धारा 73(सीपीसी)- निष्पादन विक्रय के आगमों का डिक्रीदारों के बीच आनुपातिक रूप से वितरित किया जाना
धारा 73(सीपीसी)- निष्पादन विक्रय के आगमों का डिक्रीदारों के बीच आनुपातिक रूप से वितरित किया जाना
(1) जहां आस्तियाँ न्यायालय द्वारा धारित है और ऐसी आस्तियों की अभिप्राप्ति के पूर्व एक से अधिक व्यक्तियों ने धन संदाय की ऐसी डिक्रियों के, जो एक ही निर्णीत- ऋणी के विरुद्ध पारित है, निष्पादन के लिये आवेदन न्यायालय से किये हैं और उसकी तुष्टि अभिप्राप्त नहीं की है, वहां उसके खचों को काट लेने के पश्चात् वे आस्तियां ऐसे सभी व्यक्तियों के बीच आनुपातिक रूप से वितरित की जायेंगी-
परन्तु,
(क) जहां कोई सम्पत्ति बन्धक या भार के अधीन विक्रय की गई है, वहां बन्धकदार या विल्लंगमदार ऐसे विक्रय से पैदा किसी अधिशेष में से अंश पाने के हकदार नहीं होंगे;
(ख) जहां डिक्री के निष्पादन में विक्रय के दायित्वाधीन कोई सम्पत्ति बन्धक या भार के अधीन है, वहां न्यायालय बन्धकदार या बिल्लंगमदार की सहमति से और बंधकदार या विल्लंगमदार को विक्रय के आगमों में वही हित देते हुये, जो उसका विक्रीत सम्पत्ति में था, सम्पत्ति को बन्धक या भार से मुक्त रूप में विक्रय करने के लिये आदेश दे सकेगा;
(ग) जहां कोई स्थावर सम्पत्ति ऐसी डिक्री के निष्पादन में विक्रय की जाती है, जो उस विल्लंगम के उन्मोचन के लिये उसके विक्रय किये जाने का आदेश देती है, वहां विक्रय के आगम निम्नलिखित के अनुसार उपयोजित किये जायेंगे-
प्रथमतः विक्रय के व्ययों को चुकाने में,
द्वितीयतः डिक्री के अधीन शोध्य रकम के उन्मोचन में,
तृतीयतः पाश्चिक विल्लंगमों पर (यदि कोई हों) शोध्य ब्याज और मूलधन के उन्मोचन में, तथा चतुर्थतः निर्णीत ऋणी के विरुद्ध धन के संदाय की डिक्रियों के ऐसे धारकों के बीच आनुपातिक रूप में जिन्होंने ऐसे विक्रय का आदेश देने वाली डिक्री पारित करने वाले न्यायालय से, सम्पत्ति के विक्रय के पूर्व ऐसी डिक्रियों के निष्पादन के लिए आवेदन कर दिया है और उनकी तुष्टि अभिप्राप्त नहीं की है।
(2) जहां वे सभी या कोई आस्तियां जो इस धारा के अधीन आनुपातिक रूप से वितरित किए जाने के लिये दायी हैं, ऐसे व्यक्ति को दे दी जाती है जो उन्हें प्राप्त करने का हकदार नहीं है, वहां ऐसा हकदार कोई भी व्यक्ति उन आस्तियों का विवश करने के लिए ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध वाद ला सकेगा।
धारा 73 का उद्देश्य उन धन डिक्रियों (धन के संदाय के लिये डिक्री) के निष्पादन हेतु एक सस्ती और शीघ्र प्राप्त उपाय का उपबन्ध करना है जो डिक्रियाँ एक ही निर्णीत-ऋणी के विरुद्ध गई हैं। इस प्रकार अलग-अलग कार्यवाही किए बिना, प्रतिद्वन्द्वी डिक्रीधारियों के दावों का समायोजन कर दिया जाता है।
अतः यह स्पष्ट है कि धारा 73 आस्तियों का वितरण करके प्रतिद्वन्दी डिक्रीधारियों के दावों हा समायोजन करती है।
आनुपातिक वितरण की शर्तें-
किसी भी डिक्रीधारी के आस्तियों के वितरण में भागीदारी बनने के लिये निम्न शर्तों को पूरा होना आवश्यक है-
(1) आनुपातिक वितरण का दावा डिक्रीधारी ने उस न्यायालय को, जो आस्तियाँ धारण करती है, निष्पादन के लिए दावा किया है,
(2) डिक्री के निष्पादन के लिए ऐसा आवेदन, न्यायालय द्वारा उन आस्तियों को पाने के पहले किया गया होना चाहिए,
(3) आस्तियाँ न्यायालय के कब्जे में होनी चाहिए, आनुपातिक वितरण का दावा किया जाता है।
(4) कुर्क करने वाला ऋणदाता और उस सम्पत्ति में हिस्से का दावा करने वाला डिक्रीधारी, ऐसे होने चाहिए जो धन की अदायगी के लिये डिक्रियों को धारण करते हों, और
(5) ऐसी डिक्रियां उसी एक ही निर्णीत ऋणी के विरुद्ध प्राप्त की गई होनी बाहिए।
इ. पी. अब्दुल लतीफ बनाम के. विनोद, ए. आई. आर. 2007 केरल के वाद में कहा गया कि यदि डिक्री के निष्पादन के परिणामस्वरूप सम्पत्ति को डिक्रीधारी ने ही न्यायालय की इजाजत से क्रय किया हो, तो ऐसे डिक्रीधारी की क्रय राशि को नियम 73 में उल्लिखित आस्तियों में समायोजित किया जायेगा और ऐसे डिक्रीधारी आनुपातिक वितरण के अधिकारी होंगे।
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