आदेश 39 सीपीसी अस्थाई व्यादेश

 आदेश 39 (सीपीसी)अस्थाई व्यादेश-

अस्थाई व्यादेश वे होते हैं जो एक निश्चित समय तक या न्यायालय के अगले आदेश तक चालू रहते हैं। उन्हें वाद के किसी भी प्रक्रम पर दिया जा सकता है, यहां तक कि समन का तामील होने से पहले भी दिया जा सकता है।

       सिद्धांत-


 अस्थायी व्यादेश जारी करना या ना करना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है,  किन्तु इस विवेक का मनमाना  प्रयोग नहीं होता वरन विधि के सुस्पष्ट सिद्धांतों पर किया जाता है। अस्थायी व्यादेश देश जारी करने के पूर्व न्यायालय को समाधान होना आवश्यक है कि-

(1) प्रथम दृष्ट्या मामला

(2) अपूणीय क्षतिपूर्ति

(3) सुविधा को संतुलन

     आदेश 39 नियम  1 में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया जब अस्थाई व्यादेश जारी किया जा सकता है-

     जहां बाद में शपथ पत्र द्वारा यह अन्यथा सिद्ध कर दिया जाता है कि-

(1) वादग्रस्त संपत्ति के किसी पक्षकार द्वारा नष्ट किए जाने या नुकसान पहुंचाने या अन्तरित किए जाने का खतरा है।

(2) प्रतिवादी ऋणदाताओं के साथ कपट करने के लिए अपनी संपत्ति को हटाने या व्ययन की धमकी देता है।

(3) प्रतिवादी वादी को वास्तविक संपत्ति से बेकब्जा करने या अन्यथा उसे क्षतिग्रस्त करने की धमकी देता है। 

        तो न्यायालय अंतिम निर्णय तक, अथवा अग्रिम आदेश तक उपयुक्त कार्य से प्रतिविरत रहने के आशय का अस्थाई व्यादेश जारी कर सकेगा। 

नियम (2)-

 वादी संविदा भंग को रोकने के निमित्त इस प्रकार का व्यादेश जारी करने की प्रार्थना कर सकता है।

 नियम 2 'क'-

आदेश की अवहेलना करने पर संपत्ति को कुर्की तीन माह का कारावास तथा न्यायालय अवमानना  के लिए दंडित किए जाने का प्रावधान है। 

 नियम 3-

नियम 3 के अंतर्गत कर्तव्य है  कि व्यादेश अनुदत्त करने से पूर्व, वह विपक्षी को एक सूचना पत्र जारी करे, यदि न्यायालय को प्रतीत होता है कि ऐसी सूचना पत्र जारी करने से विलंब होगा तो उस स्थिति में सूचना जारी करना आवश्यक नहीं होगा।

नियम -(3) (क) जहां व्यादेश विपक्षी को सूचना दिए बिना जारी किया जाए, वहां न्यायालय व्यादेश के आवेदन को 30 दिन के अंदर निपटने का प्रयास करेगा।

 नियम- (4) व्यादेश की समाप्ति अथवा परिवर्तन के संबंध में है।

 नियम- (5) निगम को व्यादेश जारी करने के संबंध में उपबंध करता है।

 प्रतिवादी के आवेदन पर व्यादेश-

आदेश 39 नियम 1- के अंतर्गत, वादग्रस्त संपत्ति को, वाद के किसी पक्षकार अर्थात (वादी या प्रतिवादी) द्वारा नष्ट किए जाने या नुकसान पहुंचाने या अंतरित किए जाने का खतरा है।

   अतः प्रतिवादी द्वारा भी वादग्रस्त संपत्ति के नष्ट किए जाने, नुकसान पहुंचाने या आंतरित किए जाने का खतरा हो तो वह अस्थायी व्यादेश की मांग कर सकेगा।

प्रश्न-

  अस्थायी निषेधाज्ञा  से संबंधित विधि को स्पष्ट कीजिए। किन परिस्थितियों में आज्ञापक रूप से अस्थायी निषेधाज्ञा अनुज्ञात किया जा सकता है क्या उस प्रतिवादी के आवेदन पर अस्थाई निषेधाज्ञा  अनुज्ञात किया जा सकता है जो कोई प्रतिदावा दाखिल नहीं किया है,  यदि ऐसा है तो किन परिस्थितियों में ?












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