समन (धारा 27-32)
समन (धारा 27-32)
समन न्यायालय द्वारा किया जाने वाला एक ऐसा आदेश होता है जो किसी व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिये दिया जाता है। सामान्यतः वह वादी द्वारा वाद संस्थित किये जाने पर प्रतिवादी को लिखित कथन प्रस्तुत करने के लिये न्यायालय में उपस्थित होने हेतु जारी किया जाता है। कभी-कभी यह साक्षियों की उपस्थिति के लिए जारी किया जाता है।
प्रतिवादी को समन -
धारा-27 के अनुसार, जहां कोई याद सम्यक् रूप से संस्थित किया जा चुका है। वहां उपस्थित होने और दावे का उत्तर देने के लिये समन प्रतिवादी के नाम निकाला जा सकेगा और उसकी तामील विहित रीति से की जा सकेगी। वह दिन जो वाद संस्थित किये जाने के 30 दिन से अधिक न होगा।
समन में निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया जायेगा-प्रत्येक सम्मन में निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया जाना आवश्यक है-
👉उक्त दिनांक एवं समय का जबकि प्रतिवादी को न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से या अपने अधिवक्ता के माध्यम से उपस्थित होना है (आदेश 5, नियम 6),
👉यदि प्रतिवादी के आधिपत्य में के किसी दस्तावेज को न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना है तो उसका उल्लेख,
👉सम्मन जारी किये जाने का प्रयोजन, अर्थात् वह किस लिये जारी किया जा रहा है, जैसे- लिखित कथन प्रस्तुत करने के लिये, वाद-पदों के निर्धारण के लिये या साक्षियों की उपस्थिति के लिये या वाद के अन्तिम निपटारे के लिये या अन्य किसी हेतु के लिये, आदि।
👉सम्मन पर उसे जारी करने वाले न्यायाधीश या अन्य किसी ऐसे पदाधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिये जो इस निमित्त नियुक्त किया गया हो, आदेश 5, नियम 1 (3)]
👉उस पर न्यायालय की मुद्रा अंकित की जानी चाहिए,
👉प्रत्येक सम्मन के साथ वादपत्र की एक प्रति संलग्न किया जाना आवश्यक होगा। (आदेश 5 नियम 2)
तामील का ढंग (Mode of Service)-समन की तामील मुख्यतया तीन प्रकार से होती है
(1) व्यक्तिगत या प्रत्यक्ष तामील
(2) प्रतिस्थापित तामील
(3) डाक द्वारा तामील
(1) व्यक्तिगत या प्रत्यक्ष तामील-
सम्मन की तामील का यह एक सर्वमान्य तरीका है, ऐसे सम्मन की तामील व्यक्तिगत रूप से की जाती है अर्थात् प्रतिवादी को या साक्षी को व्यक्तिगत रूप से समन की प्रति देकर इसकी तामील की जाती है। यदि स्वयं ऐसा प्रतिवादी या साक्षी उपलब्ध नहीं हो तो समन की तामील उसके अभिकर्ता या परिवार के किसी पुरुष या महिला सदस्य पर की जाती है। (आदेश 5 नियम 12 एवं 13, 15)
सामान्यतः इस रीति के अन्तर्गत सम्मन की एक प्रति सम्बन्धित व्यक्ति को दे दी जाती है एवं दूसरी प्रति पर उसके हस्ताक्षर ले लिये जाते हैं।
समन की तामील के सम्बन्ध में आर. के. शर्मा अशोक नगर बेलफेयर एसोसियेशन एण्ड क. 2001 के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि-
(1) समन की तामील व्यक्तिशः प्रतिवादी पर कराई जानी चाहिए।
(2) जहां एक से अधिक प्रतिवादी हो, वहां प्रत्येक प्रतिवादी पर व्यक्तिशः एवं पृथकतया तामील कराई जानी चाहिए।
(3) जहां प्रतिवादी नहीं मिले और युक्तियुक्त समय के भीतर जिसके मिलने की संभावना नहीं हो वहां समन की तामील उसके परिवार के किसी वयस्क सदस्य पर कराई जा सकती है।
(4) समन की तामील कराने वाले अधिकारी द्वारा समन पर तामील का समय एवं रीति का पृष्ठांकन किया जाना चाहिए।
(5) प्रतिस्थापित तामील का आदेश तब तक नहीं दिया जाना चाहिये जब तक कि पूर्व में जारी किये गये समन लौट कर नहीं आ जाये।
(2) प्रतिस्थापित तामील-
प्रतिस्थापित तामील का अवलम्बन उस समय लिया जाता है जबकि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि अब अन्य किसी रीति से सम्मन की तामील करना सम्भव नहीं है। अर्थात् दो अवस्थाओं में प्रतिस्थापित तामील का सहारा लिया जा सकता है-
(1) जहां प्रतिवादी सम्मन की तामील से अपने आपको बचाने का प्रयास कर रहा हो या
(ii) अन्य किसी रीति से सम्मन को तामील करना सम्भव नहीं रह गया हो।
इसके अन्तर्गत-
(1) सम्मन की एक प्रति न्यायालय के सूचनापट्ट पर लगायी जाती है।
(ii) उसकी एक प्रति प्रतिवादी के मकान के बाहर चिपकायी जाती है, जहां कि-
(अ) वह निवास करता है, या
(ब) कारबार चलाता है, या
(स) लाभ के लिए स्वयं कार्य करता है।
(ii) ऐसे सम्मन की तामील किसी ऐसे समाचार पत्र में प्रकाशित की जा सकती है, जिसे कि प्रतिवादी के निवास स्थान में सामान्यतः पढ़ा जाता है। (आदेश 5 नियम 20)
मद्रास उच्च न्यायालय ने इंडियन आयल कारपोरेशन बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया 2008 के वाद में निर्णीत किया कि प्रतिस्थापन तामील करवाने के सम्बन्ध में न्यायालय द्वारा संतुष्टि के आधारों का अभिलेख पर लाना बाध्यकारी नहीं है। ऐसी स्थिति में संतुष्टि की अवधारणा कर ली जाती है।
(1) यह विश्वास करने के लिए कारण है कि प्रतिवादी इस प्रयोजन से कि उस पर समन तामील न होने पाए, सामने आने से बचता है, या
(2) समन की तामील मामूली प्रकार से किसी अन्य कारण से नहीं की जा सकती।
(3) डाक द्वारा तामील-
डाक द्वारा सम्मन की तामील, तामील की तीसरी रीति से है। इसके अन्तर्गत सम्मन अभिस्वीकृति सहित पंजीकृत डाक द्वारा प्रतिवादी या साक्षियों को भेजा जाता है। जब प्रतिवादी या साक्षी उसे प्राप्त कर अभिस्वीकृति पर हस्ताक्षर कर देता है तो वह सम्यकरूपेण तामील हुआ मान लिया जाता है। लेकिन वह उसे लेने से इन्कार करता है तो ऐसी इन्कारी के कथन का उस पर पृष्ठांकन किया जायेगा एवं ऐसी अवस्था में यह मान लिया जायेगा कि उसकी तामील हो गई है। (आदेश 5 नियम 19 'क') (संशोधन 2002)
समीर स्निग्धा चन्द्र बनाम प्रणय भूषण चन्द्र और अन्य 1989 के वाद में कहा गया कि रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजे गये सम्मन की तामील को पर्याप्त तामील मान लिया जाता है।
धारा 28 जहां प्रतिवादी किसी अन्य राज्य में निवास करता है वहां समन की तामील -
(1) समन अन्य राज्य में तामील किये जाने के लिए ऐसे न्यायालय को और ऐसी रीति से भेजा जा सकेगा जो उस राज्य में प्रवृत्त नियमों द्वारा विहित की जाये।
(2) वह न्यायालय जिसे ऐसा समन भेजा जाता है, उसकी प्राप्ति पर आगे ऐसे कार्यवाही करेगा मानो वह उस न्यायालय द्वारा ही निकाला गया हो और तब वह उस समन को तथा उसके बारे में अपनी कार्यवाहियों के अभिलेख को (यदि कोई हो) उसे निकालने वाले न्यायालय को लौटाएगा।
(3) जहां किसी दूसरे राज्य में तामील के लिये भेजे गये समन की भाषा उपधारा (2) में निर्दिष्ट अभिलेख की भाषा से भिन्न है। वहां उस उपधारा के अधीन भेजे गए अभिलेख के साथ उसके साथ उसका-
(क) यदि समन जारी करने वाले न्यायालय की भाषा हिन्दी है, तो हिन्दी में, या
(ख) यदि ऐसे अभिलेख की भाषा हिन्दी या अंग्रेजी से भिन्न है, तो हिन्दी या अंग्रेजी में, अनुवाद भी भेजा जायेगा।
धारा 29 विदेशी समनों की तामील-
वे समन और अन्य आदेशिकाएं जो-
(क) भारत के किसी ऐसे भाग में स्थापित किसी सिविल या राजस्व न्यायालय द्वारा जिस पर इस संहिता के उपबन्धों का विस्तार नहीं है, अथवा
(ख) किसी ऐसे सिविल या राजस्व न्यायालय द्वारा जो केन्द्रीय सरकार के प्राधिकार से भारत के बाहर स्थापित किया गया है या चालू रखा गया है, अथवा
(ग) भारत के बाहर किसी अन्य ऐसे सिविल या राजस्व न्यायालय द्वारा जिसके बारे में केन्द्रीय सरकार ने राजपत्र में अधिसूचना द्वारा यह घोषित किया है कि उसे इस धारा के उपबन्ध लागू है, निकाली गयी हैं, उन राज्य क्षेत्रों में के न्यायालयों को भेजी जा सकेगी, जिन पर इस संहिता का विस्तार है और उसकी तामील ऐसे की जा सकेगी मानो वे ऐसे न्यायालयों द्वारा निकाले गये समन हों।
धारा 31 साक्षी को समन-
धारा 27,28, 29 के उपबन्ध साक्ष्य देने या दस्तावेजों या अन्य भौतिक पदार्थों के पेश करने के लिए समनों को लागू होंगे।
धारा 32 व्यक्तिक्रम के लिए शास्ति-
न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके नाम धारा 30 के अधीन समन निकाला गया है, हाजिर होने के लिए विवश कर सकेगा और उस प्रयोजन के लिए-
(क) उसकी गिरफ्तारी के लिए वारण्ट निकाल सकेगा,
(ख) उसकी सम्पत्ति को कुर्क कर सकेगा और उसका विक्रय कर सकेगा,
(ग) उसके ऊपर पांच हजार रुपये से अनधिक जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा,
(घ) उसे आदेश दे सकेगा कि वह अपनी उपसंजाति के लिए प्रतिभूति दे और व्यक्तिक्रम करने पर उसको सिविल कारागार को सुपुर्द कर सकेगा।
प्रश्न- समन किसे कहते हैं? इसकी तामील कैसे की जाती है? वर्तमान समय में समन की तामीली में क्या-क्या संशोधन किए गए हैं?
प्रश्न- के तामील की रीतियों का वर्णन कीजिए।
प्रश्न- प्रतिवादी किसी अन्य राज्य में निवास करता है, वहां समन की तामील किस प्रकार की जा सकती है?
प्रश्न- व्यक्ति को समन जारी किया गया है। अगर वह व्यक्ति व्यतिक्रम करता है तो न्यायालय उसे विवश करने के लिये कितनी शास्ति अधिरोपित करेगा?
प्रश्न- समनों की तामील किस प्रकार की जाती है?
प्रश्न- प्रतिवादी पर सम्मन की तामील के क्या ढंग है?
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