आदेश-(Order)

 

 आदेश-(Order)


'आदेश' शब्द को CPC की धारा- 2 (14) के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है। "इसका अभिप्राय किसी सिविल न्यायालय द्वारा दिये गये विनिश्चय की प्रारुपिक अभिव्याक्त से होता है जो डिक्री के अन्तर्गत नही आता है।" उपर्युक्त परिभाषा के विश्लेषण पर यह प्रकट होता है कि एक आदेश हेतु सिविल न्यायालय द्वारा दिया गया कोई निर्णय अवश्य ही हो तथा उस निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति की गयी हो परन्तु वह किसी भी स्थिति में डिक्री नहीं होना चाहिए। 

डिक्री और आदेश के मध्य अन्तर (Distinction between the Decree & Order)-

यद्यपि कि डिक्री तथा आदेश दोनों ही न्यायिक अभिनिश्चय होते हैं तथा दोनों के अन्तर्गत पक्षकारों को उपचार प्रदान किया जाता है, परन्तु निम्नलिखित बिंदुओं पर दोनों भिन्न  प्रकृति धारण करतें हैं।

1). डिक्री प्रायः नियमित वाद के अन्तर्गत ही पारित की जाती है परन्तु आदेश किसी भी प्रकार के संस्थित कार्यवाही के अन्तर्गत पारित किया जा सकता है।

2). डिक्री के अन्तर्गत पक्षकारों के आधकारों का निश्वयात्मक एवं अंतिम रूप से निर्धारण किया जाता है, जबकि आदेश के अन्तर्गत निर्धारित अधिकार निश्चयात्मक हो भी सकते हैं और नहीं भी।

3). डिक्री दो प्रकार की जैसे प्रारम्भिक अथवा अंतिम हो सकती है, परन्तु आदेश इस प्रकार से नहीं हो सकता है।

4). सामान्य नियम के रूप में एक वाद के अन्तर्गत एक ही डिक्री प्रारित की जाती है जबकि किसी कार्यवाही में एक से अधिक आदेश पारित किये जा सकते हैं।

5). सामान्य सिद्धान्त के रूप में डिक्री अपीलीय होती है परन्तु आदेश सामान्यतंयः अपीलीय नही होता है, जबतक कि इसे विशेषतयः अपीलीय न बनाया गया हो।

6). डिक्री के विरुद्ध द्वितीय अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है यदि कोई विधि का सारवान प्रश्न अन्तरवलित है, परन्तु एक आदेश के विरुद्ध द्वितीय अपील कभी भी नदी की जा सकती है।


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