अन्तरिती (Transferee) (धारा-49)सीपीसी-
अन्तरिती (Transferee) (धारा-49)सीपीसी-
डिक्री का हर अन्तरिती, उसे उन साम्याओं के (यदि कोई हो) अधीन रहते हुए धारण करेगा जिन्हें निर्णीत ऋणी मूल डिक्रीदार के विरुद्ध प्रवर्तित करा सकता था।
धारा 49 के प्रावधान संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 132 की तरह है। धारा 132 के अनुसार एक समुनदेशिती (अन्तरिती) की स्थिति समनुदेशक से अच्छी नहीं होती जहां तक समनुदेशक (assignor) और उसके ऋणदाता के बीच की साम्या का प्रश्न है, वह साम्या जो समनुदेशन के समय थी। मुजराई का अधिकार एक साम्या है, और अगर एक निर्णीत ऋणी को एक प्रति डिक्री में मुजराई का अधिकार है तो यह अधिकार (मुजराई का) उसे डिक्रीदाता के समनुदेशिती के विरुद्ध भी है, यह धारा उन सभी डिक्रियों पर लागू होती है, चाहे वह बन्धक की डिक्री ही क्यों न हो।
उदाहरण- (1) 'अ' 'ब' के विरुद्ध 5000 रुपये की एक डिक्री धारित करता है। 'ब' 'अ' के विरुद्ध 3000 रु. की एक डिक्री धारित करता है। 'अ' अपने डिक्री का अन्तरण 'स' को कर देता है। 'स' 'ब' के विरुद्ध डिक्री का निष्पादन 2000 रुपये से ज्यादा के लिए नहीं कर सकता है।
(2) 'अ' 'ब' के विरुद्ध 5000 रुपये की एक डिक्री प्राप्त करता है। 'ब' उसके पश्चात् 2000 के लिए 'अ' के विरुद्ध एक दावा संस्थित करता है। वाद के लम्बित रहते 'स', 'अ' के डिक्री का अन्तरण इस सूचना के साथ 'ब' ने वाद संस्थित किया है, प्राप्त करता है। तत्पश्चात् 'अ' के विरुद्ध और 'ब' के पक्ष में डिक्री पारित की जाती है। 'स' 'ब' के विरुद्ध डिक्री की पूरी रकम अर्थात् 5000 रुपये के लिए निष्पादन की कार्यवाही करता है। वह 3000 रुपये से ज्यादा के लिए डिक्री का निष्पादन नहीं करा सकता क्योंकि उसने अन्तरण इसी सूचना के साथ प्राप्त किया था कि 'ब' ने 'अ' के विरुद्ध वाद संस्थित किया है।
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