प्रत्यास्थापन के लिए आवेदन (धारा 144 सीपीसी)

 प्रत्यास्थापन के लिए आवेदन (धारा 144 सीपीसी)-


जहां किसी डिक्री या आदेश में किसी अपील, पुनरीक्षण या अन्य कार्यवाही में फेरफार किया जाय या उलटा जाय अथवा  उसको इस प्रयोजन के लिए संस्थित किसी वाद में अपास्त या उपान्तरित किया जाय वहां तक वह न्यायालय जिसने डिक्री या आदेश पारित किया था उस पक्षकार के आवेदन पर जो प्रत्यास्थापन द्वारा  या अन्यथा कोई फायदा पाने का हकदार है, ऐसा प्रत्यास्थापन करायेगा जिससे पक्षकार, जहां तक हो सके, उस स्थिति में हो जायेंगे जिसमें वे होते यदि वह डिक्री या आदेश या उसका भाग जिसमें फेरफार किया गया है, या उलटा या अपास्त किया गया है या उपान्तिरित किया गया है न दिया गया होता और न्यायालय खर्चों के प्रतिदाय के लिए  और ब्याज, नुकसानी, प्रतिकर और अन्तः कालिन लाभों के संदाय के लिये आदेश होंगे, कर सकेगा जो उस डिक्री या आदेश को ऐसे फेरफार करने, उलटने, अपास्त करने या उपरान्तरण के उचित  रूप में पारिणामिक है।

धारा 144 में प्रतिस्थापन का सिद्धांत में प्रयुक्त शब्द किसी डिक्री आदेश शब्द को प्रयुक्त किया गया है चूंकि  डिक्री तो किसी वाद में ही दी जाती है किंतु शब्द आदेश वाद  या अन्य कार्यवाहियों में भी दी जाती है वाद से भिन्न कार्यवाहियों में आदेश पारित किया जाता है और धारा 144 में आदेश का भी प्रत्यास्थापना के सिद्धांत में शामिल किया गया है, अतः प्रत्यास्थापना का सिद्धांत न केवल वाद में वरन अन्य कार्यवाहियों में भी लागू हो सकता है।

वंशीधर शर्मा बनाम राजस्थान  2019 के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि  प्रत्यास्थापन के लिए आवेदन केवल तभी पोषणीय होगा जब किसी आज्ञप्ति या आदेश में किसी अपील, पुनरीक्षण या अन्य कार्यवाही में फेरफार  किया जाए या उसे पलटा जाय। यदि अपील निरस्त कर दिया गया है  तब प्रत्यास्थता स्वीकार्य नहीं होगा।

प्रश्न- सीपीसी में अंन्तविष्ट प्रत्यास्थापना के सिद्धांत को स्पष्ट कीजिए। क्या यह वाद से भिन्न कार्यवाहियों पर लागू होता है ?







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