धारा 96 प्रथम अपील एवं द्वितीय अपील सीपीसी

 धारा 96 प्रथम अपील -


धारा 96 के अनुसार,(1) वहां के सिवाय जहां इस संहिता के पाठ में या तत्समय  प्रवृत किसी अन्य विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित है, ऐसी हर डिक्री, जो आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग करने वाले किसी न्यायालय द्वारा पारित की गई है अपील उस न्यायालय में होगी जो ऐसे न्यायालयों के विनिश्चयों की अपील सुनने के लिए प्राधिकृत है। 

 (2)एकपक्षीय पारित मूल्य डिक्री की अपील हो सकेगी। 

(3)  पक्षकारों की सहमति से जो डिक्री न्यायालय ने पारित की है उसकी कोई अपील नहीं होगी। 

 लघुवाद न्यायालयों द्वारा संज्ञेय वाद में किसी डिक्री से कोई अपील,  यदि ऐसी डिक्री की रकम या उसका मूल्य 10,000 रुपए से अधिक नहीं है तो केवल विधि के प्रश्न के संबंध में होगी।

     धारा 100 द्वितीय अपील-


(1) उसके सिवाय जैसा ही संहिता के पाठ में या तत्समय प्रवृत  किसी अन्य विधि में अभिव्यक्त रूप से उपबंधित है, उच्च न्यायालय के किसी अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित प्रत्येक डिक्री की उच्च न्यायालय में अपील होगी, यदि उच्च न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उस मामले में विधि का सारवान प्रश्न अन्तवर्लित है। 

(2) एकपक्षीय पारित प्रत्येक डिक्री  की अपील इस धारा के अधीन हो सकेगी।

(3) इस धारा के अधीन अपील में अंतवर्लित विधि के उस सारवान प्रश्न का अपील के ज्ञापन में प्रमिततः कथन किया जाएगा।

 (3)जहां उच्च न्यायालय का समाधान हो जाता है कि किसी मामले में सारवान विधि का प्रश्न अन्तवर्लित है तो वह उस प्रश्न को बनायेगा।

(4) अपील इस प्रकार बनाए गए प्रश्न को सुनी जाएगी और प्रतिवादी को अपील की सुनवाई में यह तर्क करने की अनुज्ञा दी जाएगी कि ऐसे मामले में ऐसा प्रश्न अंतरवर्लित नहीं है।

        परंतु-

न्यायालय बनाए गए विधि के सारवान प्रश्न से भिन्न सारवान प्रश्न पर कारण अभीलिखित करते हुए सुनवाई कर सकेगा।

        परिधि क्षेत्र एवं अंतर-

(1) प्रथम अपील में यह आक्षेप उठाया जा सकता है। कि डिक्री में तथ्य संबंधी एवं विधि संबंधी त्रुटियां है और अपील न्यायालय दोनों प्रश्नों का निर्धारण कर सकता है। जबकि

 द्वितीय अपील में उच्च न्यायालय तथ्य संबंधी प्रश्नों का निर्धारण नहीं कर सकता।

(2) प्रथम अपील का क्षेत्र विस्तृत होता है 

         जबकि

 द्वितीय अपील का सीमित है।  इसका विस्तार क्षेत्र विधि के सारवान प्रश्न  तक सीमित है 

द्वितीय अपील में अपीलकर्ता को यह अनुमति नहीं दी जा सकती कि वह दूसरा केस खड़ा कर सके या दूसरा विवाद्यक उठा सके जिससे संबंधित साक्ष्य मुकदमे के अभिलेख पर है।

 इसी प्रकार अपीलकर्ता को अपील में प्रथम बार नया तर्क उठाने की अनुमति सामान्यत: नहीं दी जाती। (वह तर्क जो उसने निचले न्यायालय में नहीं उठाया है  चाहे विचारण में स्तर पर या अपील स्तर पर) 

प्राङन्याय के तर्क को प्रथम बार द्वितीय अपील में नहीं उठाया जा सकता।

       सुदामा किरण गवेनी बनाम मानिक सिक्केटोड 2019 के वाद में उच्च न्यायालय  ने निर्धारित किया कि द्वितीय अपील को स्वीकार करने के आदेश में विशेष रूप से विधि के उन एवं सारवान प्रश्नों को बनाया जाना चाहिए, जिन पर द्वितीय अपील स्वीकार की जाती है।

         प्रश्न के द्वितीय पैरा के अनुसार

         आदेश 41 नियम 22,33-

        नियम 22 में प्रत्यक्षेप द्वारा यह विशेष प्रावधान है कि प्रत्यार्थी को यह अनुमति प्रदान करता है कि वह ऐसी डिक्री के प्रति जिसके विरुद्ध उसने अपील नहीं किया है प्रत्याक्षेप कर सकता है।और ऐसी दशा में एक गैर अपीलार्थी ऐसे किसी अनुतोष की मांग कर सकता है जिसे निचले न्यायालय ने नहीं प्रदान किया है। और अपीलीय न्यायालय ऐसे प्रत्यार्थी को अनुतोष प्रदान कर सकता है और अपील और प्रत्याक्षेप के आधारों को सुनकर साफ-साफ निर्णय दे सकता ।

प्रश्न- cpc में यथा प्रावधानित प्रथम अपील और द्वितीय अपील की परिधि और क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए तथा सुसंगत विधिक प्रावधानों को निर्दिष्ट करके उक्त दोनों के बीच अंतर यदि कोई हो बताइए।

 प्रश्न- न्यायालय अपील निर्मित करते समय गैर अपीलार्थी के पक्ष में डिक्री/अनुतोष  मंजूर कर सकता है, और यदि कर सकता है तो कब?













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