(धारा 9 सीपीसी) जब तक वर्जित न हो, न्यायालय सभी सिविल वादों का विचारण करेंगे

 जब तक वर्जित न हो, न्यायालय सभी सिविल वादों का विचारण करेंगे (धारा 9 सीपीसी)-


 

न्यायालय को उन वादों के सिवाय, जिनका उनके द्वारा संज्ञान अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से वर्जित है  सिविल प्रकृति के सभी वादों के विचारण की अधिकारिक होगी।

स्पष्टीकरण -1 वह वाद, जिसमें संपत्ति- संबंधी या पद- संबंधी अधिकार प्रतिपादित है, इस बात के होते हुए भी कि ऐसा अधिकार धार्मिक कृत्यों या कर्मों संबंधी प्रश्नों के भी विनिश्चय पर पूर्ण रूप से अवलंबित है, सिविल प्रकृति का वाद है।

स्पष्टीकरण -2 इस धारा के प्रयोजन के लिए, तात्विक नहीं है कि स्पष्टीकरण 1 में निर्दिष्ट पद के लिए कोई फीस है या नहीं अथवा ऐसा पद किसी विशिष्ट स्थान से जुड़ा है या नहीं।

निम्नलिखित को दीवानी प्रकृति का वाद माना गया है-

👉एक सरकारी सेवक द्वारा अपने वेतन के बकाए के लिए लाया जाने वाला वाद।

👉पूजा का अधिकार

 👉धार्मिक या अन्य प्रकार का जुलूस निकालने का अधिकार 

👉मृत को दफनाने का अधिकार

 👉किसी व्यक्ति का संचालक अध्यक्ष की हैसियत संबंधी अधिकार 

👉मत देने का अधिकार

👉विशिष्ट अनुतोष का अधिकार 

👉दीवानी अपराध के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकार 

👉प्रसंविदा के भंग पर क्षतिपूर्ति का अधिकार 

👉विवाह विच्छेद संबंधी वाद 

👉पद के लिए वाद 

👉प्रसंविदा के अंतर्गत अधिकार के प्रवर्तन संबंधी वाद

👉 प्रबंधन संबंधी वाद

👉भाटक के लिए वाद 

👉घोषणा संबंधी वाद

 👉जन्मतिथि में सुधार संबंधी वाद

 👉विक्रय द्वारा बंधक के प्रवर्तन का वाद

👉किसी क्लब के सदस्य के रूप में किसी व्यक्ति के अधिकारों के प्रवर्तन के लिए वाद

👉अंशदान के लिए वाद

👉 साझेदारी के लिए वाद

 👉प्रथा के अधिकार पर गोपनीयता के अधिकार के प्रवर्तन के लिए वाद

 👉विधान मंडल के अधिनियम की मान्यता से संबंधित वाद

 👉किसी पदधारी के रूप में निर्वाचित किसी व्यक्ति के अधिकार से संबंधित वाद

निम्नलिखित वादों को दीवानी वाद नहीं माना गया है-

👉जातिगत प्रश्नों से संबंधित वाद

 👉धार्मिक कृत्यों या कर्मों से संबंधित वाद

 👉किसी पद के साथ जुड़ी हुई गरिमा की रक्षा के लिए वाद 

👉गोपनीयता के अधिकार से संबंधित वाद

 👉स्वेच्छा से किए गए भुगतान से संबंधित वाद

 👉औद्योगिक विवाद अधिनियम से संबंधित वाद 

👉भूमि अधिग्रहण अधिनियम से संबंधित वाद

👉करार या  चिरभोगाधिकार पर आधारित न होने वाली स्वेच्छिक देनगियों के लिए वाद।

👉किसी अधिनियम द्वारा अभिव्यक्त रूप से वर्जित वाद।

👉राजनीतिक प्रश्नों से संबंधित वाद।

 👉लोक नीति के विरुद्ध वाद।

सिविल वाद एवं राजस्व वाद में अंतर-

(1) सिविल वाद सिविल प्रकृति के मामलों एवं सिविल अधिकारों से संबंधित होते हैं, जबकि राजस्व वाद कृषि संबंधी भूमियों एवं राजस्व वसूली से संबंधित होते हैं।

(2) सिविल वादों का विचारण सिविल न्यायालयों द्वारा किया जाता है, जबकि राजस्व वादों का विचारण राजस्व न्यायालय द्वारा किया जाता है।

धूलाबाई बनाम मध्य प्रदेश राज्य 1969 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने सिविल न्यायालय के अधिकारिता  के अपवर्जन के मामले में निम्नलिखित सिद्धांत प्रतिपादित किया-

(1) जहां विशिष्ट न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए आदेश को कानून अंतिम मानता है वहां सिविल न्यायालय की अधिकारिता अपवर्जित होगी। यदि पर्याप्त अनुतोष मिल गया उसी तरह जैसे सिविल न्यायालय एक मामले में साधारणता अनुतोष देता है। लेकिन अधिकरण द्वारा अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया है  या न्यायिक प्रक्रिया के मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं किया गया है वहां ऐसे मामले में सिविल न्यायालय की अधिकारिता  अपवर्जित नहीं होगी।

(2) विशेष अधिनियम के प्रावधानों को ऐसे अधिनियम के अधीन अधिकरणों के समक्ष अधिकारिता के आधार पर चुनौती नहीं दिया जा सकता। यहां तक कि न्यायाधिकरणों के विरुद्ध पुनरीक्षण और निर्देश उच्च न्यायालय में नहीं लाया जा सकता।

(3) जहां कोई उपबंध असंवैधानिक है या किसी उपबंध की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है  वहां वाद दाखिल किया जा सकता है।

मेघराज मृत बनाम मनफूल मार्च 2019 के वाद में  अभिनिर्धारित किया गया कि यदि हरियाणा सेलिंग एंड लैंड होल्डिंग एक्ट 1972 की धारा  26 के द्वारा सिविल न्यायालय को अधिनियम के अंतर्गत उत्पन्न मामलों/ वाद सुनने से वर्जित किया गया है,  तब सिविल न्यायालय सीपीसी की धारा 9 के अंतर्गत ऐसे वादों की सुनवाई नहीं कर सकता है। ऐसे मामले में नियत प्राधिकारी के आदेशों के विरुद्ध अपील/ निरीक्षण प्रस्तुत करने का उपचार वादी को उपलब्ध होगा।


















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