निर्णयों की सुसंगति( साक्ष्य अधिनियम)

    न्यायिक निर्णयों की सुसंगति-


न्यायिक निर्णयों की सुसंगति से संबंधित प्रावधान भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 40 से 44 तक में विशिष्ट रूप से उपबंधित है। जिनमें उन विशिष्ट स्थितियों का वर्णन अलग-अलग किया गया है जिनकी विद्यमानता में कोई भी न्यायिक निर्णय जिसके अंतर्गत डिक्री, निर्णय या आदेश आते हैं, बतौर साक्ष्य सुसंगत होने के कारण ग्राहय कर लिए जाते हैं, क्योंकि किसी भी तथ्य को बतौर साक्ष्य ग्राहय होने के लिए उसे सर्वप्रथम सुसंगत होना पड़ता है और कोई भी निर्णय तभी सुसंगत होगा जबकि वह 40 से 43 के अंतर्गत बताई हुई स्थितियों में से किसी न किसी स्थिति में आता हो।ऐसी स्थितियां निम्नवत है-

         धारा 40- जबकि न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न हो कि क्या उसे किसी वाद का संज्ञान या विचारण करना चाहिए तब ऐसी किसी भी निर्णय, आदेश या डिक्री का अस्तित्व जो न्यायालय को ऐसा करने से निवारित करता है सुसंगत है अर्थात यदि ऐसा न्यायिक निर्णय प्रांगन्याय का प्रभाव रखता है तो सुसंगत होगा।

       धारा 41- किसी सक्षम न्यायालय के द्वारा प्रोबेट विषयक (उत्तराधिकारविषयक  विनियम) दिवाला विषयक, या नवाधिकरण विषयक या विवाह विषयक अधिकारिता  का प्रयोग करते हुए दिया गया कोई भी लोक लक्षी निर्णय या व्यक्ति लक्षी निर्णय जो संबंधित व्यक्ति कोई विधिक हित प्रदान करता है। या किसी हैसियत का हकदार घोषित करता है, ऐसे मामलों में जिसमें उक्त अधिकार या हैसियत का प्रथम अंतर्गस्त हो तो वह निर्णय सुसंगत होगा।

        धारा 42- ऐसा निर्णय या आदेश या डिक्रियां जो धारा 41 में वर्णित प्रकार से भिन्न है, किंतु वे लोक प्रकृति की बातों से संबंधित है, सुसंगत है।

      धारा 43- जो डिक्री या निर्णय या आदेश धारा 40,41, या 42 के अंतर्गत नहीं आते हैं वे सभी तभी सुसंगत होते हैं जबकि उनका अस्तित्व स्वयं खतरे में हो या यहां के अलावा अधिनियम में अन्य प्रकार से सुसंगत है।

       अन्यथा सुसंगत से तात्पर्य किसी निर्णय की सुसंगतता को धारा 40 से लेकर 43 से अन्यथा धारा 6 से 39 तथा 45 से 55 के मध्य सुसंगत होने के लिए अभिप्रेत है। अर्थात जो निर्णय, डिक्री या आदेश धारा 40,41, 42 एवं 43 के अंतर्गत तो नहीं सुसंगत है किंतु वह यदि ऊपर बताये किसी अन्य धारा के अंतर्गत सुसंगत हो रहा है तो उसे सुसंगत माना जाएगा । जैसे- किसी व्यक्ति के अपराधिक मनः स्थिति को स्पष्ट करने के लिए उसके पूर्व दोषसिद्ध को स्पष्ट करने वाले निर्णय का साक्ष्य दिया जा सकता है  क्योंकि ऐसे निर्णय धारा 14 के स्पष्टीकरण 2 में सुसंगत घोषित किए गए हैं।

   प्रश्न- न्यायालय के निर्णयों के सुसंगति से संबंधित नियमों को संक्षेप में समझाइए।https://urlwwwvidiksangyan.blogspot.com/2023/11/blog-post_13.html




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