकने या अन्य इंद्रियों द्वारा महसूस किए जा सकने वाले तथ्य के संबंध में दिया जाना है तो उसके संबंध में ऐसा ही व्यक्ति साक्ष्य  दे सकेगा जो स्वयं उसेने सुना है या देखा है या अन्य तरीके से महसूस किया है।

       इसी प्रकार यदि किसी तथ्य के बारे में राय या राय के आधार के बारे में साक्ष्य दिया जाता है तो उसका वही व्यक्ति साक्ष्य दे सकता है जो ऐसी राय या आधार धारण करता है चूंकि  उसे तथ्यों के बारे में ऐसे व्यक्तियों की जानकारी व्यक्तिगत स्वंय दृष्टि होती है अतः इनके साक्ष्य को विधि की दृष्टि में सर्वोत्तम साक्ष्य की कोटि में रखा जाता है और प्रत्यक्ष के रूप में स्वीकार किया जाता है।

        उक्त के अतिरिक्त अन्य साक्ष्य को अप्रत्यक्ष साक्ष्य की कोटि में रखा जाता है, जिन्हें समान्यतः स्वीकार नहीं किया जाता। किंतु जैसा कि स्पष्ट है कि हमारी न्याय प्रणाली साक्ष्य पर आधारित है या बिना साक्ष्य के किसी निष्कर्ष पर पहुंचना दुष्कर होता है और सामाजिक तथा शैक्षणिक विकास के साथ-साथ अपराध करने के तौर तरीकों में खासा परिवर्तन हुआ है और अपराधिगण साक्ष्य मिलने के समस्त गुंजाइशों को खत्म करने की पूरी योजना बनाकर कार्य करते हैत इस नाते तमाम मामलात ऐसे आते हैं जिसमें प्रत्यक्ष साक्ष्य का सर्वदा अभाव रहता है ऐसी दशा में कतिपय परिस्थितियों में अप्रत्यक्ष साक्ष्य को पूरा सम्मान  दिया जाता है और उन्हें उक्त नियम के अपवाद के रूप में बतौर साक्ष्य  ग्रहण किया जाता है ऐसे अपवाद निम्नवत होते हैं-

   अनुश्रुत साक्ष्य का अपवाद-

(1) धारा 6- एक ही संव्यवहार में कह गए कथन या किए कार्य अप्रत्यक्ष होते हुए भी साक्ष्य  में स्वीकार किए जाते हैं।  इन कोटि के पीछे न्याययिक अवधारणा यह है कि ऐसे कथन या कार्य  ऐसी परिस्थितियों में किए जाते हैं कि वे एक ही संव्यवहार  का भाग हो जाते हैं या जिन्हें किसी अन्य व्यक्ति द्वारा न्यायालय में बतौर और साक्ष्य पहुंचाया जाता है। 

(2) धारा 17- न्यायिकेतर स्वीकृत एवं संस्वीकृति को भी उक्त नियम के अपवाद के रूप में देखा जाता है क्योंकि ऐसी स्वीकृति या संस्वीकृति न्यायालय के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर किया जाता है जिसे किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा न्यायालय में पहुंचाया जाता है।

(3) धारा 32- मृत्यकालिक कथन को भी उक्त नियम के अपवाद के रूप में देखा जाता है क्योंकि ऐसे कथन को न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पहुंचाया जाता है कारण कि तथ्य के संबंध में स्वयं दृष्टि एवं व्यक्तिगत जानकारी रखने वाला व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाने के कारण साक्ष्य देने में अनुपलब्ध होता है। 

(4) धारा 33- न्यायिक कार्यवाही में किए गए पूर्व कथन ऐसे कथन को पश्चातवर्ती किसी भी मामले में या संबंधित मामले के आगामी प्रक्रम पर बतौर साक्ष्य किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया जाता है क्योंकि प्रत्यक्ष साक्षी मृत्यु  या साक्ष्य देने में असमर्थता या दुष्प्रायता या गायब हो जाने या प्रतिपक्षी द्वारा प्रतिबंधित कर दिए जाने के कारण साक्ष्य देने में अनुपलब्ध रहता है। 

(5) धारा 34 35- शासकीय कर्तव्यपालन में लोकसेवक द्वारा की गई प्रविष्टयां लोक अभिलेख में तथा केंद्रीय या राज्य सरकार के प्राधिकार के अधीन बनाए गए मानचित्रों या रेखांकों में किए गए कथन भी उक्त नियम के एक अपवाद के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि ऐसे कथन प्रथमदृष्टया सत्य माने जाते हैं और जो स्वयं सुसंगत भी होते हैं जिसे ऐसे  कथनकर्ता के अलावा  किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आसानी से बतौर साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है।  यद्यपि की ऐसा प्रस्तुत कर्ता स्वयं  प्रविष्टि कर्ता या कथनकर्ता नहीं होता है। 

(6) धारा 60 का परंतुक- जब किसी विशेषज्ञ की राय सामान्यत विक्रित पुस्तक में अभिव्यक्त है या उस राय के आधार भी उसमें लिखे हुए हैं और ऐसा विशेषज्ञ मृत्यु हो जाने या अन्य कारण से साक्ष्य देने में अनुपलब्ध है तो ऐसे पुस्तक को पेश करके उसकी राय या आधार को साबित किया जा सकेगा ।

       अध्ययन उपरोक्त के आधार पर हम कह सकते हैं कि यद्यपि की विधि सर्वोत्तम साक्ष्य को प्रस्तुत किए जाने से संबंधित सिद्धांत के अनुपालन में प्रत्यक्ष साक्ष्य दिए जाने की दृढ़ता से वकालत करती है किंतु आवश्यकता के आधार पर इसके आपवादिक अधिक स्वरूप अप्रत्यक्ष साक्ष्य को ग्राहय करती है।

प्रश्न-मौखिक साक्ष्य सभी दशाओं में प्रत्यक्ष होना आवश्यक है,  इस नियम की पूर्ण व्याख्या कीजिए। क्या इस नियम के कोई अपवाद भी है? यदि हाँ तो  स्पष्ट कीजिए। 










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