अंतराभिवाची वाद (धारा 88,आदेश 35)

 अंतरअभिवाची वाद (धारा 88 आदेश 35)-


अंतराभिवाची वाद वहां संस्थित किया जाएगा, जहां दो से अधिक व्यक्ति एक दूसरे के विरुद्ध किसी ऐसे व्यक्ति से प्राप्त होने वाले ॠण या अन्य किसी चल या अचल संपत्ति का दावा करते हैं, जो उसे ऋण या संपत्ति में भारी या खर्चों के अतिरिक्त कोई दूसरा हित नहीं रखता है।  वहां कोई दूसरा व्यक्ति के संबंध में जिसकी अदायगी या परिदान किया जाएगा और अपने लिए छुटकारा पाने के प्रयोजन में उन सभी दावेदारों के विरुद्ध एक अंतराभिवचनीय वाद  संस्थित कर सकेगा।

       उदाहरण-

अ, ब के पास कुछ आभूषण अमानत के रूप में रखता है। ब का आभूषण में न तो कोई हित ही होता है और न ही उसका कोई दावा। अब उन आभूषणों के स्वामित्व के लिए अ एवं स में विवाद चलता है। दोनों उन आभूषणों पर अपना- अपना हित  एवं अधिकार बताते हैं। ऐसी अवस्था में ब उस विवाद में न पड़कर वह न्यायालय में एक अंतराभिवचनीय  वाद इस आशय का संस्थित करेगा कि न्यायालय उन दोनों के बीच विवाद का विनिश्चय करें। ब, अ के आभूषण भी न्यायालय को सौंप देगा तथा उस पर हुए अपने खर्चों की मांग कर सकेगा।

आवश्यक शर्तें-

(1) किसी ॠणों, धन या अन्य संपत्ति के बारे में विवाद,

(2) दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा एक दूसरे के विरुद्ध क्लेम किया जाना,

(3) ऐसे व्यक्तियों का, जिससे क्लेम किया जा रहा है, ऐसे ॠणों, धन या संपत्ति में मारों अथवा खर्चों के अतिरिक्त कोई हित नहीं होना, तथा

(4) इस संबंध में पहले से किसी वाद का लंबित न होना।

बालाजी सीताराम बनाम ओमप्रकाश 2009 के वाद में निर्धारित किया गया कि इस आदेश की किसी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह अभिकर्ताओं को अपने मालिक पर या अभिधारियों को अपने भू- स्वामियों पर इस प्रयोजन से वाद लाने को समर्थ करती है कि वे मालिक या भू- स्वामी ऐसे किन्ही व्यक्तियों से जो ऐसे व्युत्पन अधिकार के अधीन दावा करने वाले व्यक्तियों से भिन्न हो अंतराभिवचन करने के लिए विवश किए जाये।

      आदेश 35 नियम 1 

अंतराभिवाची वाद का वाद पत्र-

हर एक अंतराभिवाची वाद के वाद पत्रों में, वादपत्रों के लिए आवश्यक अन्य कथनों  के अतिरिक्त निम्न कथन भी होंगे-

(क) वादी प्रभारों या खर्चों के लिए वाद करने से भिन्न किसी हित का दावा विवाद की विषय वस्तु में नहीं करता है,

(ख) प्रतिवादी द्वारा पृथकतः किए दावे कथित होंगे,

(ग) वादी और प्रतिवादी या प्रतिवादियों के बीच कोई दुरभिसन्धि नहीं है।

नियम (2) दावाकृत चीज का न्यायालय में जमा किया जाना 

नियम (3) प्रक्रिया जहां प्रतिवादी वादी पर वाद चला रहा है जहां अंतराभीवाची वाद के प्रतिवादियों में से कोई प्रतिवादी वादी पर ऐसे वाद की विषय वस्तु की बाबत वास्तव में वाद चला रहा है वहां वह न्यायालय  जिसमें वादी के विरुद्ध वाद लंबित है, उस न्यायालय द्वारा जिसमें अंतराभिवाची वाद संस्थित किया गया है,  इत्तिला दिए जाने पर वादी के विरुद्ध कार्यवाही को रोक देगा और रोके गए वाद में वादी के खर्चे उपबंधित किये जा सकेंगे। किंतु जहां नहीं किए जाते हैं तो वहां तक अंतराभिवाची वाद में उपगत खर्चों में जोड़े जा सकेंगे।

नियम (4) पहली सुनवाई में प्रक्रिया-

 न्यायालय वाद में संस्थित किए जाने के पश्चात-

(1) वाद के प्रथम सुनवाई  पर घोषित कर सकेगा कि वादी विवादग्रस्त विषय वस्तु के संबंध में प्रतिवादियों के दायित्व से मुक्त हो गया है।

(2) वह उसे वाद से अलग कर सकेगा

(3) वह उसके खर्चों के बारे में आदेश दे सकेगा।

 नियम (5) अभिकर्ता और अभिधारी अंतराभिवाची वाद संस्थित नहीं कर सकेंगे।














कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.