आदेश 33 (सीपीसी) निर्धन व्यक्तियों द्वारा वाद
आदेश 33 (सीपीसी) निर्धन व्यक्तियों द्वारा वाद निर्धन व्यक्तियों द्वारा वाद-
आदेश 33 निर्धन व्यक्तियों द्वारा वाद संस्थित किये जाने के बारे में उपबंध करता है।
जब कोई व्यक्ति दीवानी वाद संस्थित करना चाहता है तो वह ऐसी विधि द्वारा नियत फीस देकर कर सकता है, अन्यथा नहीं। परंतु यह आदेश इस सामान्य नियम का एक अपवाद है कि जहां कोई भी व्यक्ति न्यायालय के अनुमति से वाद संस्थित करने के अवसर पर बिना फीस दिए ही वाद संस्थित कर सकता है।
उद्देश्य-
आदेश 33 तीन प्रयोजनों के लिए अधिनियमित किया गया है- (1)निर्धन व्यक्ति के सद्भावी दावों का संरक्षण करना, (2) राजस्व के हितों की सुरक्षा करना, तथा (3) प्रतिवादियों को परेशानियों से बचाना।
आदेश 33 नियम 1- निर्धन व्यक्तियों द्वारा वाद संस्थित किया जा सकेंगे-
निम्नलिखित उपबंधों के अधीन रहते हुए कोई भी वाद (निर्धन व्यक्तियों) द्वारा संस्थित किया जा सकेगा।
स्पष्टीकरण 1- कोई व्यक्ति निर्धन व्यक्ति तब है-
(क) जब उसके पास इतना पर्याप्त साधन नहीं है कि वह ऐसे वाद में वाद- पत्र के लिए विधि द्वारा विहित फीस दे सके, अथवा
(ख) जहां ऐसी कोई फीस विहित नहीं हो वहां, जब वह ₹1000 के मूल्य की ऐसी संपत्ति का, जो डिक्री के निष्पादन में कुर्की से छूट प्राप्त संपत्ति से और वाद की विषय वस्तु से भिन्न है हकदार नहीं है।
जयंत प्रभाकर महाजन बनाम श्रीमती सुमन सारड़े 2014 के मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा आवेदक को निर्धन व्यक्ति, के रूप में वाद लाने की अनुज्ञा नहीं दी गयी, क्योंकि-
(1) आवेदक के पास 75,600 की भूमि थी जिससे न्यायालय शुल्क की व्यवस्था की जा सकती थी, तथा (2)आवेदक द्वारा भूमि के तथ्य को छिपाया गया था।
नियम 5 आवेदन नामंजूर किया जाना-
निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने की अनुज्ञा के लिए आवेदन न्यायालय वहां नामंजूर कर देगा-
(क) जहां नियम 2,3 में विहित रीति से उसकी विरचना नहीं की गई है और वह उपस्थापित नहीं किया गया है, अथवा
(ख) जहां आवेदन निर्धन नहीं है, अथवा
(ग) जहां आवेदन करने से ठीक पहले दो मास के भीतर कपटपूर्वक या इसलिए कि वह निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने की अनुज्ञा के लिए आवेदन कर सके, कि संपत्ति का व्ययन कर दिया है।
परंतु यदि व्ययन संपत्ति के मूल्य को हिसाब में लेने पर भी आवेदक निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने का हकदार है तो आवेदन को नामंजूर नहीं किया जायेगा, अथवा
(घ) जहां उसके अभिकथनों से वाद- हेतुक दर्शित नहीं होता, अथवा
(ङ) जहां उसके वाद की विषय वस्तु के बारे में ऐसा कोई करार किया है जिसके अधीन अन्य व्यक्ति ने ऐसी विषय वस्तु में हित प्राप्त कर लिया है।
(च) जहां वाद तत्समय प्रवृत किसी विधि द्वारा वर्जित है, अथवा
(छ) जहां किसी अन्य व्यक्ति ने मुकदमेबाजी के वित्तपोषण पोषण के लिए उसके साथ करार किया है।
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