विशेषाधिकृत संसूचनाएं

  विशेषाधिकार संसूचनाएं



भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 121 से 132 (अध्याय 9) उन परिस्थितियों को स्पष्ट करती है। जिनमें कुछ खास साक्षियों को कुछ विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं।
     परिभाषा- कुछ ऐसे भी विषय हैं जिनके बारे में कोई बात प्रकट करने के लिए किसी साक्षी को विवश नहीं किया जा सकता, या अगर वह कुछ प्रकट करना चाहता भी है तो उसे अनुज्ञा नहीं दी जाती। ऐसी बातों को विशेषाधिकृत संसूचनाएं कहते हैं। 
      उदाहरण- विशेषाधिकृत संसूचनाएं दो प्रकार की होती हैं
(1) वह जो प्रकट करने से सुरक्षित नहीं रखी जा सकती है। 
(2) वह जिनका प्रकट करना वर्जित होता है।
      उदाहरण-
       धारा 122 किसी भी पत्नी से यह नहीं पूछा जा सकता कि उसके पति ने उसे जांचाधीन विषय के बारे में क्या बताया था। इस नियम का आधार लोकनीति है कि दंपत्ति द्वारा आपस में की गई बातों को प्रकट करने दिया जाए तो उनमें आपस का विश्वास समाप्त हो जाएगा जो पारिवारिक शांति के लिए बहुत ही आवश्यक है।
       साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत विशेषाधिकृत संसूचनाओं को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) राज्य की विशेषाधिकार संसूचना                        (धारा-121,123,124,125) 
 (2)व्यक्तिगत विशेषाधिकृत संसूचनाएं(धारा 122,126 से 130 एवं 131)
      (1) राज्य की विशेषाधिकृत संसूचनाएं- (धारा 121)
        कोई भी न्यायाधीश मजिस्ट्रेट न्यायालय में ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के नाते अपने स्वयं के आचरण के बारे में या ऐसी किसी बात के बारे में, जिसका ज्ञान उसे ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के नाते न्यायालय में हुआ, किन्ही प्रश्नों का उत्तर देने के लिए ऐसे किसी भी न्यायालय के विशेष आदेश के सिवाय, जिसके वह अधीनस्थ है, विवश नहीं किया जाएगा, किंतु अन्य बातों के बारे में जो उसकी उपस्थिति में उस समय घटित हुई थी, जब वह ऐसे कार्य कर रहा था उसकी परीक्षा की जा सकेगी।
       राज्य के कार्यकलाप बारे में साक्ष्य (धारा 123)-
 कोई भी व्यक्ति राज्य के किसी भी कार्यकलापों से संबंधित अप्रकाशित शासकीय अभिलेखों से व्युत्पन्न कोई भी साक्ष्य देने के लिए अनुज्ञात न किया जाएगा, सिवाय संम्पृक्त विभाग के प्रमुख ऑफिसर की अनुज्ञा के जो ऐसी अनुज्ञा देगा या उसे विधारित करेगा, जैसा करना वह ठीक समझे।
             उदाहरण-राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी 1974 इलाहाबाद
      अपराधों के बारे में जानकारी(धारा 125)- कोई भी मजिस्ट्रेट या पुलिस ऑफिसर यह कहने के लिए विवश  नहीं किया जाएगा कि किसी अपराध के किए जाने के बारे में उसे कोई जानकारी कहां से मिली और किसी भी राजस्व ऑफिसर को यह कहने के लिए विवश नहीं किया जाएगा कि उसे लोक राजस्व के विरुद्ध किसी अपराध के किए जाने के बारे में कोई जानकारी कहां से मिली।
        स्पष्टीकरण- इस धारा में "राजस्व ऑफिसर" से लोक राजस्व की किसी शाखा के कारोबार में या के बारे में नियोजित ऑफिसर अभिप्रेत है। 
   (2) व्यक्तिगत विशेषाधिकार संसूचनाएं- व्यक्तिक  विशेषाधिकार संसूचनाओं को पुनः तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। 
(1)विवाह के दौरान दी गई संसूचना (धारा 122) 
(2)वृतिक संसूचनाएं (धारा 126 129) 
(3) गैर पक्षकार साक्षी के हक विलेखों का प्रस्तुतीकरण (धारा 130) 
(4) हक विलेखों के बारे में विशेषाधिकार (धारा 131)
          (1) विवाह के दौरान दी गई संसूचना (धारा 122)- कोई भी व्यक्ति, जो विवाहित है या विवाहित रह चुका है, किसी संसूचना को, जो किसी व्यक्ति द्वारा जिससे वह विवाहित है या रह चुका है, विवाहित स्थिति के दौरान में उसे दी गई थी, प्रकट करने के लिए विवश न किया जाएगा और न वह  किसी ऐसी संसूचना को प्रकट करने के लिए अनुज्ञात किया जाएगा जब तक वह व्यक्ति, जिसने वह संसूचना दी है या उसका हित प्रतिनिधि सम्मत न हो, सिवाय उन वादों में, जो विवाहित व्यक्तियों के बीच हो या उन कार्यवाही  में,  जिनमें एक विवाहित व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध किए गए किसी अपराध के लिए अभियोजित है। 
      उदाहरण- रानी बनाम डोंगी मैं कैदी द्वारा पत्नी को लिखे पत्र को पुलिस तलाश में प्राप्त कर लेती है तो यह ग्राहय होगा किंतु यदि पति द्वारा पत्नी को लिखा पत्र पति ने सिपाही को दे दिया जिसने उसे खोलकर पढ़ लिया तो यह पत्र अग्राह्य होगा।
     (1)वृत्तिक संसूचनाएं (धारा 126 से 129)-
 धारा 126 में वृत्तिक संसूचना का आधार यह है कि मुअक्किल द्वारा कानूनी सलाहकार को दी जाने वाली संसूचना के संरक्षण का विशेषाधिकार नहीं होगा तो कोई मुअक्किल अपने वकील को कानूनी सलाह प्राप्त करने के निर्मित खुलकर नहीं बतायेगा परिणामतः वह उससे पूर्ण सहमत व सहयोग प्राप्त नहीं कर सकता है। 
       गैर-पक्षकार साक्षी के हक विलेखों का प्रस्तुतीकरण (धारा 130)- किसी गवाह को जो वाद का पक्षकार नहीं है उसको निम्न में से कुछ भी प्रस्तुत करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। 
     हक विलेखों के बारे में विशेषाधिकार- धारा 131, धारा 130 के सिद्धांत का ही विस्तृत रुप है इस धारा में उन व्यक्तियों को भी सम्मिलित कर लिया गया है  जिसके पास अन्य व्यक्ति के हक में दस्तावेज है  यदि उस व्यक्ति को जिसके हक का दस्तावेज है प्रस्तुत करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता तो उस व्यक्ति को भी वह दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए बाध्य  नहीं किया जा सकता जिसके पास वह दस्तावेज है  जब तक कि वह  प्रथम व्यक्ति दस्तावेज प्रस्तुत करने की अनुमति द्वितीय व्यक्ति  को नहीं देता। 
       धारा 131 कहती है कि कोई भी व्यक्ति अपने कब्जे में भी ऐसे दस्तावेजों को पेश करने के लिए जिसको पेश करने से कोई अन्य व्यक्ति यदि उसे कब्जे में होती इंकार करने का हकदार होता विवश नहीं किया जाएगा जब तक की ऐसा अंतिम वर्णित व्यक्ति उसके पेश करने के लिए सहमति नहीं देता।












      

      


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