परिस्थितिजन्य साक्ष्य
परिस्थितिजन्य साक्ष्य-
किसी तथ्य के अस्तित्व या अनास्तित्व का परिस्थितियों के आधार पर निश्चय करना परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अंतर्गत आता है।
तथ्यों को दो प्रकार से साबित किया जा सकता है एक तो प्रत्यक्ष साक्ष्य से दूसरे परिस्थितियों के साक्ष्य से। बहुत कम मामले में प्रत्यक्ष साक्ष्य मिल पाता है ऐसे मामलों में जिनमें प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न हो, घटना को केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य से ही साबित किया जा सकता है। जैसे- घटना का कारण बताकर या प्रभाव बताकर।
केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त की दोषसिध्द की जा सकती है इनके बारे में न्यायालय ने यह विचार प्रकट किया है कि परिस्थितियों के साक्ष्य पर निर्भर होने वाले मामले में भी न्यायालय को कुल परिस्थितियों का प्रभाव देखना होता है। परिस्थितियों की जंजीर की एक भी कड़ी टूट जाने पर अभियोजन की सारी बातें बेकार हो जायेगी।
हरदयाल बनाना स्टेट ऑफ यूपी 1976 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिध्दी की थी। इसके आधार पर अभियुक्त को दंडित करने के लिए निम्न बातें सिद्ध करनी आवश्यक है-
(1) उन तथ्यों तथा परिस्थितियों में से प्रत्येक तथ्य तथा परिस्थिति जिस पर अभियोजन निर्भर होता है स्पष्ट रूप से तथा संदेह से परे साबित होनी चाहिए।
(2)संपूर्ण रूप से विचार करने में तथ्यों तथा परिस्थितियों का भी अभियुक्त की दोषिता से पूर्ण रूप से संबंध होना चाहिए।
(3) तथ्य तथा परिस्थितियाँ अभियुक्त के दोष को पूर्ण रूप से साबित करता हो।
(4) साक्ष्य की कड़ी इतनी सुसंगठित होनी चाहिए कि जो अभियुक्त की निर्दोषिता के घोतक किसी निष्कर्ष पहुंचने के लिए कोई युक्तियुक्त आधार न छोड़ती हो।
केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिध्दि के लिए आवश्यक है कि वह साक्ष्य अभियुक्त की दोषिता का निश्चायक साक्ष्य हो और अभियुक्त की निर्दोषिता से संगत किसी भी परिकल्पना के आधार पर निराकृत न किया जा सके।
गगन कनौजिया बनाम पंजाब राज्य 2006 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया की परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त की दोषसिध्दि की जा सकती है।
लियाकत बना उत्तराखंड राज्य 2008 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अब यह सस्थापितु विधि है कि मृतक अभियुक्त की अभिरक्षा या उसके साथ हो तब अभियुक्त को मृतक के गायब होने के बारे में कुछ स्पष्टीकरण देना चाहिए।
धर्मदेव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2014 के मामले में कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्षी नहीं था और पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था।
दरबारा सिंह बनाम पंजाब राज्य 2010 के वाद में कहा गया कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य में हेतुक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है किंतु जहां विश्वसनीय प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध है वहां हेतुक महत्वहीन हो जाती है। ऐसे मामले में हेतुक प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के संम्पोषण की भूमिका में हो सकती है।
प्रश्न- प्रारंभिक परीक्षा
5. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के संदर्भ में :
(1) जिन परिस्थितियों से निष्कर्ष निकाला गया है, उन्हें पूरी तरह से स्थापित किया जाना चाहिए।
(2) परिस्थितियां, प्रकृति में निर्णायक होनी चाहिए।
(3) इस प्रकार स्थापित तथ्य केवल दोषी की परिकल्पना के अनुरूप और निर्दोषिता से असंगत होनी चाहिए।
(4) परिस्थितियों को नैतिक निश्चितता के लिए, अभियुक्त के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को दोषी होने की संभावना से बाहर करना चाहिए।
नीचे दिए गए विकल्प का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए :
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) केवल 1, 2, 3 और 4
5. In reference to circumstantial evidence:
1. The circumstances from which the conclusion is drawn, should be fully established
2. The circumstances should be conclusive in nature
3. All the facts so established should be consistent only with the hypothesis of guilt and inconsistent with innocence
4. The circumstances should, to a moral certainty, exclude the possibility of guilt of any person other than the accused
Select the correct answer using the codes given below:
(a) 1 and 2 only
(b) 1, 2 and 4 only
(c) 1, 2 and 3 only
(d) 1, 2, 3 and 4
उत्तर - (d)
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